JNU में इन दिनों नजीब के गायब होने की चर्चा है और इसका पूरा दोष ABVP/संघ/बीजेपी पर थोपा जा रहा है, लेकिन इसकी जमीन बहुत पहले तैयार कर ली गई थी. जरा उसके बारे में तथ्यात्मक बहस करे तो तथ्य स्पष्ट कर देगें की इसकी पटकथा बहुत पहले तैयार की जा चुकी है.
जब 2014 में केंद्र में बीजेपी सरकार बनी और नरेन्द्र मोदी प्रधान मंत्री बने तो इस तरह की अनेक पटकथाएं लिखी गयी और अब उनको असली जामा पहनाने का धंधा जारी है. मोदी प्रधानमंत्री बन गए ये बात भारत के वामपंथी गिरोह (कांग्रेस और समाजवादी दल इसमें स्वतः शामिल हैं) तथा मीडिया पचा नहीं पाया और पचाने के लिए तरह तरह की दवाइयां लेने लगा, चूँकि भारत की स्थिति ऐसी है जहाँ पर अकादमिक संस्थानो व संस्कृति संस्थानो पर वामपंथी गिरोह का कब्ज़ा है. शुरू से कांग्रेस ने वामपंथियों को अकादमिक व संस्कृति संस्थानो में स्थान दिया. वामपंथ और नव-वामपंथ सिर्फ मुखौटा है, इनको आर्थिक सहायता इसाई मिशनरीज NGOs के माध्यम से करते है और मोदी आते ही सबसे पहले NGOs को बंद करते हैं या उनकी फॉरेन फंडिंग बंद करते हैं. गुजरात वाले मामले में कैसे वामपंथी गिरोह ने मोदी को बदनाम करने की भरपूर कोशिश की, तीस्ता सीतलवाद का सबरंग सबसे उम्दा उदहारण है.
बात यह है की कांग्रेस के पिछले दस सालों (2004-2014) के शासन काल में केन्द्रीय शैक्षणिक संस्थानो में क्रिस्चियन थिओलोजी को रिसा दिया गया. भारत के प्रत्येक राज्य को एक केन्द्रीय विश्वविधालय दिया गया और उसमे ऐसे कोर्सेज को बढ़ावा दिया गया जिससे सामाजिक दरार को और चौड़ा किया जा सके और सामाजिक विज्ञानं के पूर्णकालिक कोर्सेज को IIT जैसे संस्थानो में खोल दिया गया. ज्ञात हो की IIT मद्रास में अम्बेडकर-पेरियार स्टडी सर्किल की स्थापना की गयी और उस स्टडी सर्किल के माध्यम से दलित साहित्य (जो की ‘hate-hindu/breaking india’ शक्तियों का एक केंद्रीय स्तम्भ है), को संस्थान में आये नए बच्चो को घुट्टी बनाकर पिला दिया गया. ज्ञात हो जब IIT मद्रास ने उस स्टडी सर्किल को बंद किया तो कितना बवाल हुआ और यही कहा गया की ये दलितों की आवाज़ दबाई जा रही है उनके अधिकारों का हनन हो रहा है, उनका शोषण हो रहा है या उनका आज भी शोषण हो रहा हैं. मोदी को उस समय US का वीजा न मिलना इनकी एक कूटनीतिक जीत थी लेकिन कांग्रेस के पिछले 10 सालों के शासन काल ने धर्मनिरपेक्षता का चोला ऐसा पहना की हिन्दू बहुसंख्यक के सामने सिर्फ मोदी एकमात्र विकल्प बचे और बहुसंख्यक हिन्दुओं ने 2014 में मोदी को चुना.
वामपंथी गिरोह JNU में वैसी स्थिति उत्पन्न करना चाहते हैं जैसा की हैदराबाद में रोहिथ वेमुला के साथ हुआ, उसकी तथाकथित आत्महत्या शायद खुद यही वामपंथी-इवैंजेलिकल लोगो ने की और पूरा का पूरा दोष ABVP/BJP/RSS पर थोप दिया. क्योंकि ये लोग यह साबित करना चाहते हैं कि जब से मोदी की सरकार आई है तब से भारत में दलित-वनवासी, मुस्लिम और इसाई अल्पसंख्यकों के अधिकार सुरक्षित नहीं हैं. अर्थात जब से केंद्र में ‘हिंदूवादी-सांप्रदायिक’ विचारधारा वाली सरकार आई है, दलितों-आदिवासियों एवं इसाई व मुस्लिम अल्पसंख्यकों का आज भी शोषण हो रहा है, उनका उत्पीडन हो रहा है जैसा की पिछले तीन हजार सालों से होता आया है.
पूरी दुनिया में हिन्दुओं की छबि धुल-धूमिल की जाए जिसके लिए इन वामपंथी-इवैंजेलिकल शक्तियों ने जनवरी 2015 में दिल्ली के लगभग 6 गिरजाघरों में हमले करवाए, हमले ऐसे समय किया गए जब 26 जनवरी को US प्रेसिडेंट बराक ओबामा भारत के मुख्य अथिति के रूप में आने वाले थे. उसके पहले ऐसे हमलों को असली जामा पहनाया गया ताकि मोदी की छबि को धूमिल जा सके और इन हमलों को बराक ओबामा के सामने मानवाधिकार/असहिष्णुता के नाम से उठाया गया.
