आंध्र प्रदेश राज्य में सरकारी तंत्र द्वारा समर्थित और सत्तारूढ़ पार्टी द्वारा पोषित ईसाई धर्म परिवर्तन अब कोई रहस्य नहीं रह गया है। चिंता का एक बड़ा कारण है कि क्रिप्टो-ईसाई या गुप्त ईसाईयों की संख्या में भी तीव्र वृद्धि हो रही है | ये वे लोग हैं जिन्होंने हिन्दू धर्म छोड़कर ईसाई धर्म अपना लिया है लेकिन सरकारी अभिलेखों में वे अभी भी हिन्दू हैं|
एलआरपीएफ (कानूनी अधिकार संरक्षण मंच/लीगल राइट्स प्रोटेक्शन फोरम) ने जगन मोहन रेड्डी के नेतृत्व वाले सत्तारूढ़ वाईएसआरसीपी (वाईएसआर कांग्रेसपार्टी) द्वारा राजकीय व्यवस्था और निधियों के बड़े पैमाने पर दुरुपयोग को उजागर करते हुए राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (एनसीएससी) को अपने पत्र में जमीनी वास्तविकताओं से अवगत कराया है।
Andhra Pradesh: We found that 70 % of 29,841 Christian pastors who received one-time honorarium of Rs. 5K through 'Disaster Relief Fund' are holding Hindu SC/OBC Caste Certificates.
Wrote to National SC & BC commissions on this state assisted incentive to convert to Christianity— Legal Rights Protection Forum (@lawinforce) September 10, 2020
यह पत्र आपदा राहत कोष के दुरुपयोग को उजागर करता है। 20 मई के राजस्व [आपदा प्रबंधन] विभाग के सरकारी आदेश (GO) [GORT No 38]के अनुसार सभी पादरियों, इमामों और अर्चकों सहित सभी धार्मिक सेवा प्रदान करने वालों को जो महामारी की स्थिति के कारण कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं, उन्हें वित्तीय सहायता प्रदान की जानी थी ।
राजकीय कोष से लगभग 33 करोड़ रुपये की राशि का एकमुश्त भुगतान किया जा रहा है, जो कि प्रति व्यक्ति 5000 रुपये की दर पर आधारित है। सूचना के अनुसार अभी तक 31017 हिन्दू अर्चक, 7000 इमाम और 29841 पादरी योजना से लाभान्वित हुए हैं।
जब हम राज्य की जनसंख्या के आधार पर लाभार्थियों के बारे में विस्तृत विश्लेषण करते हैं तो उपरोक्त आंकड़ों में विसंगति स्पष्ट हो जाती है।हालाँकि, आधिकारिक तौर पर हिंदू जनसंख्या का लगभग 90 % भाग हैं, लेकिन मात्र 45 % लाभार्थी हिन्दू हैं, जबकि जनसंख्या मात्र 2% होने के उपरांत भी ईसाइयों का आंकड़ा 44% लाभार्थियों का है ।
ईसाई लाभार्थियों का यह विश्लेषण इस तथ्य को सामने लाता है कि बड़ी संख्या में ईसाई धर्मांतरण के बाद और पादरी प्रशिक्षण सम्पन्न करने के बाद भी अपने हिंदू जाति प्रमाणपत्र राजकीय लाभ हेतु प्रयोग कर रहे है।
इस प्रकार, वे धोखाधड़ी के माध्यम से सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने के लिए दोहरी धार्मिक पहचान रखते हुए सरकारी धन का दुरुपयोग करते हैं। वे अपने हिंदू जाति प्रमाणपत्रों का उपयोग करके अनुसूचित जाति और अन्य पिछड़ी जाति के लिए बनाई गई कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उठाते हैं और जब सरकार ईसाईयों के लिए सहायता देती है तो पहचान को बदल कर उसका भी आनंद उठाते हैं।
एलआरपीएफ के कथनानुसार वास्तविक संकट तब होगा जब जगन मोहन रेड्डी सरकार ईसाई धर्मगुरुओं को नियमित मासिक भुगतान के अपने चुनावी वादे को पूरा करना शुरू कर देगी। उन्होंने पहले से ही राज्य में पपादरियों के समक्ष प्रस्ताव को रखा है और उनसे आवेदन भी आमंत्रित किए हैं। हालांकि, यह बहुत विस्मित करने वाली बात है कि सरकार ने संभावित लाभार्थियों के लिए अपने आवेदन के साथ ईसाई समुदाय से होने का प्रमाण पत्र प्रस्तुत करना अनिवार्य नहीं किया है।
