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Friday, March 29, 2024

हिन्दुओं को गुलाम बनाने वाले कानूनों की श्रृखंला – भाग 1: आर्म्स एक्ट

पालघर के साधुओं की जब हत्या हुई , तो हम सभी का ध्यान मात्र हत्या पर गया, एवं पुलिस व्यवस्था पर गया। परन्तु एक बार भी सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न पर नहीं गया, वह था आत्मरक्षा के लिए स्वयं के पास हथियार रखना।   हिन्दुओं को बेहद ही सुनियोजित तरीके से निर्बल करने के लिए अंग्रेजों ने कई कानूनों का सहारा लिया था। जिन्हें अंग्रेजों के जाते ही समाप्त हो जाना चाहिए था।

परन्तु वह विस्तारित होते गए, इतना ही नहीं, उनका शिकार केवल और केवल एक ही वर्ग होता रहा, जो था बहुसंख्यक वर्ग। दरअसल बहुसंख्यक वर्ग ने सरकार को ही अपना माईबाप समझ लिया एवं अपनी सामूहिक शक्ति को सरकार के ऊपर निर्भर कर दिया।  यही कारण रहा कि जहां एक ओर अल्पसंख्यक समुदायों को अपने विश्वासों के अनुसार निर्णय लेने की स्वतंत्रता रही तो वहीं, बहुसंख्यक समुदाय एक एक निर्णय के लिए सरकार पर ही आश्रित हो गया। कुछ ऐसे ही कानूनों की श्रृंखला में आज एक क़ानून की बात करते हैं, जिसने हिन्दू समाज पर अन्याय किया एवं उसे एकदम पिछलग्गू बना दिया।

सन 1857 की क्रांति के उपरान्त अंग्रेज सरकार अत्यंत चिंतित हो गयी थी, एवं भारत को गुलाम बनाए रखने के लिए हर संभव प्रयास कर रही थी।  भारतीय एक बार फिर से अपना सिर न उठा पाएं, इसलिए उन्होंने भारतीयों को निशस्त्र करने का विचार किया एवं इसी कारण वह कई क़ानून बनाते चले गए। ऐसा ही एक क़ानून था आर्म्स एक्ट।  यद्यपि भारत में वर्ष 1857 से पूर्व भी शस्त्र नियंत्रण के कुछ क़ानून थे, परन्तु इस क्रान्ति के उपरान्त हथियार रखना गैर कानूनी बनाया गया, यहाँ तक कि चाकू की लम्बाई भी निर्धारित कर दी गयी। हथियारों की परिभाषा में चाकू भी सम्मिलित किये गये और परिभाषा दी गयी:

“arms” includes-

(i) clasp-knives the blades of which are pointed and exceed three inches in length;

(ii) knives, with pointed blades rigidly affixed, or capable of being rigidly affixed, to the handle, and measuring in all over five inches in length which are not intended exclusively for domestic, agricultural or industrial purposes: provided that it shall be presumed until the contrary is proved that knives of this description are not intended exclusively for such purposes;

(iii) knives of such other kinds as the President of the Union may, by notification, prescribe; and

(iv) fire-arms, bayonets, swords, daggers, spears, spear-heads and bows and arrows, also cannon and parts of arms, and machinery for manufacturing arms;

Source: The_indian_arms_act.pdf

अर्थात कोई भी ऐसा व्यक्ति नुकीले और पांच इंच से ज्यादा लम्बे चाकुओं का प्रयोग नहीं कर सकता था, बशर्ते वह उनका घरेलू, कृषि या औद्योगिक प्रयोग न कर रहा हो।  इसका अर्थ यह हुआ कि एक बड़ा शाकाहारी वर्ग इससे दूर हो गया, क्योंकि वह घरेलू प्रयोग के लिए इससे बड़े चाकुओं की आवश्यकता नहीं सिद्ध कर सकता था।  हथियारों की परिभाषा में बंदूकें, तलवार, भाला, तीरकमान आदि भी सम्मिलित थे और इसके साथ ही हथियार बनाने की मशीनरी भी शामिल थीं।

फिर यह भी था कि आप हथियार बना ही नहीं सकते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि एक प्रमुख व्यावसायिक जाति लुहार, जो लोहे के भिन्न प्रकार के हथियार बना सकता था,  जो तीरों में धार दे सकता था, जो चाकुओं को पैना और नुकीला बना सकता था, उसके हाथ से उसका रोजगार छीन लिया गया।