उसके बाद IIT मद्रास में घटना होती हैं, IIT जैसे संस्थानो में भी इवैंजेलिकल गतिविधियों को आंबेडकर-पेरियार स्टडी सर्किल (APSC) के माध्यम से शुरू किया गया. जो छात्र आरक्षण से आते हैं उनको आंबेडकर-पेरियार स्टडी सर्किल के माध्यम से ‘hate-literature’ (घृणा साहित्य) वितरित किया या ऐसे साहित्य की घुट्टी बनाकर उन छात्रों को पिला दिया जिसके माध्यम से सामाजिक दरार को और भी चौड़ा किया.. मतलब सवर्ण बनाम दलित मुद्दा कर दिया गया. जब उस स्टडी सर्किल को बंद किया गया तो MHRD और मोदी को दोषी करार कर दिया गया की मोदी के होते उनको बोलने का अधिकार नहीं है.
उसी तरह से हैदारबाद में हुआ जहाँ पर इन्होने उस रोहिथ को बरगलाकर उस पर मत-आरोपण किया और उसकी शायद वामपंथी-इवैंजेलिकल शक्तियों द्वारा हत्या कर दी गयी. उसका दोष मोदी पर डाल दिया गया – नाम दिया इंस्टिट्यूशनल मर्डर. रोहिथ वेमुला के नाम पर फण्ड दिया इसाई-मिशनरीज ने . रोहिथ वेमुला को दलित बताया गया और पूरे देश के साथ दुनिया को यह बताया गया की भारत में मोदी के रहते दलित और उनके हित सुरक्षित नहीं है जबकि रोहिथ वेमुला दलित नहीं बल्कि OBC समुदाय से आता है. ठीक यही घटना गुजरात, उना में जहाँ पर दलितों को मारा गया. साथ ही साथ अखलाख हत्या घटना को नहीं भूलना चाहिए की कैसे अखलाख के नाम से पूरे विश्व में भारत की छवि ख़राब की गयी. इस घटना पर साहित्कारों ने ‘अवार्ड वापसी’ एक अभियान चलाया. JNU 9 फ़रवरी की घटना देखिये, मीडिया ने यही दिखाया की सरकार छात्रों के साथ ज्यादती कर रही है जबकि JNU में देश विरोधी नारे लगे, और ये पहली बार नहीं हुआ बल्कि ये तो वामपंथी- इवैंजेलिकल शक्तियों का एक नियमित कार्यक्रम है. ऐसा पहली बार हुआ जब यह घटना पूरे देश को मालूम चल गयी और इस घटना को भी वामपंथियों ने ऐसा प्रदर्शित किया की ऐसा करना उनका संवैधानिक अधिकार है, और मोदी सरकार उनके संवैधानिक अधिकारों का हनन कर रही है.

आज फिर से ठीक उसी तर्ज पर नजीब को लेकर किया जा रहा है, जबकि नजीब ने JNU के माही-मांडवी हॉस्टल इलेक्शन कैंपेन के दौरान दूसरे ग्रुप के एक छात्र को पीटा और उसकी प्रतिक्रिया स्वरुप दुसरे ग्रुप के छात्रों ने नजीब की पिटाई की. उस घटना के दूसरे दिन से नजीब गायब हो गया. जब से नजीब गायब हुआ तब से ABVP/BJP/RSS को दोषी बताया जा रहा है, मतलब जब से मोदी सरकार आई है तब से JNU जैसे तमाम अन्य संस्थानो में दलित-वनवासी, मुस्लिम और इसाई अल्पसंख्यकों को दबाया जा रहा है, उनका लगतार शोषण हो रहा है, भारत के शैक्षणिक और संस्कृति संस्थानो का भगवाकरण किया जा रहा है और देश में सांप्रदायिक शक्तियों का बोलबाला हो गया है. ऐसा क्यों हुआ जबकि नजीब की तथाकथित मारपीट एक छोटी से घटना थी, लेकिन उसके बाद वामपंथी-इवैंजेलिकल शक्तियां इस घटना को रोहिथ वेमुला जैसी घटना में परिवर्तित करने में लगे हुए हैं. हो सकता है नजीब की हत्या हो जाये और फिर यह सिद्ध होने की कोशिश हो की मोदी के रहते हुए दलित-वनवासी, मुस्लिम और इसाई अल्पसंख्यकों के हित सुरक्षित नहीं हैं, और ये ऐसा 2018 तक करते ही रहेंगे ताकि बहुसंख्यक हिन्दुओं को बांटा जा सके. ये नहीं चाहते की मोदी पुनः प्रधान मंत्री बने.
(अस्वीकरण –यह लेख लेखक की राय दर्शाता है
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