योग और आयुर्वेद जिस तरह से वैश्विक पटल पर अपना परचम लहरा रहे हैं, वह वाकई भारत को पुनः विश्वगुरु के पद पर वापस विराजमान करने के शुरुआती सोपान मात्र है। कोरोना के आने के बाद तो सनातन जीवन शैली व हमारे खान-पान और परम्पराओं ने फिर एक बार यह साबित किया कि यदि हमने आधुनिक बनने के चक्कर में अपनी जड़ों से नाता नहीं तोड़ा होता तो निश्चित ही यह हमारा उतना नुकसान नहीं पहुंचाता जितना कि इसने दूसरी लहर के दौरान कर दिखाया ।
अब भी फिर वैसे ही मंजर नजर आ रहे जो संकेत कर रहे कि हमारी याददाश्त तो गजनी से भी ज्यादा कमजोर हैं। इसलिए हम भूल गए कि ज्यादा नहीं बस 30-40 दिन पहले किस तरह लोग बेड व ऑक्सीजन के लिए तड़प रहे थे, किस तरह लोगों ने अपनों को खोया और सारी जिम्मेदारी सरकार के सर मढ़कर सब दोबारा अपनी उन्हीं गतिविधियों में लिप्त हो गए। संभवतः हमें केवल अधिकारों की बात करना आता है, कर्तव्य किस चिड़िया का नाम है हम नहीं जानते। उस पर ऐसी सरकार मिल गई जिस पर अपनी गलतियां थोपकर मजे से आगे बढ़ जाते हैं, तो तीसरी क्या कोई लहर आये हमको सुधार नहीं सकती है ।
कोरोना जैसी महामारी में यौगिक क्रियाओं व आयुर्वेदिक उपायों ने हम सबका जीवन बचाने व रोग-प्रतिरोधकता क्षमता बढ़ाने में जो भूमिका निभाई वह उल्लेखनीय है। इसके बाद योगाचार्यों, योग प्रशिक्षकों, योग कक्षाओं, योग सेंटर्स आदि की संख्या में भारी मात्रा में इजाफा हुआ तो साथ ही आयुर्वेद के नाम पर भी अनगिनत नई कम्पनियां खुल गई जो इम्युनिटी बूस्टर के नाम पर तरह-तरह के उत्पाद बेचकर कमाई करने लगी। किसी के भी नाम के आगे योगी या वैद्य देखकर आंख मूंदकर मनुष्य उस पर विश्वास करने लगता है। इससे व्यापारी को तो लाभ होता है लेकिन फायदा न देखकर ग्राहक विक्रेता की जगह योग व आयुर्वेद के खिलाफ हो जाता है ।
कुछ ऐसी ही खबरें इन दिनों देखने में आई जब योग व आयुर्वेद को लेकर कई तरह की भ्रामक जानकारियां व गलत तथ्य ऐसे न्यूज ग्रुप व समाचार पत्रों में प्रकाशित हुए। तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग इन्हें सत्य मानकर इन पर न केवल विश्वास करने लगा बल्कि इस तरह कि खबरों को बिना फैक्ट चेक यहां-वहां प्रसारित भी करने लगा, गोया कि भारत को अब अपनों से खतरा जो हो चला है ।
जब कई अंग्रेजी समाचार पत्रों में ऐसी खबर देखी तभी माथा ठनका कि हो न जो यह प्रोपोगेंडा का हिस्सा है और जान-बूझकर इसे अंग्रेजी में छापा गया है। आयुष मंत्रालय ने आज एक अध्ययन में किए गए उन दावों का खंडन किया जिसमें गिलोय से लीवर खराब होने का दावा किया गया है। इस नए दावे में आमतौर पर गिलोय या गुडुची के रूप में जानी जाने वाली जड़ी बूटी टिनोस्पोरा कॉर्डिफोलिया (टीसी) के इस्तेमाल से मुंबई में छह मरीजों के लीवर खराब होने का दावा किया गया है।
हाल ही में एक रिपोर्ट आई थी जिसमें कहा गया था कि मुंबई में पिछले साल सितंबर से दिसंबर के बीच गिलोय के सेवन से होने वाले लिवर खराब होने के करीब छह मामले देखे गए थे। अब आयुष मंत्रालय ने इस पर कहा है कि गिलोय को लिवर डैमेज से जोड़ना पूरी तरह से भ्रम पैदा करने वाली बात है। आयुष मंत्रालय ने एक प्रेस रिलीज जारी करते हुए कहा कि गिलोय जैसी जड़ी-बूटी पर इस तरह की जहरीली प्रकृति का लेबल लगाने से पहले, लेखकों को मानक दिशानिर्देशों का पालन करते हुए पौधों की सही पहचान करने की कोशिश करनी चाहिए थी, जो उन्होंने नहीं की।