किसी भी व्यक्ति के पास यह अधिकार नहीं था कि वह अस्त्र या गोलाबारूद किसी ऐसे व्यक्ति को बेच सके, जिसके पास इसे रखने या खरीदने या फिर बेचने का अधिकार नहीं है।  कई अन्य प्रतिबन्ध भी लगा दिये गए।  व्यक्ति को सरकार से जिस हथियार का लाइसेंस मिला है, वह उसी के साथ चल सकता था।

इतना ही नहीं, यह सरकार पर ही निर्भर था कि वह इन लाइसेंस को रद्द कर सकती थी या फिर कुछ मामलों में इन हथियारों को पुलिस स्टेशन में या फिर अधिकृत डीलर्स के पास जमा करना होता था।

लाइसेंस देना पूरी तरह से सरकार के विवेक पर निर्भर था, जिसे वह समय समय पर सरकारी अधिसूचना के आधार पर जारी करती रहती थी।  तथा क़ानून का उल्लंघन करने पर कई प्रकार के दंड थे, जिनमें गैर कानूनी रूप से खरीदने और बेचने पर भी छह महीने की कैद या पांच सौ रूपए का अर्थ दंड या दोनों ही शामिल थे।

इसी क़ानून को आधार बनाकर स्वतंत्रता के उपरान्त वर्ष 1959 में कुछ धाराओं को और कड़ा किया गया।  इसमें इक्कीस वर्ष से कम की उम्र के युवाओं को हथियार से विहीन कर दिया। लाइसेंस देने वाले अधिकारियों के हाथों में और भी अधिक शक्तियाँ प्रदान कर दी गईं।  इस संशोधन में बोर की परिभाषा भी निर्धारित कर दी गयी थीं।  कि कितने बोर की रिवोल्वर को इस्तेमाल किया जा सकता है और कितने की नहीं! .35, .32, .22 और .380 बोर की रिवोल्वर के लिए आम नागरिक आवेदन कर सकता था, तथा 38, .455  और .303 बोर की रिवोल्वर के लिए केवल सरकार द्वारा निर्धारित नागरिक ही आवेदन कर सकते थे।

वर्ष 2019 में इस क़ानून में और भी कड़े नियम कर दिये गये।  आर्म्स एक्ट 1959 में जहां एक व्यक्ति तीन लाइसेंसकृत बंदूकें रख सकता था, इस संशोधन ने उसे मात्र दो कर दिया। इसमें उत्तराधिकार या कहें विरासत में मिलने वाले लाइसेंस भी शामिल हैं। इसी के साथ इसमें दंड की अवधि भी बढ़ाई गयी है।

परन्तु आज हम धार्मिक आधार पर कुछ समुदायों को कुछ शस्त्र रखने की स्वतंत्रता देखते हैं, जिनमें कट्टरपंथी सिख सम्मिलित हैं,  मोहर्रम के जुलूसों में खुलेआम हथियारों का प्रदर्शन होता है। हाल ही में दिल्ली में किसान आन्दोलन के दौरान हमने देखा कि कैसे कुछ कट्टरपंथी सिखों ने धार्मिक प्रतीकों के आधार पर मिली स्वतंत्रता का गलत लाभ उठाकर दिल्ली पुलिस तक पर तलवार से आक्रमण किये हैं।

इन कानूनों के अनुसार आम साग पात खाने वाला हिन्दू केवल वही चाकू रख सकता है, जो वह प्रयोग करता है और एक निश्चित लम्बाई के बाद वाला चाकू भी हथियार की श्रेणी में आएगा।

समय आ गया है कि या तो धार्मिक स्वतंत्रता के आधार पर सभी को परम्परागत हथियार रखने की छूट दी जाए, या फिर सभी से वह अधिकार ले लिए जाएं! समानता का अधिकार हो, जिससे दूसरा व्यक्ति अपने प्राणों की रक्षा तब तक कर सके, जब तक पुलिस नहीं आ जाती है।

यदि धार्मिक प्रतीक रखने की स्वतंत्रता पालघर के उन निरीह साधुओं के पास होती तो शायद वह भी इतनी निरीह मृत्यु को प्राप्त नहीं होते!  यदि धार्मिक प्रतीकों को धारण करने की स्वतंत्रता होती तो स्वाभिमानी लोहार वर्ग शायद विस्मृत न हुआ होता। हम लोग आज कुछ स्थानों पर हुए उत्खनन में प्राप्त अस्त्र शस्त्रों को देखकर अपने कारीगरों की कला की प्रशंसा करते हैं, काश यह सभी प्रतिबन्ध न होते, तो वह कौशल अभी तक मात्र जीवित ही न होता बल्कि नए आयाम भी प्राप्त कर चुका होता।


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