अंतर्राष्ट्रीय रोमा सम्मलेन और सांस्कृतिक महोत्सव १२-१४ फरवरी को ICCR (भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद्) और ASRP द्वारा आयोजित किया गया है । इसका उद्देश्य भारतीय इतिहास के एक खोये पन्ने को पुनर्जीवित करना है । इस कार्यक्रम का लक्ष्य रोमा लोगों से , जिनकी जड़ें भारत में हैं, शैक्षिक विचार विमर्श और सांस्कृतिक कार्यक्रम के माध्यम से सम्बन्ध मजबूत करना है । इस विषय में जागरूकता पैदा करना और भारतीय और रोमा विद्वानों और कलाकारों को साथ में शोध करने के लिए प्रेरित करना भी एक लक्ष्य है ।
२ करोड़ की संख्या वाला रोमा समुदाय ३० से ज्यादा देशों में फैला हुआ है ,इनमें मुख्यतः पश्चिम एशिया और यूरोप के देश आते हैं। इसके पुख्ता सबूत हैं कि भारत से पश्चिम की ओर इनका पलायन ५ वीं सदी के बाद से हुआ है । कुछ विद्वानों का कहना है की पहला प्रवास सिकंदर के आक्रमण के बाद हुआ , जो बड़ी संख्या में लोहे के कारीगर अपने साथ ले गया क्योंकि रोमा लोग हथियार बनाने में कुशल थे।
विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए कहा : “रोमा समुदाय के भारत के साथ अपने संबंधों की अनमोल विरासत को ध्यान से संरक्षित और लेखांकित करने की जरूरत है। अनुसंधान नए उत्साह के साथ बढ़ाये जाने की जरूरत है।” उन्होंने कहा की सम्मेलन का उद्देश्य ‘वसुधैव कुटुम्बकम (विश्व एक परिवार है )’ के भारत के मूल्यों के अनुरूप है, और कहा, “भारत राष्ट्र एक व्यापारी मात्र देश नहीं है जो केवल भौतिक उद्देश्यों की पूर्ति करे, अपितु ये मूल्यों पर आधारित सभ्यता है जो सद्भाव को बढाती है। हमारे अन्दर भारतीय मूल के लोगों के प्रति स्वाभाविक बंधुत्व और रूचि है । “
श्री जोवान दम्जानोविक (Jovan Damjanovic) ने, जो विश्व रोमा संगठन के अध्यक्ष हैं, रोमा समुदाय को भारत के प्रवासी समुदाय की तरह स्वीकार करने की भावपूर्ण याचना की । उन्होंने कहा की इससे उनके युरोप में बराबरी के दर्जे को पाने के लिए चल रहे संघर्ष में सहायता मिलेगी ।
ICCR के अध्यक्ष प्रोफ़ेसर लोकेश चंद्र ने रोमा इतिहास का सिंहावलोकन अपने मार्मिक भाषण में दिया । उनके प्रारंभिक उद्बोधन ने सम्मलेन का रुख निर्धारित किया ।
“हमारे हृदय रोमा भाइयों के कारवां के साथ सफ़र करते हैं । उन्होंने पूरे एशिया और यूरोप में एक रोमांस भरा रास्ता तय किया है, जिसके अवशेष उनके उन शब्दों में मिलता है जो की उन्होंने घूमते- घूमते अपना लिए । रेशम मार्ग ( silk route) की ही तरह वे प्राचीन लौह मार्ग (steel route) का प्रतिनिधित्व करते हैं। शताब्दियों से घुमंतू कारीगर उत्तर-पश्चिम भारत के पुष्कलावती से अपने टेम्पर्ड (tempered) इस्पात ले जाते रहे हैं । रोमा लोग यूरोप के इस्पात कारीगर के अलावा गायक, नर्तक और भविष्यवक्ता भी रहे हैं। “
उन्होंने ‘रोमा’ शब्द के उद्भव की जानकारी दी । ऐसा समझा जाता है की या शब्द ‘डोम्बा’ शब्द से निकला है , जिसका शाब्दिक अर्थ भारत की कई भाषाओँ में ‘घुमंतू संगीतकार’, ‘ढोल/ड्रम बजाने वाला’ , ‘नाई’ या ‘टोकरी बनाने वाला’ होता है ।