आयुष मंत्रालय ने जो प्रेस रिलीज जारी की है, उसमें लिखा है कि ‘आयुष मंत्रालय ने जर्नल ऑफ क्लिनिकल एंड एक्सपेरिमेंटल हेपेटोलॉजी में प्रकाशित एक अध्ययन के आधार पर एक मीडिया रिपोर्ट पर ध्यान दिया है, जो कि लिवर के अध्ययन के लिए इंडियन नेशनल एसोसिएशन की एक सहकर्मी की समीक्षा की गई पत्रिका है। इस अध्ययन में उल्लेख किया गया है कि आमतौर पर गिलोय या गुडुची के रूप में जानी जाने वाली जड़ी बूटी टिनोस्पोरा कॉर्डिफोलिया (टीसी) के उपयोग से मुंबई में छह मरीजों में लिवर फेलियर का मामला देखने को मिला।’
प्रेस रिलीज में आगे लिखा है, ‘मंत्रालय को लगता है कि अध्ययन के लेखक मामलों के सभी आवश्यक विवरणों को व्यवस्थित प्रारूप में रखने में विफल रहे। इसके अलावा, गिलोय को लिवर की क्षति से जोड़ना भारत की पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली के लिए भ्रामक और विनाशकारी होगा, क्योंकि आयुर्वेद में जड़ी-बूटी गुडुची या गिलोय का उपयोग लंबे समय से किया जा रहा है। विभिन्न विकारों के प्रबंधन में गिलोय की प्रभावकारिता अच्छी तरह से स्थापित है।’
इसमें कोई शंका नहीं कि, आयुर्वेदिक औषधि हो या कोई भी स्वास्थ्यवर्धक खाद्य यदि उसे नियम व प्रकृति विरुद्ध और नियमानुसार न लेकर, मनमाने तरीके से अधिक सेवन किया जाए तो वह हानिकारक हो सकता इसलिए आयुर्वेदिक वैद्य जब भी कोई उपचार बताते तो सबसे पहले नाड़ी देखते हैं फिर उसके बाद रोगी की प्रकृति अनुसार उसके साथ लिए जाने वाले पथ्य व अपथ्य की भी जानकारी देते हैं। औषधि का पूर्ण लाभ लेने कर लिए वह जरूरी होताहै। मगर फिलहाल सब लोग स्वयं अपनी मर्जी से गिलोय ले रहे जिसमें अधिकता भी हो रही है, तो वह कहीं न कहीं शरीर के लिए नुकसानदायक साबित हो रहा है। जैसे कि जब काढ़ा पीने की सलाह दी गई तो लोगों ने बहुत ज्यादा मात्रा व ज्यादा से ज्यादा बार उसे पिया जिसकी वजह से मुंह में छाले या पित्त बढ़ने या एसिडिटी की समस्या पैदा हुई। तब जाकर लोगों को समझ आया कि मौसम व शारीरिक अवस्था के साथ-साथ कब व कितनी मात्रा में इसे लेना है। यह जानना भी जरूरी तो यदि किसी को इसकी वजह से कोई समस्या हुई भी होगी तो इसकी वजह उसका स्वयं का अज्ञान हो सकता जिसके लिए आयुर्वेद या गिलोय को दोष देना सही नहीं ।
हालांकि, इस तरह के मिथ्या व मनगढ़न्त समाचारों से जिन्हें अपना एजेंडा पूरा कर कोई लाभ लेना होगा वह ले चुका होगा इसलिए आगे से हमें अधिक सावधान रहना है। हमारे देश की विरासत से जुड़ी कोई भी खबर हो चाहे वह कितने ही नामी अखबार या न्यूज़ चैनल द्वारा प्रसारित की गई हो बिना फैक्ट चेक उस पर अपनी स्वीकृति की मोहर नहीं लगानी है। एक चीन है जो आज तक अपने पैदा किये वायरस को अपना नहीं मान रहा और एक हम है जो दुश्मनों के दुष्चक्र में फंसकर अपनी ऐतिहासिक व सदियों पुरानी मान्यताओं पर झट से उंगली उठा देते हैं। क्या हमारा इतना भी नैतिक दायित्व नहीं कि हम जिस पर गर्व करते हैं।
-सुश्री इंदु सिंह ‘इंदुश्री’
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