“देश में करीब २५ करोड़ भारतीयों के पास आज भी आधार नहीं है। वहीं पिछले साल ही १२५ करोड़ भारतीयों का आधार बन गया था। इस तरह देखें तो देश कि आबादी डेढ़ सौ करोड़ हो चुकी है। दुनिया का सिर्फ दो प्रतिशत क्षेत्रफल भारत का है, पीने योग्य चार प्रतिशत पानी है, लेकिन दुनिया की २० प्रतिशत जनसँख्या यहाँ है। भारत का क्षेत्रफल चीन और अमेरिका कि तुलना में लगभग एक तिहाई है। जनसँख्या विस्फोट ही देश में सभी समस्याओं कि जड़ है। ऐसे में इसी साल जनसँख्या नियंत्रण कानून पास होना बेहद जरूरी है।” ये कहना है भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय का जिन्होनें जनसँख्या नियंत्रण कानून की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर रखी है।
पर जनसख्या नियंत्रण कानून के सन्दर्भ में संविधान के प्रावधानों को लेकर बहुत सी बातें सामने आती हैं, और विशेष रूप से ‘सामान नागरिक सहिंता’ को लेकर। इस विषय में कुछ दिन पूर्व ही ख्याति प्राप्त स्तम्भकार स्वामीनाथन एस अन्क्लेसारिया अय्यर ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ में अपने लेख में लिखते हैं- “धर्मनिरपेक्षता मतलब सब के लिए सामान कानून। जो कि अपराध सहिंता के लिए पहले से ही लागू है, और शरिया कानून का हवाला देकर मौलवी किसी चोर कि ऊँगलीयों को काटने का फरमान नहीं सुना सकते: उन्हें देश के धर्मनिरपेक्ष अपराध सहिंता के अनुसार ही चलना पड़ेगा। जब सभी धर्म के लोग सामान अपराध सहिंता का अनुसरण कर सकते है, तो सामान नागरिक सहिंता का भी क्यूँ नहीं?
संविधान का डायरेक्टिव प्रिंसिपल (निर्देशक सिद्धांत) पूरे देश के लिए सामान नागरिक सहिंता का आग्रह करता है। ये कोई बीजेपी का अतिवादी सांप्रदायिक विचार नहीं है, जैसा कि कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल दावा करते हैं। ये धर्मनिरपेक्ष संविधान का धर्मनिरपेक्ष विचार है। सारे धर्मों के लोग यूरोप और अमेरिका में जाकर रहते हैं और वहाँ के सामान नागरिक सहिंता का पालन करते है। कोई अमेंरिका में इसे अल्पसंख्यकों का दमन ये नहीं बतलाता। इस प्रकार के कदम को भारत में भी दमन कि संज्ञा नहीं दी जा सकती।” [दिनांक- जून २०, २०२१]
वैसे इस बीच एक अच्छी खबर ये आई है कि उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ और आसाम कि हेमंत बिस्व् सरमा की सरकारों नें सरकारी योजनाओं के सशर्त लाभ के आधार पर जनसंख्या नीति के निर्धारण की दिशा पर काम करना शुरू कर दिया है।
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