महर्षि विश्वामित्र रामजी और लक्ष्मणजी को लेकर मिथिला की ओर प्रस्थान कर रहे हैं। मार्ग में गंगा नदी अपने सम्पूर्ण सौन्दर्य के साथ बह रही हैं। जीवनदायनी गंगा, मोक्षदायनी गंगा। जिनके स्पर्श मात्र से ही समस्त कष्ट, समस्त पाप धुल जाते हैं। वह गंगा, जिन्हें उनके ही वंश के राजा भागीरथ इस धरा पर लेकर आए थे। प्रभु श्री राम जानना चाहते हैं कि लोक को पावन करने वाली गंगा के इस धरा पर आने का उद्देश्य क्या है?
विस्तरं विस्तरज्ञोऽसि दिव्यमानुषसंभवम
त्रीन्पथो हेतुना केन प्लावयेल्लोकपावनी (वाल्मीकि रामायण/बालकाण्ड)
गंगा त्रिपथगा है। प्रभु श्री राम महर्षि विश्वामित्र से प्रश्न करते हैं कि हे महत्मन, हमें बताइए कि इनका नाम तीनों लोकों में त्रिपथगा किन कर्मों के कारण हुआ।
प्रभु श्री राम, गंगा की कथा सुनने के लिए जितने उत्सुक हैं, उतने ही उत्सुक हैं ऋषि विश्वामित्र गंगा की यह कथा सुनाने के लिए। क्योंकि गंगा का इस धरा पर पदार्पण साहस की ऐसी गाथा है, जिसकी तुलना किसी से नहीं हो सकती है। वह यह प्रमाणित करती है कि हिन्दू पुरुष अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए, अपने वंशजों की मुक्ति के लिए हर प्रकार के दुस्सहय कार्यों को कर सकता है। एक पीढ़ी ही नहीं बल्कि एक के बाद कई पीढ़ियाँ अपने पुरखों के लिए सर्वस्व बलिदान कर सकती हैं। वह लोक कल्याण के लिए स्व-न्योछावर कर देते हैं।
अयोध्या में सगर नामक राजा थे। उन्होंने अश्वमेध यज्ञ किया। राजा सगर ने अयोध्या में यज्ञ किया एवं उनका घोड़ा पहुँचा कपिल मुनि के आश्रम में, अर्थात जो आज का बंगाल है।
गंगा जी के धरती पर अवतरण को लेखिका सरोजबाला ने अपनी पुस्तक “रामायण की कहानी, विज्ञान की जुबानी” में अत्यंत वैज्ञानिक पद्धति से लिखा है। उन्होंने रामायण की कहानी विज्ञान की जुबानी में खगोलीय सन्दर्भों के साथ रामायण की वैज्ञानिकता को प्रमाणित किया है। हो सकता है कि हम उनके द्वारा स्थापित कालखंड से सहमत न हों, परन्तु उन्होंने जिस प्रकार से गंगा जी के अवतरण की कथा कही है एवं इस धरा पर पदार्पण की कथा का भूगोल बताया है, वह सत्य प्रतीत होता है।
अयोध्यापुरी के राजा सगर के अश्व को खोजने में उनके सभी पुत्र कपिल मुनि के श्राप से भस्म हो चुके हैं। अश्व एवं पुत्रों की कोई सूचना न पाकर राज सगर ने अपने पौत्र अंशुमान को भेजा! अंशुमान ने भस्म का ढेर देखा। वह तर्पण करना चाहते हैं, परन्तु इतने लोगों के तर्पण के लिए जल कहाँ से लाएं। वह दुखी हैं। इस पर गरुड़ उनसे कहते हैं कि हे पुरुष सिंह, तुम शोक मत करो, इनका वध लोक सम्मत हुआ है। अब तुम हिमालय की ज्येष्ठ पुत्री गंगा नदी के जल से अपने पितरों का तर्पण करो।
राजा सगर, उनके पौत्र अंशुमान एवं उनके पुत्र राजा दिलीप तमाम प्रयासों के उपरान्त भी गंगा जी को धरती पर नहीं ला पाए। फिर आए राजा दिलीप के पुत्र भागीरथ। जैसे उनका जन्म ही गंगा जी को धरती पर लाने के लिए हुआ था। वह सूर्यवंश के चवालीसवें राजा थे। उन्होंने अपने पूर्वजों के तर्पण के लिए तपस्या की। इस तपस्या के उपरान्त ब्रह्मा जी ने भागीरथ जी को गंगा जी को धरा पर ले जाने का एवं पुत्रवान होने का वरदान दिया।
तदोपरांत गंगाजी अपने सम्पूर्ण वेग से धरा पर बह निकलीं। इसका वर्णन वाल्मीकि रामायण में इस प्रकार है
ततो हैमवती ज्येष्ठा सर्वलोकनमस्कृता
तदा सरिन्महद्रूप कृत्वा वेगं च दु:सहम!
आकाशादपतद्नाम शिवे शिवशिरस्युत (वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड 43/4 और 5)
इसका जो परम्परागत अर्थ वह यही है कि तब सब लोकों के नमस्कार करने योग्य गंगा जी, महद्रूप धारण कर एवं दु:सह वेग के साथ, आकाश से शिव जी के मस्तक पर गिरीं!