“रोमा लोगों के भारतीय समुदाय से होने का पता तब चलता है जब ग्रीस विद्वान् पस्पति ने उन्हें क्रॉस को त्रिशूल कहते हुए सुना – भगवान् शंकर का त्रिशूल। भगवान् शंकर नृत्य के देवता हैं , और रोमा लोगों का प्राथमिक व्यवसाय गाना और नाचना था। रोमा लोग सेंट् मेरी-दे-ला-मर चर्च में २३ से २५ मई के दौरान अपनी इष्ट देवी ‘सेंट् सराह द ब्लैक’ या काली देवी की पूजा करने एकत्रित होते हैं । काली देवी भगवान् शिव की संगिनी हैं। इसके अंतिम दिन देवी अपने भक्तों के कन्धों पर रख कर ले जाई जाती हैं और भूमध्य सागर में विसर्जित कर दी जाती हैं । जब पुजारी Vive St. Maries ( सेंट् मेरी अमर रहें ) के नारे देते हैं , तो रोमा लोग इसका उत्तर Vive-St. Sarah ( देवी सराह अमर रहे ) कहकर देते है हैं – उन्हें सेंट् मेरी में कोई रूचि नहीं है । यहाँ यह बात ध्यान देने योग्य है की बहते पाने में मूर्ति विसर्जन भारत की पवित्र परम्परा है ।”
संस्कृत , हिंदी और रोमा बोलियों में समानताएँ और भी खुलासा करती हैं :
” रोमा लोगों की बोली भारत की सुगंध से सुवासित है : ‘Yag’ हिंदी का आग है , ‘ rashai’ हिंदी का ‘ऋषि’ है । रोमा बोलियाँ पूरे यूरोप में फैली हैं । यह हिंदी का शुरुवाती चरण है जो रोमा लोगों द्वारा प्रेम से संरक्षित किया हुआ है । उनका बुनियादी शब्दकोष हिंदी के ही जैसा है । उनके अंक हैं : Yek (१ ), dui (२ ), trin (३), पञ्च ( ५ ), देश ( १० )”
प्रो. लोकेश चन्द्र ने रोमा लोगों के सदियों से चले आ रहे उत्पीड़न के बारे में बात की :
“रोमा लोग शताब्दियों से अपने गहरे रंग के लिए उत्पीड़ित किये जा रहे हैं “। १७०१- ५० में जर्मनी ने ६८ क़ानून उन्हें उत्पीड़ित करने के लिए पारित किये। १७१५ में स्कॉटलैंड के नौ रोमा लोगों को अमेरिका निष्काषित किया गया । पांच हजार रोमा लोगों को नाजी मृत्यु शिविरों में भेजा गया था । तुर्की , विश्व के सबसे ज्यादा रोमा जनसँख्या के घर ने १९३४ में एक ऐसा क़ानून बनाया जो सरकार को रोमा लोगों को नागरिकता से वंचित करने की अनुमति देता है । जीवन में सफल होने के लिए रोमा लोगों में अपनी जड़ों को छुपाने की प्रवृत्ति है , बिलकुल वैसे ही जैसा सिनेमा या संगीत में सफल होने वाले बहुतेरे लोग करते हैं । वे वर्तमान में भी भेदभाव का सामना करते हैं , जैसा की हाल ही की घटना में हुआ , जब इटली के राष्ट्रीय फुटबाल खिलाड़ी Daniel De Rossi ने रोमा समुदाय के मारिओ मंजुकिक ( Mario Mandzukic ) के साथ ‘गंदे जिप्सी’ ( shitty gypsy)कहकर दुर्व्यवहार किया।”
प्रो. शशिबाला, सम्मलेन की अकादमिक समन्वयक ने रोमा समुदाय के ऐसा सदस्यों का उल्लेख किया जिन्होंने कला, विज्ञान, खेल और राजनीति में ऊंचाईंयां पायीं, जैसे की पाब्लो पिकासो (Pablo Picasso) , अंतोनियो सोलारियो, कॉमेडियन चार्ली चैपलिन (Charlie Chaplin), फ्लामेंको नर्तक Micaela Flores Amaya, टेनिस खिलाड़ी Ilie Nastase , वायलिन वादक Janos Bihari, ग्रीक गायक Glykeria Kotsoula और अभिनेता Yul Brynner, रॉक एंड रोल के सम्राट कहे जाने वाले Elvis Presley, Michael Caine और Bob Hoskins.
हिन्दू पोस्ट ने डॉ. मौन कौशिक से बात की, जो सोफिया विश्वविद्यालय बुल्गारिया में हिन्दी और संस्कृत शिक्षक हैं और जिन्होंने रोमा समुदाय और उसके छात्रों से करीब १६ सालों से विस्तृत संवाद किया है । उन्होंने रोमा लोगों की हिन्दू संस्कृति से निकटना और जिस आसानी से वे हिंदी सीख लेते हैं , उसका उल्लेख किया। उनकी शादियाँ उत्तर भारत की शादियों जैसी ही हैं : जिनमें नाचना-गाना , लम्बे उत्सव , दुल्हन का मेहंदी लगाना और लाल रंग पहनना शामिल है ।
भारत में आखिरी रोमा सम्मलेन २००१ में हुआ जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने रोमा विद्वानों और प्रतिनिधियों से संवाद किया।
(वीरेंद्र सिंह द्वारा हिंदी अनुवाद)
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