पिछले हफ्ते तुर्की के इस्लामवादी राष्ट्रपति ने घोषणा की, कि हागिया सोफिया को एक मस्जिद में बदल दिया गया है। हाल ही में एक अदालत के फैसले ने इस संग्रहालय को मस्जिद में रूपांतरण की अनुमति दी।
पेगॅन स्थल से मस्जिद तक का सफर
हागिया सोफिया पर लगभग पूरा विमर्श इस बात पर केंद्रित है कि यह कैसे बाइजेंटाइन साम्राज्य, जिसे पूर्वी रोमन साम्राज्य के रूप में भी जाना जाता है, द्वारा निर्मित एक चर्च था , जिसे मुस्लिम तुर्कों द्वारा हथिया लिया गया । पोप सहित, सभी ईसाई नेताओं ने इस आशय के बयान जारी किए हैं।
इस मत के अनुसार, हागिया सोफिया के चर्च को बाइजेंटाइन सम्राट जस्टीनियन द्वारा 537 ईस्वी में बनाया गया था। यह बाइजेंटाइन वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना है। मुस्लिम उस्मानी तुर्कों से पहले यह 1204 में यूरोप के रोमन कैथोलिक क्रुसेडरों द्वारा भी लूटा और भ्रष्ट किया गया था। जब उस्मान राजवंश ने 1453 में कांस्टेंटिनॉपल/कुस्तुन्तुनिया/इस्ताम्बुल पर विजय प्राप्त की तो इसे एक मस्जिद में बदल दिया गया। घंटियां, वेदी, और अन्य ईसाई अवशेषों को नष्ट कर दिया गया और यीशु, उनकी मां मेरी, इसाई संतों और स्वर्ग दूतों को दर्शाते हुए भित्ति चित्रों को अंततः नष्ट कर दिया गया। तुर्कीयों ने बाद में इनमें अजान के लिए मीनारों का भी निर्माण किया।
प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात् मुस्तफा कमाल पाशा ने सत्ता पर जब कब्जा किया तो तुर्की को पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष बनाने के बाद 1935 में हागिया सोफिया को एक संग्रहालय का रूप दिया। आज भी ये तुर्की के सबसे अधिक प्रसिद्ध और लोकप्रिय पर्यटक स्थलों में से एक है।
जो इस पूरी कथा में वर्णित नहीं है वह यह है कि, हागिया सोफिया मूल रूप से एक पेगॅन मंदिर था !
हागिया सोफिया – कभी मूर्तिपूजक तो कभी रोमन, कैथेड्रल और फिर मस्जिद। केमाल अतातुर्क ने इसे 1933 में एक संग्रहालय बना दिया था।
(निर्मला सीताराम : 6 अक्टूबर 2015)
Hagia Sophia- once a pagan worship, then a Roman, a Cathedral, & a mosque. Kamal Ataturk made it a museum in 1933. pic.twitter.com/G9Ck4Hf8TK
— Nirmala Sitharaman (@nsitharaman) October 6, 2015
पहला हागिया सोफिया (जिसका अर्थ है – धार्मिक प्रज्ञता) चर्च 360 ईस्वी पूर्व में एक पेगॅन मंदिर के स्थान पर बनाया गया था। इसे कई बार नष्ट करके पुनर्निर्मित किया गया। वर्तमान संस्करण 537 में जस्टिन के शासनकाल के दौरान बनाया गया था। हागिया सोफिया के निर्माण के लिए कई पुराने पेगॅन मूर्तियों और भवनों को लूट लिया गया था। उनके अवशेष अभी भी वहां देखे जा सकते हैं। हागिया सोफिया के वास्तुविद् भी मूर्तिपूजक पेगॅन ही थे।
यूरोप के मूर्तिपूजक, बहुतदेववादी धर्मों के क्रमिक दमन और विनाश को समझने के लिए कैथरीन निक्सी के “द डार्कनिंग एज: द क्रिश्चन डिस्ट्रक्शन ऑफ द क्लासिकल वर्ल्ड” से बेहतर कोई किताब नहीं हो सकती है, जिसकी हिंदूपोस्ट ने पहले के लेख में समीक्षा की है।
