भारत में आए दिन हिन्दू अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करता हुआ दिख जाता है। कभी वह मंदिरों को सरकार के चंगुल से मुक्त कराने के लिए लड़ाई लड़ता है तो कभी वह अपनी बेटियों को लव या कहें ग्रूमिंग जिहाद से बचाने के लिए संघर्ष करता हुआ नज़र आता है। कभी वह कश्मीर से भगा दिया जाता है तो कभी बंगाल से तो कभी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में वह मारा जाता है। वह छोटी छोटी बातों के लिए सरकार का मुंह ताकता है। और फिर उसे ही कायर और असहिष्णु दोनों साबित कर दिया जाता है!
उसके त्योहारों पर उच्चतम न्यायालय से लेकर राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण तो निर्णय लेते ही हैं, कथित बुद्धिजीवी, पत्रकार और लेखक और अब तो वोक लिबरल, स्टैंड अप कॉमेडियन भी भगवान का मज़ाक उड़ाते हैं। फिर भी वह हंसकर टाल देता है। उदात्त स्वभाव का परिचय देता है। वह लेखकों की बेसिरपैर ही हिन्दू विरोधी रचनाओं को सुन लेता है और कट्टर मुस्लिम आमिर खान की पीके फिल्म पर भी हंस लेता है।
पूरा का पूरा फिल्म उद्योग हिन्दू विरोध पर चलता रहा, और वह इसे रचनात्मक स्वतंत्रता का नाम देकर शांत बैठा रहा। विरोध करने का दरअसल वह सोचता नहीं। इसके दो कारण है एक तो क़ानून के रूप में उसे निर्बल कर रखा है और दूसरा उसका पक्ष रखने वाला मीडिया बहुत सीमित है।
भारत में हिन्दुओं की जो स्थिति है उसे कोरोना की दूसरी लहर से लेकर पिछले माह आए दो निर्णयों से देखा जा सकता है जिसमें लगभग सभी मुख्य स्तम्भों ने हिन्दुओं के सबसे पवित्र आयोजनों में से एक कुम्भ मेले को ही सुपर स्प्रेडर बना दिया था और हिन्दुओं की कांवड़ यात्रा पर उच्चतम न्यायालय ने स्वत: संज्ञान ले कर उस पर रोक लगा दी और वहीं केरल में बकरीद को लेकर कुछ नहीं कहा।
हिन्दुओं में जूना अखाड़े के दो साधुओं की पालघर में पीट पीट कर हत्या कर दी गयी, और हिन्दुओं के लिए पवित्र गौ माता की रोज़ अवैध हत्याएं होती हैं। यह सब आंकड़े सार्वजनिक डोमेन में हैं और कहीं से भी प्राप्त किए जा सकते हैं। फिर भी जब केंद्र सरकार के अल्पसंख्यक आयोग की ओर से यह हलफनामा दायर किया जाता है कि “अल्पसंख्यकों को कमज़ोर वर्ग माना जाए क्योंकि हिन्दू यहाँ पर दबदबे वाला वर्ग है!” तो कई प्रश्न पैदा होते हैं, कि अल्पसंख्यक कौन हैं और उनका निर्धारण कौन कैसे करेगा?
हिन्दू कैसे दबदबे वाला वर्ग हो सकता है जब वह अपना दीपावली का त्यौहार भी नहीं मना सकता है, हिन्दू कैसे दबदबे वाला वर्ग हो सकता है जब उसके दही हांडी के त्यौहार पर मटकी तक की ऊंचाई न्यायालय द्वारा निर्धारित कर दी जाती है और हिन्दू कैसे दबदबे वाला वर्ग हो सकता है जब बंगाल से केवल उसे इसलिए भगा दिया जाता है क्योंकि उसने एक विशेष दल को वोट नहीं दिया?
हिन्दू कैसे दबदबे वाला वर्ग हो सकता है जब पाकिस्तान से आने वाले अपने हिन्दू भाइयों के लिए बने नागरिक संशोधन अधिनियम लागू कराने के लिए भी उसे अपने ही समान डीएनए वाले भाइयों का विरोध झेलना पड़ता है और बार-बार उन अधिकारों के लिए संघर्ष करना होता है, जो उसके अल्पसंख्यक भाइयों को बहुत सहजता से उपलब्ध हैं।
फिर भी अल्पसंख्यक आयोग की ओर से यह उत्तर समझ से परे है जिसमें यह कथन कहा गया है कि भारत में हिन्दू दबदबे वाला वर्ग है और अल्पसंख्यकों को कमज़ोर वर्ग के रूप में देखा जाना चाहिए। दरअसल उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर की गयी है कि अल्पसंख्यकों के लिए सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाएं गलत हैं, क्योंकि इन योजनाओं के लिए सरकारी खजाने से 4700 करोड़ रूपए का बजट रखा गया है, जो संविधान का उल्लंघन है।
इस याचिका के उत्तर में पहले केंद्र सरकार यह कह चुकी है कि इन योजनाओं से हिन्दुओं के अधिकारों का उल्लंघन नहीं होता है और न ही यह योजनाएं समानता के सिद्धांत के खिलाफ हैं।
और इसी याचिका के उत्तर में अल्पसंख्यक आयोग ने यह उत्तर दाखिल किया कि “भारत जैसे देश में जहाँ बहुसंख्यक समुदाय दबदबे वाला हो तो अल्पसंख्यकों को धारा 46 की व्याख्या के भीतर कमज़ोर वर्ग के अनुसार समझा जाना चाहिए, राज्य को समाज के कमज़ोर वर्गों की शिक्षा और आर्थिक हितों की विशेष देखभाल करनी चाहिए, और उन्हें हर प्रकार के शोषण से बचाना चाहिए।”
और अल्पसंख्यक आयोग ने कहा कि चूंकि भारत में हिन्दू बहुसंख्यक है और यदि सरकार द्वारा अल्पसंख्यकों के लिए विशेष योजनाएं नहीं बनाई जाती हैं तो बहुसंख्यक समुदाय उन्हें दबा सकता है।
भारत सरकार के अल्पसंख्यक आयोग ने यह भी कहा कि यद्यपि संविधान में सुरक्षा उपाय दिए गए हैं फिर भी अल्पसंख्यकों में असमानता और भेदभाव की भावना गयी नहीं है और उनके साथ भेदभाव होता ही है।
पर अभी तक यह नहीं निर्धारित हुआ है कि अल्पसंख्यकों की परिभाषा या दायरा क्या है, क्योंकि जम्मू कश्मीर से लेकर लक्षद्वीप तक कई क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ पर हिन्दू अल्पसंख्यक हैं, तो जम्मू और कश्मीर में मुस्लिमों को उन योजनाओं का लाभ क्यों दिया जाए, जो अल्पसंख्यकों के लिए बनी हैं। मगर उत्तर अल्पसंख्यक आयोग के पास नहीं हैं।
हालांकि केंद्र सरकार ने भी पहले कहा कि उसके द्वारा चलाई जा रही कल्याणकारी योजनाएं अल्पसंखयक वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों आदि के लिए हैं, न कि सभी के लिए।
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