spot_img

HinduPost is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma

Will you help us hit our goal?

spot_img
Hindu Post is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma
37.2 C
Sringeri
Tuesday, March 19, 2024

रक्षाबंधन को पितृसत्ता का त्यौहार बताने वाला फेमिनिज्म, तालिबान के सम्मुख नतमस्तक है!

पूरे भारत में आज रक्षाबंधन का पर्व मनाया जा रहा है। हालांकि रक्षाबंधन का यह पर्व मूलत: रक्षा के वचन का पर्व है, जिसमें जो रक्षासूत्र बांधता है, वह उससे रक्षा का वचन लेता है, जिसकी कलाई पर वह यह रक्षासूत्र बाँध रहा है। यह रक्षा सूत्र किसी के भी हाथ पर किसी के भी द्वारा बांधा जा सकता था।

कहते हैं राजा बलि ने जब भगवान विष्णु को पाताल लोक में ही रोक लिया था, तब माता लक्ष्मी ने राजा बलि के हाथ पर धागा बांधकर उनसे वचन लिया कि वह उनके पति को अपने बंधन से मुक्त करेंगे। राजा बलि ने माता लक्ष्मी की बात मानी और भगवान विष्णु को वचन से मुक्त किया।

पुराणों में देवेन्द्र और वृत्रासुर नामक असुर के बीच संघर्ष का प्रकरण आता है। वृत्रासुर को यह वरदान प्राप्त था कि वह किसी भी अस्त्र शस्त्र से परास्त नहीं होगा, अत: उसकी हत्या के निमित्त ही महर्षि दधीचि ने अपनी देह का परित्याग किया था और फिर उनकी अस्थियों से वज्रास्त्र बना जिससे उस वृत्रासुर का वध हुआ। जब वह युद्ध करने के लिए जा रहे थे तो इंद्र की पत्नी शची ने अपने समस्त तपोबल से अभिमंत्रित करके एक रक्षासूत्र इंद्र अर्थात अपने पति की कलाई पर बांधा। और उस दिन भी कहा जाता है कि श्रावण की पूर्णिमा ही थी। इंद्र उस संग्राम में विजयी हुए। उन्होंने वरदान दिया कि जो भी इस दिन रक्षासूत्र बांधेगा वह दीर्घायु होगा और विजयी होगा।

इस प्रकार यह स्पष्ट है कि यह मात्र रक्षा का वचन नहीं होकर स्त्री द्वारा अपनी समस्त शक्तियों के साथ उस व्यक्ति की विजय की कामना करना था, जिसकी कलाई पर वह राखी बांधती थीं।

प्राचीन काल में रक्षासूत्र एवं रक्षाबंधन का उद्देश्य क्या था, यह इस थ्रेड में पढ़ा जा सकता है:

परन्तु प्रश्न यह है कि इतनी समृद्ध परम्परा एवं इतने वृहद उद्देश्य वाले पर्व को स्त्री को निर्बल बताने वाला पर्व क्यों बता दिया गया? कि लड़की अपने भाई की कलाई पर राखी बांधेगी और उसके बदले में भाई उसकी रक्षा करेगा। एक भाई का उद्देश्य सदा ही अपनी बहन की रक्षा करना होता है। और रक्षासूत्र के लिए स्त्री पुरुष का बंधन नहीं था, शिष्य अपने गुरु को भी यह धागा बांधते थे, ब्राह्मण क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्रों को राखी बांधते थे। और हर कोई राजा को राखी बांधता था।

फिर इस पर्व को स्त्री को दुर्बल बताने वाला नैरेटिव कैसे आरम्भ हो गया? वामपंथियों ने एक परस्पर सहभागिता वाले पर्व को स्त्री विरोधी कैसे स्थापित कर दिया? रक्षाबंधन, जो समाज के हर वर्ग का परस्पर यह कहने वाला पर्व था कि वह एक दूसरे की रक्षा करेंगे, वह किसी भी आपदा में एक दूसरे का साथ देंगे तथा स्त्री की रक्षा करेंगे, उस पर्व को पितृसत्तात्मक पर्व बताकर हिन्दू स्त्रियों को भ्रमित करने का प्रयास किया।

इतना ही  नहीं इस पर्व को पितृसत्तात्मक बताते हुए लैंगिक रूप से भेदभाव वाला पर्व बताया जाने लगा। बहन अर्थात लड़की को इन्होनें परजीवी लता की तरह बता दिया, जो अपनी सुरक्षा, जीवन की समस्या या किसी भी निर्णय के लिए भाई पर आश्रित हो जाती है। कहानियों में रक्षाबंधन के खिलाफ एक नैरेटिव चलाया जाने लगा और बार बार यह कहा जाने लगा कि लड़की किसी की गुलाम नहीं है जो वह राखी बांधे।

