हालांकि आधिकारिक तौर पर तेलुगु भाषी राज्यों में ईसाइयों को लगभग 2.5 % बताया जाता है पर वास्तव में ईसाई कुल आबादी का 25 % हैं। यह वाई एस सी आर पी (युवजन श्रमिक रायथू कांग्रेस पार्टी) सांसद रघु रामकृष्ण राजू द्वारा दिया गया नवीनतम बयान है जो कि एक नई वास्तविकता पर रोशनी डालता है।
उन्होंने टाइम्स नाउ के कार्यक्रम पर पद्मजा जोशी से बात करते हुए यह बताया की – “हमारे राज्य में ईसाई रिकॉर्ड का वास्तविक प्रतिशत 2.5% से कम है, पर असलियत में यह 25 % से कम नहीं होगा”
The actual percentage of Christian record in our state is less than 2.5% but in reality it would be not less than 25%: Raghu Ramakrishna Raju, MP, YSRCP tells Padmaja Joshi on @thenewshour AGENDA. | #ConversionConfession pic.twitter.com/6ppT3HTXeh
— TIMES NOW (@TimesNow) May 26, 2020
हालांकि सांसद का बयान कुछ चौंकाने वाला हो सकता है लेकिन उन लोगों को यह सच मालूम है जो लंबे समय से आंध्र की राजनीति का अवलोकन कर रहे हैं।
एक रात पहले सांसद ने उसी टाइम्स नाउ शो में स्वीकार किया था कि ईसाई मिशनरि पूरे आंध्र प्रदेश और पूरे देश में विदेशी मुद्रा शक्ति का उपयोग करते हुए बड़े पैमाने पर धर्मांतरण कर रहे हैं। इस तरह के धर्मांतरण को आसान बनाने में आंध्र सरकार की भूमिका से इनकार करते हुए सांसद ने यह कहते हुए पल्ला झाड़ लिया था कि “यह पूरे देश में हो रहा है। हमसे क्या करने की अपेक्षा की जाती है। हमारे संविधान के अनुसार भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है।”
अगली रात एंकर द्वारा एक दिन पहले उनके आश्चर्यजनक रहस्य उद्घाटन पर विस्तृत चर्चा करने के लिए सांसद से पूछताछ की गई थी। तब उन्होंने जवाब दिया की –
“मैं आपको एक और आंकड़ा दूंगा जो आपको आश्चर्यचकित कर देगा। हमारे तेलुगू राज्य आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में रिकॉर्ड के अनुसार ईसाईयों का प्रतिशत मुश्किल से 2.5% है लेकिन वास्तव में किसी भी आंकड़े के अनुसार यह 25% से कम नहीं होगा। क्या यह आश्चर्यजनक नहीं है? आधिकारिक प्रमाणिक दस्तावेजों के अनुसार यह आंकडा 2.5% है पर वास्तव में चर्च जाने वाले और यीशु मसीह की पूजा करने वाले लोग 25% है। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि ये अच्छा है या बुरा है, बस आपको आंकड़ा बता रहा हूं।
पिछले 20 – 25 वर्षों से एक मांग है कि यदि कोई अनुसूचित जाति का व्यक्ति ईसाई धर्म में परिवर्तित होता है तो नियम के अनुसार वह बीसीसी (पिछड़ी जाति का इसाई) बन जाता है और वह आरक्षण के अवसर का पात्र नहीं होता, अन्यथा वह इसके पात्र होते। लेकिन अनुसूचित जनजाति एसटी (ST) यदि ईसाई धर्म में परिवर्तित होते हैं तो भी वह आरक्षण का लाभ उठाते हैं। इसलिए जो एससी (SC) ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गए हैं उनके द्वारा यह मांग की गई है कि उन्हें भी आरक्षण का लाभ उठाने की अनुमति दी जाए जोकि अन्यथा उन्हें मिलती और वह खुले तौर पर खुद को ईसाई घोषित कर सकें। चूंकि हम सार्वजनिक जीवन में हैं इसलिए हमें कई ऐसे प्रतिनिधित्व प्राप्त होते हैं। ये परिवर्तित ईसाई भी हर रविवार को चर्च जाते हैं और पादरियों को दान देते हैं। मैं इसे देश में एक घटना के रूप में बता रहा हूं। देश में हर जगह जहां भी एससी (SC) परिवर्तित हुए हैं उनके द्वारा यह अनुरोध आया है।”