इस तरह एक मूर्तिपूजक पवित्र स्थल पहले ईसाइयों और फिर मुसलमानों के पवित्र स्थान में परिवर्तित हो गया। आइए देखते हैं कि हागिया सोफिया को मस्जिद में परिवर्तित करने में मुसलमानों के क्या तर्क हैं।
इस्लामवादियों के तर्क
रूस और ग्रीस के पूर्वी ऑर्थोडॉक्स चर्च अधिकारियों के क्षुब्ध बयानों और यूनेस्को की अस्वीकृति के बावजूद इस्लामवादियों का कहना है कि उनका ये कदम सही है। उनके तर्क हैं कि :
- 1453 के बाद लगभग 480 वर्षों तक यह स्थान मस्जिद के रूप में रहा ।उनके अनुसार, यदि एक बार कोई स्थान मस्जिद बन जाए तो उसे फिर किसी और कार्य के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता ।इसे संग्रहालय में बदलना एक गलती थी और इसे अब ठीक कर दिया गया है।
- उस्मानी विजय के बाद, यह स्थान तुर्क सम्राट की निजी संपत्ति बन गई। बीसवीं शताब्दी में क्रांति के बाद उन्होंने इसे एक मस्जिद के रूप में इस्तेमाल करने के लिए एक वक्फ को दे दिया। इस प्रकार कानूनी रूप से मुसलमानों का दावा करना तर्कसंगत है।
- तुर्की एक स्वायत्त राष्ट्र है और हागिया सोफिया के चरित्र को परिवर्तित करके वह अपने संप्रभुता के अधिकार का प्रयोग कर रहा है।
- तुर्की की आबादी बहुसंख्यक मुस्लिम है और वहां ईसाई नगण्य संख्या में हैं। इसलिए एक मस्जिद बहुमत के उद्देश्य से काम करेगी जबकि चर्च किसी के काम या फायदे का नहीं है।
हिंदू मंदिर और अब्राहमी साम्राज्यवाद
हागिया सोफिया ही अब्राहमी साम्राज्यवाद का एकमात्र शिकार नहीं है। भारतीय उपमहाद्वीप में हजारों हिंदू मंदिरों को इस्लामी आक्रमणकारियों ने 712 से 1760 के बीच की अवधि में नष्ट कर दिया था। ईसाइयों ने भी हिंदू मंदिरों को हड़पने की शुरुआत की थी, हालांकि इनकी संख्या कम थी। उदाहरण के लिए, प्रसिद्ध मायलापुर सेंट थॉमस चर्च एक शिव मंदिर पर बनाया गया था।
हागिया सोफिया और हिंदू मंदिर
1720 के बाद मराठों द्वारा मंदिरों के अंधाधुंध विनाश को रोक दिया गया था। लेकिन बांग्लादेश और पाकिस्तान में इस तरह की घटनाएं आज भी जारी हैं। हमने हाल ही में देखा है कि कैसे इस्लामाबाद में एक निर्माणाधीन हिंदू मंदिर को मुस्लिमों द्वारा अपवित्र किया गया, और वहाँ के हिंदुओं को पिछले हफ्ते नरसंहार की धमकी भी दी गयी थी। ब्रिटिश उपनिवेशी भी हिंदू मंदिरों के विनाश से दूर रहते थे,लेकिन मंदिरों के नियंत्रण में अधिक रूचि रखते थे।
दुर्भाग्य से मार्क्सवादी इतिहासकारों ने इस विषय पर चर्चा से परहेज किया है। इस सम्बन्ध में सीताराम गोयल, अरुण शौरी, हर्ष नारायण, जय दुबाषी और रामस्वरूप जी द्वारा लिखित “हिंदू टैम्पल्स – व्हाट हैपंड टू दैम” पठनीय है। इस पुस्तक में, 2000 से अधिक मंदिरों का मस्जिदों में बलात परिवर्तन होने का विवरण है जो की मुस्लिम इतिहासकारों की पुस्तकों के उद्धरणों के द्वारा एवं शिलालेखों आदि द्वारा भी समर्थित है। लेखकों के अनुसार यह संख्या तो विशाल हिमशैल की सिर्फ एक नोक है। हजारों अन्य मंदिर, मस्जिदों के नीचे दफन हैं ।
