इन दिनों हमारा धर्म कई प्रकार के अतिक्रमणों का शिकार है। उस पर हर प्रकार से आक्रमण तो हो ही रहे हैं, परन्तु जो सबसे बड़ा आक्रमण है वह व्हाट्सएप फॉरवर्ड का और उसके साथ ही अपने अनुसार धर्मग्रंथों के सन्दर्भों का अध्ययन न कर, सुनी सुनाई बातों एवं टीवी धारावाहिकों के आधार पर धारणाओं का निर्माण करना।
दुर्भाग्य की बात यह है कि यही बातें चलती रहती हैं और उसी के आधार पर हम कहानियां और कविताएँ लिखते हैं। वैसे तो कई प्रकरण हैं परन्तु हम दो प्रकरणों की बात करेंगे जिनके आधार पर पूरे के पूरे झूठे विमर्श बनाए गए और लिखे गए।
सबसे पहले तो हमें यह निर्धारित करना होगा कि हम अपने स्रोत ग्रन्थ किसे मानते हैं। अर्थात हम वाल्मीकि रामायण को सत्य मानते हैं या फिर आदि कवि वाल्मीकि के बाद लिखी गयी राम कथाओं को। हम महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित महाभारत को या फिर उसके आधार पर कपोल कल्पित कहानियों को?
रामायण से एक प्रसंग है जिसने अब तक सम्पूर्ण विमर्श को बदल कर रख दिया है, महर्षि गौतम के बहाने सम्पूर्ण हिन्दू पुरुष वर्ग को स्त्री विरोधी घोषित कर दिया गया है एवं कई क्रांतिकारी कविताएँ भी लिख दी गयी हैं, जबकि मूल रामायण अर्थात वाल्मीकि रामायण में वास्तविकता इसके विपरीत है। वाल्मीकि रामायण में यह पूर्णतया स्पष्ट लिखा गया है कि:
तस्य अन्तरम् विदित्वा तु सहस्राक्षः शची पतिः ।
मुनि वेष धरो भूत्वा अहल्याम् इदम् अब्रवीत् ॥
ऋतु कालम् प्रतीक्षन्ते न अर्थिनः सुसमाहिते ।
संगमम् तु अहम् इच्छामि त्वया सह सुमध्यमे ॥
अर्थात-
आश्रम में मुनि को अनुपस्थित देखकर शचीपति इंद्र ने गौतम का रूप धारण कर अहल्या से कहा
कि कामी पुरुष ऋतुकाल की प्रतीक्षा नहीं करते! हे सुन्दरी हम आज तुम्हारे साथ समागम करना चाहते हैं।
यह है इंद्र की बात! अब देखिये कि अहल्या क्या कहती हैं:
मुनि वेषम् सहस्राक्षम् विज्ञाय रघुनंदन ।
मतिम् चकार दुर्मेधा देव राज कुतूहलात् ॥
अथ अब्रवीत् सुरश्रेष्ठम् कृतार्थेन अंतरात्मना ।
कृतार्था अस्मि सुरश्रेष्ठ गच्छ शीघ्रम् इतः प्रभो ॥
इन पंक्तियों में कहा गया है कि हे राम, यद्यपि अहल्या ने मुनिवेश धारण किए गए इंद्र को पहचान लिया था, फिर भी उसने प्रसन्नतापूर्वक इंद्र के साथ भोग किया एवं फिर इंद्र से कहा कि हे इंद्र, मेरा मनोरथ पूर्ण हुआ, अब तुम यहाँ से शीघ्र चले जाओ!
इसका अर्थ यह हुआ कि वर्षों से जो भी अहल्या को लेकर तमाम कविताएँ एवं अब व्हाट्स एप फॉरवर्ड आ रहे हैं, वह पूर्णतया झूठ हैं। हैरानी यह नहीं है कि किसी और ने झूठी व्याख्या की, हैरानी इस बात की है कि हिन्दुओं ने भी इतने बड़े झूठ को स्वीकार कर लिया और राम को स्त्री विरोधी घोषित कर दिया या फिर उनके साथ जाकर खड़े हो गए जो इस झूठ को फैला रहे थे।
इस प्रकरण में स्पष्ट है कि पत्नी ने गलत किया है, महर्षि गौतम ने नहीं बल्कि अहल्या ने अपने पति को धोखा दिया है। परन्तु उन्होंने कौतुहल वश ऐसा कर दिया है, पराई देह की कामना में अहल्या यह कदम उठा गयी हैं, उसमें भी महर्षि गौतम उन्हें उसी आश्रम में तपस्या का आदेश देकर स्वयं चले जाते हैं।
पर चूंकि हमें अध्ययन की आदत नहीं है तो हम पढ़ते नहीं और उस झूठे नैरेटिव में फंसते चले जाते हैं, जो वामपंथी फैलाते हैं।
इसी प्रकार एक और प्रकरण है, और वह महाभारत का है जिसमें यह बार बार कहा जाता है कि द्रौपदी ने दुर्योधन का अपमान किया था, और उसे अंधे का पुत्र अंधा कहा था। क्या यह सत्य है? क्या इतने फॉरवर्ड संदेशों की सत्यता को जांचने का तनिक भी प्रयास हम लोगों ने किया? और इस मंतव्य का सन्देश कई कथित हिंदूवादी ही आगे फैलाते हैं।
अब आइये इस झूठ को भी तथ्यों की कसौटी पर आंकते हैं। महाभारत में सभापर्व में द्यूतपर्व में स्पष्ट लिखा है कि आगे स्फटिक के समान अमल जल भरे स्फटिक बने फूल कमल वाले एक ताल को स्थल जानके वस्त्र सहित जल में जा गिरा। उसे जल में गिरते देखकर भीम और नौकर चाकर बहुत हँसे और राजा की आज्ञा से अच्छा चीर दिया। उसकी वह दशा निहार कर उस समय महाबली भीमसेन, अर्जुन, नकुल, सहदेव सभी हँसने लगे।
किन्तु हम लोग मूल ग्रन्थ पढ़ना नहीं चाहते हैं और हमेशा ही उन व्याख्याओं पर अपना ध्यान केन्द्रित करते हैं, जो किसी न किसी एजेंडे के आधार पर रची गईं। अहल्या वाले प्रकरण में जहाँ एक हिन्दू पुरुष की महानता एवं विशालता परिलक्षित हो रही थी, उसे पूर्णतया स्त्री विरोधी घोषित कर दिया गया तो वहीं द्रौपदी वाले प्रकरण में तनिक भी द्रौपदी का दोष नहीं था, परन्तु उसमें दुर्योधन को पांडवों से बेहतर घोषित करने के लिए और द्रौपदी को नीचा दिखाने के लिए द्रौपदी को ही दोषी ठहरा दिया। जबकि द्रौपदी ने “अँधे का पुत्र अँधा” कहा था यह महाभारत में कहीं है ही नहीं।
परन्तु कथित हिन्दू योद्धा और राष्ट्रवादी लेखिकाएं इन्हीं झूठों को दोहराकर स्वयं को प्रगतिशील प्रदर्शित करना चाहते हैं, परन्तु वह यह नहीं जानते कि लोक कथाओं को उनके कथ्य के अनुसार अपनाना ही प्रगतिशीलता है, और हमें तोड़ने के प्रयास इसीलिए सफल होते हैं कि हम अपने मूल ग्रन्थ नहीं पढ़ते हैं जिसका दुष्परिणाम होता है इस प्रकार के झूठ का फैलाव और विस्तार!
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