आंध्र प्रदेश के आंकड़ों का सावधानीपूर्वक किया गया अध्ययन यह बताता है कि पिछले कुछ वर्षों में ईसाई धर्म का पालन करने वालों ने एससी (SC) के लाभ के लिए दिए गए प्रत्येक अवसर और सुविधा को हासिल करने के लिए हिंदू एससी (SC) जाति के प्रमाण पत्र बनवाए हैं जिससे कि उन्हें अलग-अलग क्षेत्रों में लाभ मिल सके जैसे की राजनीतिक निर्वाचन क्षेत्रों में आरक्षण नामांकन पद, नौकरी, शैक्षिक छात्रवृत्ति, हॉस्टल, आवास इत्यादि।
यह माना जाता है कि जगन रेड्डी के पिता वाईएसआर (कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के करीबी) के शासन के दौरान ईसाई धर्म में बड़े पैमाने पर धर्मांतरण हुआ था और तब से यह प्रक्रिया लगातार चल रही है जो कि कांग्रेस, टीडीपी और अब वाई एस सी आर पी के शासन में भी जारी है।
जनगणना 2011 के डेटा विश्लेषण से पता चलता है कि वाईएसआरसीपी सांसद की संभावना सही है।
जनसांख्यिकी विशेषज्ञ डॉक्टर जे के बजाज द्वारा आंध्र प्रदेश राज्य के लिए की गई जनगणना 2011, के आंकड़ों का विश्लेषण हमें बताता है की –
“भारतीय सेन्सस में गिने जाने वाले ईसाइयों की संख्या के बारे में अक्सर संदेह रहा है। यह अनुमान लगाया जाता है कि बड़ी संख्या में ईसाई धर्मा़ंतरित हैं, विशेष रूप से अनुसूचित जातियों से, और वे धर्मा़ंतरित ईसाई इस तथ्य को छुपाने की कोशिश करते हैं ताकि हिंदुओं, सिखों और बौद्धों के बीच कुछ जातियों के सदस्यों के लिए उपलब्ध विशेषाधिकार का आनंद लेते रहें। भारत में चर्च से जुड़े अंतर्राष्ट्रीय जनसांख्यिकीय विद्वानों द्वारा अनुमानित भारत में ईसाइयों की कुल संख्या अक्सर सेन्सस में गिने जाने वालों की तुलना से बहुत अधिक है।
आंध्र प्रदेश ईसाइयों की संख्या के साथ जुड़े इस अस्पष्टता का एक विशेष उदाहरण है। 1971 तक यहां उनकी संख्या लगातार बढ़ रही थी और तत्कालीन अविभाजित राज्य में अपने 18.23 लाख के चरम मूल्य पर पहुंच गयी थी। 1971 के बाद उनकी संख्या तेजी से गिरने लगी, 1981 में 14.33 लाख और 2011 में 11.30 लाख हो गई। 1968 में कुल आबादी में ईसाइयों की हिस्सेदारी 1.68% से बढ़कर 1971 में 4.39% हो गई। 1981 में यह घटकर 2.68% हो गई और अब घटकर 1.34% रह गयी है।
राज्य में जनगणना की संख्या में ईसाइयों की संख्या में यह भारी गिरावट सीधे अनुसूचित जातियों की संख्या में वृद्धि से संबंधित है। इस के दो अर्थ हो सकते हैं – या तो ईसाई धर्म में धर्मा़ंतरित लोग जनगणना और अन्य धर्मनिरपेक्ष अधिकारियों के सामने इसे अस्वीकार करने का विकल्प चुनते हैं, या उन्होंने अपने मूल धर्म की तरफ लौटने का फैसला किया है। पर ऐसा अनुमान है की वे अपने फायदे के लिए पहले विकल्प को ही चुन रहे हैं और सरकारी अधिकारियों की आखों में धूल झोंक रहे हैं।”
जॉन दयाल जैसे प्रख्यात ब्रेकिंग इंडिया के बौद्धिक और ईसाई कार्यकर्त, जो सोनिया गांधी के सप्रसंग शासन के तहत प्रमुखता से उठे, भारत में ‘क्रिप्टो क्रिश्चियन’ की अवधारणा को समझाते हुए कहते हैं कि “यह लोग एक अद्वितीय दोहरा जीवन जीते हैं जो कि सार्वजनिक क्षेत्र में और आधिकारिक अभिलेखों पर हिंदू हैं जबकि निजी तौर पर यह यीशु मसीह की भक्ति करते हैं।” दयाल ने जर्मन संघीय सरकार की साइट पर 2014 में एक लेख में लिखा है –
