फिर से कथित प्रगतिशील लोग आ गए है अपना मंदिर का रोना लेकर, कि कोविड में मंदिर के नाम पर चंदा मांगने वाले लोग अभी क्या कर रहे हैं? हिन्दुस्तान टाइम्स के राजनीतिक सम्पादक विनोद शर्मा ने कल एक बेहद ही मासूमियत वाला ट्वीट किया।
“वो जो घर घर जाकर मंदिर निर्माण के लिए चंदा इकट्ठा कर रहे थे, क्या उसमें से किसी को आपने घर घर जाकर या अस्पतालों में ऑक्सीजन सिलेंडर बाँटते हुए देखा है?”
अब यह प्रश्न अपने आप में कितना बेहूदा है? जो लोग घर घर जाकर मंदिर निर्माण के लिए चंदा इकट्ठा कर रहे थे, जाहिर है कि निशाना राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की ओर था। परन्तु यह निशाना संघ की ओर न होकर समस्त हिन्दू समाज और मंदिर के विरोध में था। जब से राम मंदिर निर्माण आरम्भ हुआ है, तब से राम मंदिर के विरोध में यह कथित प्रगतिशील लोग जहर उगल रहे हैं। विनोद शर्मा का भाजपा या कहें हिंदुत्व के प्रति दुराग्रह देखा जा सकता है। यह प्रश्न उनसे किया जा सकता है कि ऑक्सीजन सिलिंडर क्यों बांटना है घर घर जाकर? या अस्पतालों में?
क्या विनोद शर्मा जैसे लोग चाहते हैं कि घर घर कोरोना फ़ैल जाए? या फिर जो भी कोरोना से पीड़ित है, उसे ऑक्सीजन की जरूरत पड़े? यह प्रश्न भी पूछा जाना चाहिए कि क्या ऑक्सीजन सिलिंडर बाज़ार में मिलने वाले फल फूल हैं कि वह हाथों पर उपलब्ध हो जाएंगे? या फिर वह कालाबाजारी करके सिलिंडर ले जाएँ? पर नहीं! कथित प्रगतिशील पत्रकार इन्हें राम मंदिर का विरोध करने से फुर्सत नहीं है! इन्हें केवल और केवल राम मंदिर और उसके बहाने हिन्दू धर्म को कोसना है। जबकि राम मंदिर ट्रस्ट पहले ही ऑक्सीजन प्लांट लगाने के लिए पचपन लाख रूपए की राशि दे चुका है, इतना ही नहीं देश के सभी प्रमुख मंदिर अपने अपने खजाने कोविड से पीड़ित लोगों के लिए खोल चुके हैं। बिहार के पटना जंक्शन स्थित हनुमान मन्दिर ने लोगों की मदद के लिए प्रशासन का हाथ बंटाया है। और कहा है कि बेगूसराय स्थित महावीर अग्रसेन सेवा सदन को कोविड डेडिकेटेड अस्पताल बनाया जाएगा।
यह तो मंदिरों की बात है, परन्तु क्या एक प्रतिष्ठित मीडिया संस्थान के राजनीतिक सम्पादक का यह ट्वीट एक बड़े वर्ग को निशाना बनाता हुआ नहीं है? क्या यह आपका दुराग्रह नहीं है? यह आपकी दृष्टि दिखाता है कि आखिर आप कैसे एक विशेष प्रकार की रतौंधी के शिकार वर्ष 2014 से हो गए हैं। यह दिखाता है कि कैसे एक बड़ा मीडिया संस्थान अपने सम्पादक के कारण एक वर्ग के प्रति विष वमन कर सकता है क्योंकि उसका सम्पादक एक विशेष विचार को पसंद नहीं करता है। कभी कभी यह भी लगता है कि हिन्दुओं के साथ कितना बड़ा अन्याय अब तक हुआ है कि देश के बड़े बड़े मीडिया हाउस उसके प्रति दुराग्रह पूर्ण दृष्टि लिए बैठे रहे। समस्या एक और है कि यह लोग आँखें बंद करे बैठे रहते हैं। और कौन भूल सकता है कि यही विनोद शर्मा वर्ष 2019 के चुनावों से पहले ममता बनर्जी जैसे क्षेत्रीय क्षत्रपों की सरकार की तरफदारी कर चुके थे!