लेखिका सरोज बाला ने इनका वैज्ञानिक अर्थ लेते हुए लिखा है कि हेमवती ज्येष्ठा शब्द को गंगा के लिए प्रयोग किया गया है, और शिव के मस्तक शब्द का प्रयोग शिवलिंग की चोटी के लिए किया गया है। तथा शिव के मस्तक शब्द का प्रयोग शिवलिंग की चोटी के लिए किया गया है। जटामंडल का अर्थ सर्पाकार ग्लेशियर से है। अत: सरोज बाला इन श्लोक का वैज्ञानिक अर्थ लेते हुए लिखती हैं कि पावन-पवित्र गंगा स्वर्ग जैसी ऊँची शिवलिंग की पहाड़ियों से सर्पाकार ग्लेशियरों पर अत्यधिक बल से अवतरित हुईं एवं उसके उपरान्त पृथ्वी पर प्रवाहित होने का मार्ग न मिल पाने के कारण बहुत लम्बे समय तक ग्लेशियरों में घूमती रहीं।
गंगा जी को लाने के भागीरथ प्रयास अब पूर्ण होने को थे। ऊपर के जो श्लोक हैं उन्हें भौतिक अर्थ में हम ग्रहण करेंगे तो पाएंगे कि गंगा जी शिव लिंग रूपी पर्वत के चारों ओर घूमती रहीं एवं उन्हें नीचे आने का मार्ग प्राप्त नहीं हुआ। तथा इसका आध्यात्मिक अर्थ यही है कि वह महादेव की जटाओं में फंस गईं एवं उन्हीं में उलझी रही।
फिर भागीरथ जी ने महादेव की तपस्या की या कहें गंगा जी को लाने के लिए शिवलिंग की चोटी से मार्ग बनाया! जैसे ही गंगा जी को मार्ग प्राप्त हुआ या कहें जैसे ही वह महादेव की जटाओं से निकलीं, वैसे ही वह धरा की ओर अपने वेग को सम्हालती हुई चल दीं। भागीरथ उसी मार्ग से होते हुए चले, जिस मार्ग पर उनके भाई तर्पण के लिए व्याकुल थे। इस प्रकार भागीरथ की वर्षों की तपस्या तथा कठिन श्रम के कारण मोक्षदायनी गंगा इस धरा पर अवतरित हुईं। तभी उन्हें भागीरथी भी कहा जाता है
भागीरथ आगे आगे चल रहे हैं, एवं गंगा उसी मार्ग पर! यह अत्यंत वैज्ञानिक दृष्टिकोण है। क्योंकि सारा मार्ग तो पहले ही खोदा जा चुका है, उसी मार्ग पर गंगा जी अपने सम्पूर्ण वैभव के साथ धरा को पवित्र करती आ रही हैं तथा भागीरथ जी के पुरखों के तर्पण का मार्ग भी प्रशस्त हो रहा है।
जो पन्थ बार बार रामायण को असत्य कहते हैं, वह गंगा के मार्ग को आज तक झुठला नहीं पाए हैं। अत: गंगा जी की यह कथा रामायण की सत्यता को बार बार प्रमाणित करती है!
गंगा जी इसी लिए त्रिपथगा कहीं गयी हैं क्योंकि वह स्वर्ग से उतर कर इस धरा पर आती हैं, इस धरा को पवित्र करती हैं एवं फिर सागर में मिल जाती हैं। गंगा के कारण सागर के जलस्तर में वृद्धि हुई है। इसका उल्लेख भी वाल्मीकि रामायण के युद्ध कांड में प्राप्त होता है जब राम सेतु निर्माण को लेकर व्यथित हैं। तब विभीषण श्री राम से कहते हैं कि सागर तो आपको मार्ग देंगे ही, आपको मार्ग अवश्य बताएंगे क्योंकि श्री राम के सूर्यवंशी पूर्वजों के द्वारा ही तो सागर में जल संवर्धन हुआ है।
वैशाख शुक्ल सप्तमी ही वह तिथि थी जब गंगा जी परमपिता ब्रह्मा जी के कमंडल से अवतरित हुई थीं। कहा जाता है कि इस दिन गंगा जी में स्नान करने से पुण्य प्राप्त होता है।
गंगा जी के अवतरण की यह कथा हिन्दू परिवार की महानता एवं त्याग की कथा है। यह स्वार्थ पर परमार्थ की विजय की कथा है! यह प्रतिज्ञा पूर्ण करने के उपक्रम की कथा है। यह कथा है कि परिवार ही सर्वोपरि है, यदि परिवार साथ होगा तो उसके साथ लोक कल्याण स्वत: ही संबंद्ध हो जाएगा।
वामपंथी इसी कारण परिवार को शोषण का प्रथम द्वार बताते हैं, जबकि हिन्दू परिवार मुक्ति का द्वार है। वह लोक मुक्ति का द्वार है। परिवार से प्रेम होगा तभी गंगा जी को भी लाने की उत्कंठा प्रतीत होगी, परिवार से प्रेम होगा तो धर्म पालन की चाह उत्पन्न होगी। परिवार से प्रेम होगा तभी अन्याय का प्रतिकार करने का साहस आएगा। एवं गंगा अवतरण जैसी हमारी कथाएँ परिवार को एक होकर रखने का ही सन्देश देती हैं। यही कारण हैं कि इन्हें वामपंथियों द्वारा बार बार अवैज्ञानिक बताकर प्रहार किया जाता है, एवं इनके बहाने हमारी पारिवारिक व्यवस्था पर प्रहार किया जाता है।
परन्तु गंगा जी तो अपनी ही राह पर चल रही हैं! लोक का पोषण एवं लोक की मुक्ति की राह पर! वामपंथ हमें लोक से दूर करता है जबकि हमारी रामायण और महाभारत हमें लोक से जोड़ती हैं!
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