दरअसल, कुछ मामूली अपवादों को छोड़ कर, यूपी और बिहार के मैदानी इलाकों में तो 300 साल से अधिक पुराना एक भी मंदिर नहीं है, जबकि तमिलनाडु, केरल, आंध्र और कर्नाटक में हजारों गावों में हजारों साल पुराने मंदिर हैं। इसका श्रेय विजयनगर साम्राज्य को जाता है जिसने मुसलमानों से इन क्षेत्रों को जीतने के बाद कई मंदिरों की रक्षा तथा पुनर्निर्माण किया।
उत्तर भारत में हिंदुओं के सबसे प्रसिद्ध और प्रतिष्ठित स्थानों को तोड़कर मस्जिदों का निर्माण किया गया था। इसमें काशी विश्वनाथ और मथुरा कृष्ण जन्मभूमि के स्थल भी शामिल हैं। राम जन्मभूमि का भी विध्वंस कर दिया गया था और उसके उपर बाबरी मस्जिद का निर्माण किया गया था।मुसलमान शासकों ने मदुरई में मीनाक्षी सुंदरेश्वर मंदिर और पुरी में जगन्नाथ मंदिर को भी अपवित्र किया और नुकसान पहुँचाया । दुर्लभ संकल्प के एक क्षण में हिंदुओं ने राम जन्मभूमि को कब्ज़े से मुक्त कराया और भगवान की कृपा से अब वहां एक मंदिर का निर्माण होने जा रहा है।
निष्कर्ष
ईसाई धर्म का इतिहास, बुतपरस्त स्थलों, अवधारणाओं और त्यौहारों को आत्मसात्करण करने और उनका ईसाईकरण करने का रहा है। इस्लाम की शुरुआत, काबा पर कब्जा करने और काबा के मंदिरों से मूर्तियों को हटाने और नष्ट करने और उन मंदिरों को इस्लामिक स्थल में बदलने के साथ होती है। उन्होंने सभी गैर मुस्लिमों पर मक्का में प्रवेश करने पर प्रतिबंध लगा दिया जो कि आज तक बरकरार है।
इस तरह अन्य धर्मों के स्थलों को अधिग्रहण करके उन्हें इब्राहिमक स्थलों में परिवर्तित करने का तरीका हर जगह ईसाई और मुस्लिम पंथ की एक प्रमुख विशेषता रहा हैं। पेगॅन मंदिरों में हागिया सोफिया,दक्षिण अमेरिका की माया और इंका सभ्यता के मंदिर, हिंदुओं के मंदिर, सभी इस साम्राज्यवाद के शिकार हुए हैं।
भारत में हिंदुओं के सबसे पवित्र स्थान, काशी और मथुरा मुसलमानों के कब्जे में हैं । यहां तक कि एक आकस्मिक आगंतुक भी साफ़ देख सकता है कि ये नष्ट किए गए मंदिरों के ऊपर बनाए गए हैं।
अब समय आ गया है कि इस अब्राह्मिक साम्राज्यवाद को मुंहतोड़ जवाब दिया जाए। अब हर जगह के हिंदुओं को, खोए हुए मंदिरों को वापस लाने का प्रयास करना चाहिए। सभी मंदिर जो मस्जिदों में परिवर्तित किए गए, जिनके प्रमाण भी उपलब्ध हैं, उन्हें वापस मांगा जाना चाहिए। इस्लामवादी की यह चाल नहीं चलेगी कि “हमने हागिया सोफिया और हिंदू मंदिरों पर तलवार से विजय प्राप्त की इसलिए हम उन स्थानों के मालिक हैं” और फिर जब हिंदू अपने मंदिरों को बलपूर्वक वापस लेते हैं तो पीड़ितों होने का ढोंग करें |
नोट : यह लेख हिन्दुपोस्ट पर प्रकाशित अंग्रेजी के लेख से रागिनी विवेक कुमार द्वारा अनुदित किया गया है, जिसे आप यहाँ पढ़ सकते हैं|
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