उन्होंने हर प्रकार की राजनीतिक लड़ाई लड़ी एवं कारगिल युद्ध के दौरान वास्तविक युद्ध का भी रक्षा मंत्री रहते हुए सामना किया था। हमेशा ही विद्रोही मोड में रहने वाले पूर्व रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीज का जीवन भी एक ऐसी कहानी है जिसमे क्रांति है, और फिर कथित क्रान्ति से विश्वासघात का आरोप और अंत में एक ऐसे घोटाले का आरोप, जिसके साथ जीवन और मृत्यु जुड़े हुए थे! हालांकि बाद में पाया गया कि वह घोटाला हुआ ही नहीं था, फिर भी नुकसान होना था हो गया था, एवं क्रांति की मशाल गुमनाम मृत्यु को प्राप्त हो चुकी थी। और आपको ऐसा लगता है कि कांग्रेसी टूलकिट आज सक्रिय है? नहीं, वह पहले से ही थी, तब भी थी!
3 जून 1930 को जन्में जॉर्ज का नाम उनकी माँ ने जॉर्ज पंचम के नाम पर रखा था। उन्हें एक ईसाई मिशनरी में पादरी बनने की शिक्षा लेने के लिए भेजा गया था। मगर वहां से उनका मोहभंग हुआ और फिर वह मुम्बई की ओर चले गए। उन्होंने ट्रेड युनियन के कार्यक्रमों में भाग लेना शुरू किया और साथियों के लिए आवाज़ उठाई।
फिर आया वह वर्ष जिसने उनके जीवन की ही नहीं बल्कि भारत के ही राजनीतिक चेहरे की दिशा बदल दी। तत्कालीन प्रधानमंत्री ने आपातकाल लगा दिया था और उस दौरान जॉर्ज फर्नांडीज ने चेतना जगाने का कार्य किया। उन्होंने इस आपातकाल का विरोध किया।
उन्होंने उस क्रूर दौर का हर संभव विरोध किया। उनकी वह बेड़ियों में बंधी तस्वीर विरोध का प्रतीक बनी। वह तस्वीर आज तक उस दौर में किये गए अत्याचारों की गाथा सुनाती है। आपातकाल में उनके विषय में कई किस्से प्रचलित हैं। कई लोग कहते थे कि वह गिरफ्तारी से बचने के लिए अपना रूप बदलते थे और हर बार वह एक नई वेशभूषा में आते थे। बिहार से आने वाले वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र किशोर का कहना है कि आपातकाल में वह अपना रूप बदल लिया करते थे।
उनके अनुसार वह उस दौरान जननायक के रूप में उभरे थे। जहां जाते थे वहीं की परम्परा से जुड़ा वेश बना लेते थे। कई दिनों तक वह पादरी के रूप में रहे और और उनके अनुसार जॉर्ज को कई भाषाएँ आती थीं, इसी कारण उन्हें कभी भाषाई समस्या नहीं हुई।
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार के दौरान वह रक्षा मंत्री बने। और वह पहले ऐसे रक्षामंत्री बने जो सियाचिन ग्लेशियर पर तैनात भारतीय सेना का हालचाल लेने पहुंचे थे। इससे पहले कभी भी कोई भी रक्षामंत्री ऐसे नहीं थे जिन्होनें 6600 मीटर ऊंचाई पर स्थित सियाचिन ग्लेशियर का दौरा किया था, और वह ऐसे रक्षामंत्री हुए जिन्होनें एक दो बार नहीं लगभग 18 बार दौरा किया था। इतना ही नहीं उन्होंने यह खुलकर कहा था कि भारत का सबसे बड़ा दुश्मन चीन है!
1999 में भारत पाकिस्तान के बीच हुए कारगिल युद्ध में भारतीय सेना ने पाकिस्तान और उसके समर्थित आतंकवादियों को धूल चटाई थी और यही वह दौर था जब उन्हें और सेना को बदनाम करने का षड्यंत्र रचा जा रहा था। भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध में हालांकि भारत जीत गया था, परन्तु राजनीति के स्तर पर बदनामी अभी शेष थी।
जैसे ही युद्ध समाप्त हुआ वैसे ही भाजपा के नेतृत्व वाली भारत सरकार के खिलाफ विपक्ष की ओर से यह आरोप लगाया गया कि अमेरिका आधारित फ्यूनरल सर्विस कंपनी ब्यूत्रोन एंड बैज़ा से कारगिल युद्ध में मरे हुए सैनिकों के लिए कैस्केट खरीदे थे। उस समय में विपक्ष में रही कांग्रेस ने बार बार यह आरोप लगाए कि इन ताबूतों को भारत सरकार ने 13 गुना अधिक मूल्य पर खरीदा है।
कांग्रेस ने उस समय इस घोटाले को 24 हजार करोड़ का घोटाला बताया था। और तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई एवं रक्षामंत्री जॉर्ज फर्नांडीज को अपना निशाना बनाया था।
फरवरी 2004 एक जनहित याचिका दायर की गई थी, जिसमें यह आरोप लगाया गया था कि कारगिल विजय के उपरान्त एनडीए सरकार ने करोड़ों रूपए की रक्षा सामग्री की खरीद की है, जिनमें यह ताबूत भी थे, और उसमें कई दलालों और विदेशी कंपनियों ने बीच में काफी पैसे खाए हैं।
इसमें सेना के तीन अधिकारियों का नाम चार्जशीट में आया था।
इस मामले को लेकर कांग्रेस ने बहुत शोर मचाया और आन्दोलन किये गए। कांग्रेस ने प्रत्यक्ष भ्रष्टाचार का निशाना उस राजनेता को बनाया जिसका राजनीतिक चरित्र एक विद्रोही और जनता के लिए कार्य करने का रहा था। जो अपनी सेना और सैनिकों के दर्द जानने के लिए स्वयं ही सियाचिन गए थे। अंतत: कांग्रेस को क्या मिला मृत्यु पर रोटियाँ सेंकने से?
कांग्रेस को मिली सत्ता! जनता के दिमाग में ताबूत और कफन जैसे शब्दों को बार बार भर कर यह साबित करने का प्रयास किया गया कि वह योद्धा दरअसल एक भ्रष्टाचारी है। और वर्ष 2004 में वह सत्ता में आ गयी।
मजे की बात यह है कि कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद सीबीआई ने वर्ष 2013 में जॉर्ज फर्नांडीज को क्लीन चिट दे दी थी और वर्ष 2015 में भारत के उच्चतम न्यायालय ने यह कहा कि “इस प्रकार का कोई घोटाला हुआ ही नहीं था।”
परन्तु इस घोटाले की आड़ में भाजपा की सरकार को वनवास में भेजा जा चुका था और क्रांतिकारी नेता की छवि को पूर्णतया नष्ट किया जा चुका था। इतना विखंडित कि अंतत: वह गुमनामी में डूबते चले गए।
ताबूत घोटाला और कुछ नहीं बल्कि कांग्रेस का गढ़ा गया ऐसा नैरेटिव था जिसने एक झूठा संसार बनाया, जैसा अभी हाल ही में राफेल के माध्यम से करने का प्रयास किया गया।
कांग्रेस की शक्ति है सत्ता से बाहर रहते हुए नैरेटिव का निर्माण करना और उसमें ऐसे नेताओं का चरित्र हनन करना, जिन्हें वह चुनावों में पराजित नहीं कर सकती है।
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