“आधिकारिक जनगणना भारत में ईसाइयों की संख्या के लिए सबसे अच्छा मार्गदर्शक नहीं है। किसी ने भी आधिकारिक आंकड़ों (2001 की जनगणना) पर विश्वास नहीं किया की ईसाई जनसंख्या का सिर्फ 2.3% हिस्सा हैं। कैथोलिक चर्च और विशेष रूप से पेंटेकोस्टल चर्च सामूहिक रूप से कुल आंकड़े का दावा करते हैं जो आधिकारिक जनगणना संख्या से दो या 3 गुना हो सकता है…अन्य लोग इसका अनुमान 9% लगाते हैं”
सामाजिक वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं का कहना है कि कई कारण है कि वास्तव में यह सच क्यों हो सकता है। जनगणना के संचालन में प्रगणक के सवालों ने पूर्व अछूत जातियों के सदस्यों को, जो खुद को दलित कहते हैं और सरकार द्वारा अनुसूचित जाति कहलाते हैं, खुद को ईसाई के रूप में पंजीकृत कराने में हतोत्साहित किया। यह वह समुदाय है जो कि विशेष रूप से आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब और तमिलनाडु राज्यों में खुद को आधिकारिक रूप से पंजीकृत करवाने से बचते हैं ताकि सरकार के सकारात्मक कार्यवाही कार्यक्रमों का लाभ उठाते रहें जिसमें शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण, सिविल सेवा और विधानसभाओं में भी आरक्षण शामिल है।
ईसाई धर्म में आधिकारिक रूप से धर्मांतरण करवाने से उन्हें संविधान के अनुच्छेद 341 (iii) के तहत अयोग्य बना देगा जो केवल हिंदुओं, सिखों और बौद्धों के लिए ऐसी सकारात्मक कार्यवाही का लाभ देता है। इस कानून को दो बार सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई, जिसने पहली बार इसे बरकरार रखा, लेकिन 5 साल पहले दलित ईसाइयों द्वारा एक जनहित याचिका पर सुनवाई फिर से शुरू हुई है।”
लेकिन उसी दयाल ने 1 साल बाद एक क्लियर यू-टर्न को अंजाम दिया जब वह 2011 जनगणना के आंकड़ों का उपयोग करते हैं (जो दावा करता है कि वास्तव में ईसाइयों की हिस्सेदारी 2001 में 2.35% से घटकर 2.3% हो गई है) ईसाई मिशनरियों द्वारा धर्मांतरण के हिंदू विरोध को खारिज करने के लिए उसे ‘हिंदू कट्टरपंथी बड़बड़ाना’ बताकर। बेशक यह बयान एक ईसाई प्रचार वेबसाइट में भारतीय दर्शकों को संबोधित करते हुए आया है।
बहुत से हिंदू भारत में वास्तविकता को मानने या देखने से अस्वीकार करते हैं। उदारवादी हिंदू, जो केवल नाम के हिंदू हैं, का मानना है कि धर्मांतरण में कोई हानि नहीं और वह हिंदू ‘कठोरता और कंजूसी’ का प्रतिबिंब है। यहां तक कि कुछ कट्टर हिन्दुत्ववादियों का भी यह मानना है कि दक्षिणी भारत और अन्य प्रदेशों में बड़े पैमाने पर धर्मांतरण के बारे में सभी चिंताएं बढ़ा चढ़ाकर बताई जा रही हैं। फिर कुछ ऐसे भी हिंदू हैं जो किसी भी संगठित हिंदू प्रयास में योगदान नहीं करते हैं लेकिन उनका मानना है कि मिशनरी अच्छा काम कर रहे हैं क्योंकि उनमें से कुछ लोग कुछ स्कूलों, अस्पतालों आदि के पीछे छुप कर धर्मांतरण का काम कर रहे हैं। अब एक चौथी श्रेणी है जिसने अपने सिर रेत में गाड़ दिए हैं, यह मानते हुए कि हिंदू धर्म तो हजारों सालों से चला आ रहा है इसलिए धर्मनिरपेक्ष राज्य द्वारा उत्पन्न खतरा भी समाप्त हो जाएगा।
क्या रघु रामकृष्ण राजू ने जो भी कहा, उसके पीछे ईसाई धर्म में धर्मांतरित अनुसूचित जाति के लोगों को आरक्षण दिलवाने का उद्देश्य है, यह तो समय ही बताएगा। लेकिन उन्होंने ईसाई मिशनरी माफिया से देश की अखंडता के लिए स्पष्ट और वर्तमान खतरे के बारे में चेतावनी की घंटी बजाई है। क्रिश्चियानिटी और इस्लाम जैसे वैश्विक रूप से आक्रामक धर्मों के प्रचार को अवैध घोषित करने के लिए अनुच्छेद 25 में संशोधन किया जाना चाहिए।
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