spot_img

HinduPost is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma

Will you help us hit our goal?

spot_img
Hindu Post is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma
31.4 C
Sringeri
Friday, March 29, 2024

छत्रपति शिवाजी ने मुग़लों के पतन की नींव डाली

‘मराठा और सिख, हिन्दू पुनरुत्थान के नेतृत्व के शिखर पर थे और भारत से मुग़ल साम्राज्य को अन्तत: इनके द्वारा ही उखाड़ फैंका गया, ना कि अंग्रेजों द्वारा |’-[पृ-३६५,३७०-‘ग्लिम्प्सेस ऑफ़ वर्ल्ड हिस्ट्री’] जवाहरलाल नेहरु के द्वारा व्यक्त इतिहास के इस गौरवशाली क्षण तक देश के पहुँचने का सफ़र बड़ा ही रौचक, और सबक देने वाला है |

देश की भोगोलिक एकता को प्रभावित करने वाला पहला विदेशी आक्रमण मीर कासिम द्वारा सन ६३८ में किया गया था | इसकी शुरुआत उसने सिंध पर चढ़ाई करके की थी, जब दाहिर सेन वहां के शासक हुआ करते थे | समुद्र मार्ग से होती हुई मीर कासिम की सेना नें जब समुद्र से रेगिस्तानी इलाके में प्रवेश किया तो दाहिर के मंत्रीयों नें उसे सलाह दी कि दुश्मन की रसद काट दी जाये जिससे कि युद्ध में जाने के पहले ही भूख-प्यास से उनके प्राण निकल जाए | परन्तु ये वो समय था जब कि भारतीय युद्ध-कला में छल-कपट युक्त चेष्टाओं को हेय दृष्टि से देखा जाता था |

दाहिर को ये सलाह ‘क्षात्र-धर्म’ के विरुद्ध लगी; उसने इसको अस्वीकार कर दिया | परिणामस्वरुप, कासिम की सेना कराची के पास देवल के किले तक जा पहुंची और, दाहिर के ठीक विपरीत, क्षात्र-धर्म क्या होता है इससे बेखबर, कासिम ने जो पहला काम किया वो ये कि किले के मुख्य द्वारपाल के तीन बच्चों को धोखे से अपहरण करवा लिया | बिना देरी किये उसने एक बच्चे का सर धढ़ से अलग करवा दिया, ये दिखाने के लिए कि अगर उसकी बात न मानी गई तो उसके शेष बच्चों के साथ क्या हो सकता है!

असहाय, मुख्य द्वारपाल ने किले के दरवाजे खुलवा दिये | दोनों सेनाओं के बीच भयंकर युद्ध छिड़ गया, और अंत में दाहिर के हाथों पराजय लगी | सिंध हमारे हाथों से निकल गया |

इसके बाद देश पर अगला विदेशी हमला ९८०ई में हुआ | इस बार हमलावरों नें जिस मार्ग को चुना वो हमारी सीमा पर स्थित उपगानिस्तान [आज का अफ़गानिस्तान] से होकर गुजरता था | उनका सेनापति गज़नी का सुलतान, सुब्क्तगिन, था | गुप्तचरों से सुब्क्तगिन को पता चला कि भारतीय परंपरा में रात्रि में युद्ध नहीं लड़ा जाता | उसने अपना दूत भेजकर भारतीय राजा जयपाल शाहिया के साथ तय किया कि रात्रि के बाद अगली सुबह युद्ध लड़ा जायेगा | परन्तु अपनी ही बात से मुकरते हुए, जैसे ही आधी रात ढली कि उसने भारतीय सेना पर हमला बोल दिया; जबकि सैनिक निहत्थे, गहरी नींद में थे!