इन वामपंथियों ने और फेमिनिस्ट वेबसाइट्स ने पहले तो इस पर्व को भाई और बहन के बीच ही संकुचित कर दिया, और फिर भाई अर्थात पुरुष को ऐसे व्यक्ति के रूप में चित्रित किया जो अपनी बहन अर्थात लड़की के सपनों का हत्यारा है। भाई का अर्थ उन्होंने उस व्यक्ति से कर दिया, जो अपनी बहन की रक्षा करता है और उस पर नियंत्रण करता है।

जबकि कोई भी भाई सहज रूप से अपनी बहन पर नियंत्रण लगाना पसंद नहीं करता है। महाभारत में कृष्ण और सुभद्रा का उदाहरण प्राप्त होता है, जिसमें अर्जुन से विवाह करने के लिए कृष्ण स्वयं ही अपनी बहन को भगा देते हैं।  जबकि महाभारत में रुक्मिणी जब कृष्ण के साथ भागती हैं, तो उनके भाई विरोध करते हैं, परन्तु रुक्मी का मूल चरित्र ही आसुरी है एवं कृष्ण लड़की द्वारा वर चयन का अधिकार सबसे महत्वपूर्ण बताते है।

रामायण में रावण भी अपनी बहन शूपर्णखा पर विश्वास करता था तभी शूपर्णखा की नियुक्ति महत्वपूर्ण स्थानों के लिए उसने की थी। ऐसे एक नहीं कई प्रसंग हैं, जिनमें हिन्दू स्त्रियों का साथ उनके भाइयों ने दिया था। परन्तु साथ किसने नहीं दिया था, उसका नाम यह वामपंथी लेना नहीं चाहते।

रजिया सुल्ताना को गद्दी पर बैठाया जाना उसके भाई ही बर्दाश्त नहीं कर पाए थे और मुगल बादशाह शाहजहाँ की बेटी तो अपने भाइयों के खिलाफ हो गई थी और भाई अपनी बहनों के! कबीलाई मानसिकता अपनी औरतों को गुलाम मानती थी और वहीं से यह अवधारणा आई कि बहनों के जीवन पर भाइयों का नियंत्रण है। लैंगिक असमानता मुस्लिमों के आगमन के बाद आरम्भ हुई, और जो आज तक चल रही है। मगर वामपंथी फेमिनिज्म उन तालिबानियों को औरतों के अधिकारों का हिमायती बता रहा है, जो रोज ही अपने ही मजहब की औरतों को सेक्स स्लेव बना रहे है, खुले बाज़ार में बेच रहे हैं, खाना न पसंद आने पर जला रहे हैं और परदे में बंद कर चुके हैं।

उनके लिए रेशम का धागा, जो लिंग और वर्ग से परे हैं, शोषण का प्रतीक है और काली पोलीथिन में पैक करने वाले और औरतों की बोली लगाने वाले तालिबानी औरतों की आज़ादी के! तभी वह तालिबान और कट्टर इस्लाम के खिलाफ बोलने से डरती हैं, उनसे प्रेम करती हैं और रेशम के कोमल धागे से नफरत! 


क्या आप को यह  लेख उपयोगी लगा? हम एक गैर-लाभ (non-profit) संस्था हैं। एक दान करें और हमारी पत्रकारिता के लिए अपना योगदान दें।

हिन्दुपोस्ट अब Telegram पर भी उपलब्ध है हिन्दू समाज से सम्बंधित श्रेष्ठतम लेखों और समाचार समावेशन के लिए  Telegram पर हिन्दुपोस्ट से जुड़ें 

Subscribe to our channels on Telegram &  YouTube. Follow us on Twitter and Facebook

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest Articles

Sign up to receive HinduPost content in your inbox
Select list(s):

We don’t spam! Read our privacy policy for more info.

Thanks for Visiting Hindupost

Dear valued reader,
HinduPost.in has been your reliable source for news and perspectives vital to the Hindu community. We strive to amplify diverse voices and broaden understanding, but we can't do it alone. Keeping our platform free and high-quality requires resources. As a non-profit, we rely on reader contributions. Please consider donating to HinduPost.in. Any amount you give can make a real difference. It's simple - click on this button:
By supporting us, you invest in a platform dedicated to truth, understanding, and the voices of the Hindu community. Thank you for standing with us.