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Thursday, March 28, 2024

रश्मि सामंत और हिंदूद्वेष (हिन्दूफोबिया) से ग्रसित पश्चिम अकादमिक समाज

पश्चिम में अब “अस्वीकार करने वाली संस्कृति” अपने चरम पर परिलक्षित हो रही है। पूर्व राष्ट्रपति ट्रम्प ने जब कार्यभार सम्हाला था तभी ट्रेंड करने लगा था, “not my president” (‘मेरे राष्ट्रपति नहीं’)। यह एक बहुत घातक प्रवृत्ति है जो अब विश्वविद्यालय स्तर तक पहुँच गयी है।  हाल ही में एक “सनातनी” हिन्दू रश्मि सामंत इसका शिकार हुई है।  रश्मि सामंत जैसी एक विद्यार्थी भी खतरा हो सकती है, यह नहीं समझ आ सकता है।

रश्मि सामंत तब चर्चा में आईं जब उन्हें ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय में छात्र संघ में पहली महिला अध्यक्ष के रूप में चुना गया। सामंत को उस पद के लिए कुल 3708 में से 1966 मत प्राप्त हुए थे। रश्मि ने इस वर्ष 11 फरवरी को हुए चुनावों में “अनौपनिवेशवाद और समावेश” के मुद्दे पर चुनाव लड़ा था।  परन्तु उनका इस मुद्दे पर जीतना एक बड़े वर्ग को रास नहीं आया। यह वह वर्ग है जो पूरे विश्व में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दम भरते हुए हर देश की निर्वाचित सरकार को गिराने का इरादा रखता है।

यह वह वर्ग है, जिसे अपने लिए सड़क पर ही मल विसर्जन की आज़ादी चाहिए, और जो अपने विचार से परे किसी भी व्यक्ति को कुछ नहीं समझता है, वह वर्ग रश्मि की इस विजय से कुपित हो गया। वह इतना कुपित हो गया कि रश्मि को अपने पद से कुछ ही दिनों में इस्तीफा देना पड़ गया। क्योंकि रश्मि के चुनाव जीतने के बाद से ही उनकी पुरानी कुछ पोस्ट वायरल होने लगी थी, जिनमें उन्होंने अनभिज्ञता के चलते कुछ अपरिपक्व मज़ाक किया था। उन पोस्ट से उनकी पहचान एक ‘प्रजातिवादी’ (racist) हिन्दू की बनी जिस कारण उनके विरुद्ध असंतोष फैलाया गया और उनकी आलोचना की गयी।

रश्मि सामंत, जो अभी मात्र 22 वर्ष की हैं, उन्हें उनके परिवार के धर्म और विचारों के आधार पर अपमानित किया गया। उन्होंने अपनी पुरानी पोस्ट के लिए क्षमा भी मांगी, परन्तु उसे स्वीकारा नहीं गया और अन्ततः उन्होंने इस्तीफा दे दिया। और उन्होंने यह लिखा कि जिन पोस्ट पर हंगामा मचाया जा रहा है, वह कई साल पहले एक किशोर बच्ची के हाथों लिखी गयी पोस्ट थीं, जिनमें समय के साथ बदलाव आता ही है।

परन्तु समस्या रश्मि नहीं है, समस्या है उसके परिवार के हिन्दू संस्कार, और इन संस्कारों के प्रति आज़ादी का नारा लगाने वाला वर्ग कितना घृणा से भरा हुआ है, वह डॉ अभिजित सरकार, जो ऑक्सफ़ोर्ड में एक संकाय सदस्य (फैकल्टी मेंबर) हैं, उनके द्वारा इन्स्टाग्राम पर की गयी पोस्ट से परिलक्षित होता है। उनके हृदय में हिन्दुओं के प्रति घृणा कूट कूट कर भरी हुई है। यह घृणा भाजपा से है, भाजपा के बहाने हिन्दुओं से है या भारत से है, पता नहीं चलता। हाँ वह एक ऐसे अभिजात्य वर्ग के हैं, जिसे भारत की जड़ों से नफरत है।

उनकी पोस्ट इस प्रकार है:

अभिजीत सरकार ने पूरे दक्षिणपंथ के विरुद्ध लिखते हुए कहा है कि “ऑक्सफ़ोर्ड छात्र संघत की निर्वाचित हिन्दू अध्यक्ष रश्मि सामंत ने रंगभेद, जातिवाद, इस्लामोफोबिया, यहूदी-विरोधी जैसे कई आरोपों के बाद, जो कि उनकी पिछली पोस्ट से परिलक्षित हो रहा था, अपने पद से त्यागपत्र दे दिया है। चूंकि इस्लाम और ईसाइयों के विरुद्ध बोलना हिन्दुपंथियों की आदत होती है, तो इन सब में कोई हैरानी नहीं हुई है।”

अपने इन्स्टाग्राम पर एक तस्वीर लगते हुए अभिजीत कहते हैं “यह एक वायरल फोटो है, जिसमें रश्मि के रिश्तेदार, संभवतया उनके मातापिता, उस मंदिर के निर्माण का उत्सव मना रहे हैं, जो एक मस्जिद को ध्वस्त करके बना है। वह  कर्नाटक में मनिपाल इंस्टीटयूट ऑफ टेक्नोलोजी से ऑक्सफोर्ड आई हैं, जिस संस्थान की आधिकारिक वेबसाईट पर प्रधानमंत्री मोदी का चित्र लगा हुआ है। और वह तटीय कर्णाटक से आई है जो इन दिनों इस्लाम से घृणा करने वाली हिंदुत्ववादी शक्तियों का केंद्र बना हुआ है। और उसके अभियान में काफी पैसा खर्च हुआ है, वह किसने खर्च किया, जाहिर हैं, भारतीयों ने ही!”

आगे वह जो लिखते हैं, उस पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए। उन्होंने लिखा है कि “उसने बहुत आसानी से ‘अनौपनिवेशवाद से आज़ादी’ के नाम पर लोगों को बेवक़ूफ़ बना दिया है। यह बात पूरी तरह से सच है कि कट्टर दक्षिण पंथी शक्तियां सफ़ेद लोगों से और पश्चिमी आधुनिकता से घृणा करती हैं क्योंकि वह उस सनातन धर्म को मानते हैं, जो हमेशा से जातिवाद के चलते समाज में अत्याचार करता है और वह पितृसत्ता का सबसे खतरनाक रूप है और वह हमेशा ही गैर हिन्दू लोगों को मारने के लिए तैयार रहते हैं, फिर चाहे वह मुस्लिम हों, ईसाई हों या फिर उदारवादी हिन्दू।”

फिर वह लिखते हैं “आशा है कि विद्यार्थियों को इससे सबक मिलेगा और वह त्वचा के रंग और आकर्षक घोषणाओं से आकर्षित नहीं होंगे, भूरे देसी लोग कभी कभी साथी भूरे लोगों के लिए बहुत खतरनाक हो सकते हैं।”

इस पोस्ट में डॉ अभिजीत ने पूरे दक्षिणपंथ पर निशाना साध दिया है और इसके साथ ही हिन्दू धर्म को भी अपमानित किया है।

ऐसा नहीं है कि रश्मि के पक्ष में आवाजें नहीं उठ रहीं हैं। यदि रश्मि तक व्यक्तिगत बात होती, यदि रश्मि की किसी व्यक्तिगत आदत के कारण उन्हें अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ता तो वह अलग बात थी, परन्तु उन्होंने यहाँ पर त्यागपत्र दिया है, अपनी हिन्दू पहचान पर अपमानित किए जाने के कारण, अत: इस मामले पर रश्मि के पक्ष में आवाजें उठना जरूरी हैं।  अल्पेश बी पटेल, जो ऑक्सफ़ोर्ड में विजिटिंग फेलो रह चुके हैं, उन्होंने रश्मि के पक्ष में ट्वीट कर आवाज़ उठाई है। वह लेखक हैं, कॉलम लिखते हैं, एवं ऑनलाइन निवेश विशेषज्ञ हैं। इसी के साथ लेखक संजय दीक्षित ने भी अभिजीत सरकार को मानसिक दास वाला एवं हिन्दुओं से घृणा करने वाला बतलाया है।

ऐसे कई लोग हैं, जो अब इस घृणा से भरे हुए विचार का विरोध करने के लिए आगे आ रहे हैं और आना ही चाहिए क्योंकि यह किसी एक रश्मि सामंत की बात नहीं है बल्कि यह हिन्दुओं की बात है। हिन्दू धर्म की प्रतिष्ठा की बात है।


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