इस एक तरफ़ा युद्ध में पराजित, जयपाल को काबुल से पीछे हट पहले उदाबंदपुर और फिर अन्तत: लवकुशपुर [लाहोर] को अपनी राजधानी बनाना पड़ा |

सरहद पार से होने वाले विदेशी हमलों का सिलसिला फिर भी ना थमा | सुबुक्तगिन नें युद्ध जहां पर समाप्त किया था, वहां से उसे आगे बढ़ाया उससे भी ज्यादा बर्बर व धूर्त उसके लड़के मोहम्मद गज़नवी नें | अपने पूर्वजों के सबसे भरोसेमंद छल-कपट रुपी शस्त्र का उपयोग करते हुए, उसने जयपाल शाहिया के वंशज आनंदपाल और त्रिलोचनपाल शाहिया को पराजित किया, और अफ़गानिस्तान व पंजाब को भारत से अलग करते हुए अपने साम्राज्य में शामिल कर लिया |

भागते शत्रु पर पीछे से वार न करना; हाथ लगे शत्रु को क्षमा-दान, अभय-दान देने में अपनी शान समझना; निहत्थे प्रतिपक्षी पर शस्त्र ना उठाना; एक बार जो वचन दिया तो पीछे नहीं हटना, फिर भले ही कितना नुकसान उठाना पड़ जाए; जय-पराजय की परवाह न करते हुए रणभूमि में लड़ते-लड़ते बलिदान हो जाने को ज्यादा गौरव की बात समझना – सद्गुणों के प्रति ये ऐसा एकान्तिक दृष्टिकोण था जिससे भारतीय शासक इतिहास में आगे भी अपने को अलग नहीं कर पाए | जिसके कारण देश को गुलामी के कलंक से छुटकारा न मिल सका और एक के बाद एक इसके हिस्से विदेशीयों के कब्ज़े में जाते चले गए |

परन्तु इस अवधि में सर्वप्रथम जिन्होंनें सही अर्थों में विदेशीयों के छल-कपट को समझकर उनकों उन्ही के खेल में मात देते हुए सफलता पूर्वक मुग़ल सल्तनत के पतन की नींव रखी वो थे मराठा हिन्दूवीर छत्रपति शिवाजी |

ये वो समय था जब विदेशी शासकों का तुष्टिकरण कर किसी तरह देश के राजा-रजवाड़े अपनी-अपनी जगीर और राज्य को बचाए रखने में लगे हुए थे | शत्रु पर पहले आक्रमण करने की बात तो वो सोच भी नहीं सकते थे | परन्तु जैसे ही शिवाजी महाराज नें मराठा राजसत्ता का सूत्रपात किया, मुग़लों के विरुद्ध उन्होंने मोर्चा खोल भीषण आक्रमण कर उनके सैन्यबल तथा साम्राज्य को छिन्न-भिन्न करके रख डाला |

क्यूंकि संख्या व संसाधन दोनों ही दृष्टि से उनकी सैन्य क्षमता मुग़लों की तुलना में काफी कमजोर थी, अत: सह्याद्री-पर्वत का भरपूर उपयोग कर वहां के चप्पे-चप्पे से सुपरिचित निवासरत अदम्य साहस के धनी मावले वनबंधुओं को साथ ले उन्होंने जिस रणनीति को अपनाया वो इतिहास में छापामार-युद्ध के नाम से विख्यात हुई |

छापामार-युद्ध की मार से मुग़ल सेना में त्राहि-त्राहि मच गयी और मराठों को धीरे-धीरे उन पर बढ़त हासिल होने लगी | जैसे-जैसे उनका सैन्य बल बढ़ता गया उन्होंने मुग़लों पर खुला आक्रमण करना शुरू कर दिया | और १९७२ के साल्हेर के युद्ध में तो औरंगजेब के अधीन मुग़लों की भीषण पराजय द्वारा मराठा शूरवीरों नें उन्हें भी बचाव की मुद्रा स्वीकारनें के लिए विवश कर दिया |

इसके उपरांत डेढ़ वर्ष तक राजधानी से दूर रहते हुए प्रसिद्ध कर्णाटक-अभियान का सफल संचालन किया | अपने कुशल प्रशासन व योजनाबद्ध रणनीति के बल्बूते इस दौरान उन्होंने विदेशी शासकों को एक के बाद एक युद्ध में परास्त कर महाराष्ट्र के दक्षिण-पूर्व के एक भाग में अलग संप्रभु मराठा राज्य की स्थापना करी |