इसके प्रभाव में, उन ईसाइयों के लिए यह अत्यंत सरल हो गया है कि वे हिंदू जाति प्रमाणपत्र धारण कर हिन्दुओं के लिए योजनाओं का लाभ उठाएं और बाद में स्वयं को ईसाई के रूप में दिखाकर 5000 रुपये मासिक लाभ का दावा करें।
एलआरपीएफ ने आरोप लगाया है कि वर्तमान सरकार द्वारा प्रदान किए गए इस प्रोत्साहन से अनुसूचित जाति के लोगों को ईसाई धर्म में दीक्षित होने का प्रोत्साहन मिलेगा और साथ ही साथ उन्हें अनुसूचित जाति को प्रदत्त आरक्षण जैसे संवैधानिकअधिकारों का लाभ भी मिलेगा।पत्र में आगे कहा गया है कि सरकार मुख्य रूप से उन क्षेत्रों में चर्चों के निर्माण के लिए धन उपलब्ध कराकर धर्मांतरण को प्रोत्साहित कर रही है, जहां जनसंख्या मुख्य रूप से अनुसूचित जाति की है।
कृष्णा जिले के चिलकुरु गांव में एनजीओ समरसता सेवा फाउंडेशन द्वारा अनुसूचित जाति के एक सर्वेक्षण से यहआंकड़ा सामने आया है कि ‘माला उप-जाति’ के कुल 450 परिवारों में से 430 ईसाई हो चुके हैं और 100 में से केवल 5 ‘मडिगा परिवार’ ही हिंदू बचे हैं। यह और भी अधिक चिंता का विषय है कि कृष्णा, गुंटूर और पूर्व और पश्चिम गोदावरी सहित अधिकांश जिलों के गाँव इसी तरह की विषम जनसंख्या के आंकड़े को बताते हैं।
इसके अलावा, क्रिप्टो-क्रिश्चियनिटी का प्रश्न ऐसा है जिसकी अनदेखी अब नहीं की जा सकती है। उपलब्ध आंकड़ों तथा जनगणना सर्वेक्षणों ने इस तथ्य को इंगित किया किया है कि जहां आधिकारिक रूप से ईसाइयों की संख्या में गिरावट है, वहां आनुपातिक रूप से अनुसूचित जाति से संबंधित लोगों की संख्या में वृद्धि हुई है।
सत्य यह है कि जो लोग ईसाई धर्म में परिवर्तन करते हैं वे अपने हिंदू नामों को ही रखते हैं | साथ ही अनुसूचित जाति समुदाय से संबंधित लोगों के कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए सरकार द्वारा प्रदान किए गए लाभों को प्राप्त करने के लिए अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र भी प्राप्त करते हैं। यह हिन्दू अनुसूचित जातियों के संवैधानिक अधिकारों पर सीधेसीधे आक्रमण है|
एलआरपीएफ ने अधिकारियों से इस विषय के संज्ञान के लिए कहा है क्योंकि सरकार और प्रशासनिक व्यवस्था के सक्रिय सहयोग और मिलीभगत के बिना इतना बड़ा धोखा संभव नहीं है।
यह बताते हुए कि उनके द्वारा सर्वेक्षण किए गए लगभग 58 % ईसाई पादरी हिंदू अनुसूचित जाति के प्रमाण पत्र रखते हैं और उनमें से लगभग 13 % हिंदू-अन्य पिछड़ी जाति प्रमाण पत्र रखते हैं, एलआरपीएफ ने आयोग से इन पादरियों से, जिन्हें एकमुश्त 5000 रूपये राहत राशि मिली है, उनके धर्म और समुदाय के विवरण के साथ उनकी सूची उपलब्ध कराने की याचना की है ।
अपने सर्वेक्षण के अनुसार, उनका आरोप है कि लगभग 10 करोड़ की राशि को ईसाई पादरी इस प्रकार धोखे से प्राप्त कर चुके हैं।एलआरपीएफ ने आयोग से गहन जांच करने का अनुरोध किया है और उन धर्मान्तरित लोगों का प्रमाण पत्र निरस्त करने की प्रार्थना भी की है, जो अवैध रूप से हिंदू जाति प्रमाण पत्र धारण करते हैं |साथ ही वंचित अनुसूचित जाति -अन्य पिछड़ी जाति जैसे समुदायों के हितों की रक्षा के लिए राज्य में एक तथ्यान्वेषी मिशन(fact-finding mission) भेजने के लिए कहा है।
एलआरपीएफ अब अपने समुदाय में अल्पसंख्यक हो चुकी (लगभग 10-15 % शेष) हिंदू अनुसूचित जाति और आंध्र के अन्य पिछड़ी जाति को बचाने के लिए विभिन्न अधिकारियों से भी संपर्क कर रहा है| इन लोगों को आक्रामक ईसाई संगठनों द्वारा विलुप्ति के कगार पर धकेला जा रहा है, और खेद का विषय है इन आक्रामक संगठनों को आर्थिक और संस्थागत रूप से मजबूत समर्थन भी प्राप्त है।
(प्रमोद सिंह भक्त द्वारा इस अंग्रेजी लेख का हिंदी अनुवाद)
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