कोरोना की दूसरी लहर में उत्तर प्रदेश की गयी रिपोर्टिंग सभी को याद होगी और याद होगा, गंगा जी के किनारे शवों के साथ किया गया मीडिया द्वारा दुर्व्यवहार और क्रांतिकारी लेखिकाओं एवं लेखकों द्वारा किये गए पोस्ट! कविताएँ, झूठी संवेदनाएं और केवल किसलिए? इसलिए जिससे कि उत्तर प्रदेश और केंद्र सरकार को बदनाम किया जा सके क्योंकि वह आपके विचारों के अनुकूल नहीं हैं?
[Dead bodies – Covid19] Allahabad High hears a matter pertaining to the dead bodies buried near river ganga at different ghats near Prayagraj pic.twitter.com/9gn0cnalwu
— Bar & Bench (@barandbench) June 18, 2021
आज उत्तर प्रदेश में प्रयागराज उच्च न्यायालय में इसी मामले को लेकर एक याचिका को खारिज कर दिया गया। मुख्य न्यायाधीश संजय यादव एवं न्यायमूर्ति प्रकाश पाड़िया की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता से प्रश्न किया कि इस जनहित वाले कारण में आपका योगदान क्या है? यदि आप जन कल्याण का सोचने वाले व्यक्ति हैं, और आपने इनमें से कितने लोगों का सम्मानजनक अंतिम संस्कार कराया है?”
इस पर याचिकाकर्ता वकील प्रणवेश ने कहा कि वह व्यक्तिगत रूप से वहां पर गए हैं और वहां की स्थिति काफी खराब है।
उस पर न्यायालय का कहना था कि “जो मामले आप उठा रहे हैं, उसमे आपका व्यक्तिगत योगदान क्या है? हमें बताएं कि क्या आपने शवों को बाहर निकाला और उनका अंतिम संस्कार किया?”
फिर न्यायालय का कहना था कि “गंगा के तटों पर रहने वालों के कुछ रस्म एवं संस्कार होते हैं, तो आप हमें बताएं कि आपने इस सम्बन्ध में क्या योगदान किया है?”
इस पर न्यायालय ने कई बार याचिकाकर्ता से प्रश्न किया कि यह याचिका कैसे जनहित की हो सकती है? परन्तु कोई भी संतोषजनक उत्तर न्यायालय को प्राप्त नहीं हुआ। फिर न्यायालय ने कहा कि “पहले आपको कुछ बेहतर शोध करके आना चाहिए और आप इस याचिका को तुरंत वापस लें, क्योंकि हम ऐसी याचिकाओं को नहीं सुनेंगे!”
इसमें सबसे महत्वपूर्ण बिंदु जो न्यायालय ने स्पष्ट किया, उसे मीडिया में सभी को ध्यान से पढ़ना चाहिए। याचिकाकर्ता ने जब कहा कि यह राज्य का उत्तरदायित्व है कि वह धार्मिक संस्कारों के अनुसार अंतिम संस्कार करे एवं गंगा किनारे शवों का निस्तारण करे।
फिर न्यायालय ने कहा “राज्य को ऐसा क्यों करना चाहिए? यदि किसी परिवार में कोई मृत्यु हो जाती है तो क्या यह राज्य का उत्तरदायित्व है? और कई विचारों का पालन करने वाले कई सम्प्रदायों में, समुदायों में अंतिम संस्कार की कई प्रक्रियाएं हैं, और आपने कोई भी शोध नहीं किया है।”
न्यायालय ने अंत में याचिका खारिज करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता ने गंगा के किनारे रहने वाले विभिन्न समुदायों के बीच जो भी प्रचलित संस्कार हैं, उन पर शोध नहीं किया है, अत: इसे खारिज किया जाता है!”
अब प्रश्न यह उठता है कि यदि याचिकाकर्ता ने यह शोध नहीं किया था तो क्या मीडिया में किसी ने यह शोध किया था कि गंगा किनारे अंतिम संस्कार की क्या रस्में हैं?
जब गंगा किनारे इस प्रकार शव दफनाने के नित नए वीडियो वायरल हो रहे थे, तो उन्हीं दिनों यह निकल कर आया था कि कई लोगों में गंगा किनारे शव दफनाने की परम्परा रही है और जो तस्वीर वायरल हुई थी वह वर्ष 2018 की थी, जब कुम्भ 2019 के लिए तीर्थराज प्रयागराज में विकास कार्य चल रहे थे। और उस समय कोई भी कोरोना जैसी आपदा नहीं थी
परन्तु गंगा किनारे शवों को लेकर, बिना परम्परा जाने विदेशी मीडिया, वाम मीडिया, लिबरल मीडिया ने भारत को और हिन्दुओं को बदनाम करने का जो षड्यंत्र किया, वह निंदनीय है एवं अक्षम्य है!
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