आरएसएस के प्रति घृणा का आलम यह है कि यह लोग आँखें खोलकर देखते भी नहीं है। यह लोग यह देखने की कोशिश भी नहीं करते कि वह जो लिख रहे हैं, उससे पहले जरा कुछ पढ़ लिया जाए, या देख लिया जाए। राष्ट्रीय स्वयं सेवक के स्वयं सेवक अपनी जान को जोखिम में डालकर सेवा कर रहे हैं, और ऐसी ही कुछ तस्वीरें सोशल मीडिया यूजर्स ने उनके ट्वीट के विरोध में लगा दीं। इतना ही नहीं उन्होंने friendsofrss हैंडल को देखने के लिए कहा, जहां पर आरएसएस द्वारा की जा रही तमाम गतिविधियों का विवरण है, जिनमें सबसे ही पहले था कि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ताओं ने आगरा में ऑक्सीजन संयंत्र को कीटाणुमुक्त किया और साथ ही ऑक्सीजन सिलिंडर भरवाने आए लोगों को फेस मास्क और पानी भी बांटा।
ABVP volunteers sanitised an oxygen plant in Agra. Face masks and drinking water were also distributed to those standing in lines to refill the oxygen cylinders. pic.twitter.com/6uT15zot6P
— Friends of RSS (@friendsofrss) May 1, 2021
अब दूसरा प्रश्न यह उठता है कि क्या ऐसा संभव है कि एक बड़े संस्थान के राजनीतिक सम्पादक की दृष्टि से यह सब छूटा हो? शायद नहीं, यह लोग देखना नहीं चाहते क्योंकि फिर वह अपना एजेंडा नहीं चला पाएंगे। ऐसी ही एक और पत्रकार हैं तवलीन सिंह। पहले यह मोदी सरकार की बहुत बड़ी समर्थक हुआ करती थीं, पर अपने पुत्र मोह में वह मोदी सरकार की ऐसी आलोचक हो गयी हैं, कि अब उन्होंने सच देखने से इंकार कर दिया है। वह ट्वीट करती हैं कि एक समय हुआ करता था जब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के लोग राष्ट्रीय आपदा या संकट में आगे आते थे। वह आज कहाँ हैं? अगर सिख गैर सरकारी संगठन ‘ऑक्सीजन लंगर’ चला सकते हैं तो वह क्यों नहीं?
There was a time when RSS workers always came forward in a time of national crisis or natural disaster. Where are they today? If Sikh NGOs can run oxygen ‘langars’ why can the RSS not do this?
— Tavleen Singh (@tavleen_singh) May 1, 2021
इसके उत्तर में आरएसएस पर पुस्तक लिखने वाले रतन शारदा ने कहा कि इस बात के काफी प्रमाण हैं कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यकर्ता काम कर रहे हैं, यदि उन्हें दिखाई नहीं देता है तो वह कुछ नहीं कर सकते और तवलीन सिंह जी उनकी वाल पर आकर डिटेल देख सकती हैं। इस पर तवलीन सिंह जी ने फिर से प्रश्न कर दिया कि कौन सा शहर? कहाँ पर, आदि आदि!
वैसे, तवलीन सिंह इस बात पर चुप्पी बनाई हुई हैं की कई सिख गैर सरकारी संगठनों की मदद से ही दुराग्राही किसान आंदोलन ने अभी तक दिल्ली के सीमावर्ती क्षेत्रों का जीवन अस्त-व्यस्त कर रखा है, तथा कोविड की दूसरी लहर का एक मुख्य स्रोत बन गया है।
यहाँ पर दो उदाहरण बड़े संपादकों के दिए गए हैं, जिन्हें प्रतिष्ठित माना जाता है, परन्तु यह लोग कैसी एकतरफा दृष्टि लेकर रखे हुए हैं, यह हैरान करने वाला है। यहाँ पर इसे समझना अत्यंत आवश्यक है कि जब बड़े सम्पादकों का यह हाल है तो छोटे या मझोले संपादकों एवं स्तंभकारों का हाल क्या होगा, जिन्हें हर चीज़ के लिए इनसे अनुमोदन चाहिए होता है, स्पष्ट है कि वह अपने आकाओं के ही इशारों पर लिखेंगे और आज तक हिन्दू जनता को बिना उसके दोषों के वह दोषी ठहराते हुए आए हैं।
उनकी दृष्टि एकांगी है और यह भारत का दुर्भाग्य रहा है कि उसे अधिकाँश सम्पादक एकांगी ही दृष्टिकोण वाले मिले हैं, जिनके निशाने पर किसी न किसी तरह से मंदिर ही होता है।
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