शिवाजी के द्वारा दिखाए गए रास्ते पर चलते हुए, आगे चलकर मराठा इतने शक्तिशाली हो उठे कि भयभीत, हताश औरंगजेब नें उनके समक्ष संधि का प्रस्ताव तक भेजा | पर जब तक बहुत देर हो चुकी थी. बदले में मराठाओं से मिली अपनी अवहेलना से उत्पन्न मानसिक प्रताड़ना से औरंगजेब को मुक्ति तब ही जाकर मिल सकी जब म्रत्यु ने उस अपने गले लगाया | और, विशेषकर १७४० के बाद, मोहम्मद शाह के शासनकाल में मुग़ल जब बहुत ही कमजोर हो चले थे, देश की वास्तविक सत्ता मराठाओं के हाथों आ चुकी थी |

वर्ष १७५५-१७५६ के मध्य रघुनाथ राव और मल्हारराव होलकर के नेतृत्व में उन्होंने रोहिल्ला और अफगानों के विरुद्ध निर्णायक जीत हासिल करी, और विदेशीयों के ८०० वर्षों के शासन से पंजाब को मुक्ति दिलाई | आगे चलकर इस विजय अभियान को और आगे बढ़ाने का श्रेय जिसको जाता है वो हैं सिख महाराजा रणजीत सिंह |

विदेशी वर्चस्व को तोड़ते हुए उनके सेनापति हरिसिंह नलुआ ने अफगानिस्तान के अंदर घुसते हुए काबुल तक को सिख साम्राज्य में मिलाने में सफलता प्राप्त करी, और जिस रत्न जड़ित द्वार को आठ सौ वर्ष पूर्व मेंहमूद गजनवी सोमनाथ के मंदिर को ध्वस्त कर अपने साथ ले गया था, उसे बापस लाकर पुनः उसी स्थान पर स्थापित करने का गौरव प्राप्त किया | अमृतसर के जिस हरिमंदिर गुरुद्वारा को अहमद शाह अब्दाली ने ध्वस्त कर दिया था, उसका पुनर्निर्माण कर महाराजा रंजित सिंह ने उसे आज के ‘स्वर्ण मंदिर’ का स्वरूप प्रदान किया | साथ ही विदेशी- शासन काल में सदियों से चले आ रहे गोवध पर प्रतिबन्ध लगाया |


क्या आप को यह  लेख उपयोगी लगा? हम एक गैर-लाभ (non-profit) संस्था हैं। एक दान करें और हमारी पत्रकारिता के लिए अपना योगदान दें।

हिन्दुपोस्ट  अब Telegram पर भी उपलब्ध है। हिन्दू समाज से सम्बंधित श्रेष्ठतम लेखों और समाचार समावेशन के लिए  Telegram पर हिन्दुपोस्ट से जुड़ें ।

Subscribe to our channels on Telegram &  YouTube. Follow us on Twitter and Facebook

Related Articles

Rajesh Pathak
Rajesh Pathak
Writing articles for the last 25 years. Hitvada, Free Press Journal, Organiser, Hans India, Central Chronicle, Uday India, Swadesh, Navbharat and now HinduPost are the news outlets where my articles have been published.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest Articles

Sign up to receive HinduPost content in your inbox
Select list(s):

We don’t spam! Read our privacy policy for more info.

Thanks for Visiting Hindupost

Dear valued reader,
HinduPost.in has been your reliable source for news and perspectives vital to the Hindu community. We strive to amplify diverse voices and broaden understanding, but we can't do it alone. Keeping our platform free and high-quality requires resources. As a non-profit, we rely on reader contributions. Please consider donating to HinduPost.in. Any amount you give can make a real difference. It's simple - click on this button:
By supporting us, you invest in a platform dedicated to truth, understanding, and the voices of the Hindu community. Thank you for standing with us.