मंगल पाण्डेय का नाम आज हर कोई आदर से लेता है, उन्होंने देश के नाम अपना जीवन बलिदान कर दिया था। उनके दिल में क्रोध था। और उस क्रोध में वह पागल हो गए थे। अंग्रेजों के खिलाफ जैसे उनके दिल में एक जूनून सा पैदा हो गया था। लेकिन ऐसा क्यों हुआ था? 19 जुलाई अर्थात आज ही के दिन वर्ष वर्ष 1827 को जन्मे थे मंगल पाण्डेय! अर्थात वर्ष 1857 में जब उन्होंने विद्रोह किया तो वह मात्र तीस वर्ष के रहे होंगे।
उनके हृदय में कहीं न कहीं देश प्रेम तो रहा ही होगा तभी वह सेना में गए, नहीं तो और कोई नौकरी करके कुछ भी कर सकते थे। पर उन्होंने रक्षक होना चुना। और तभी जब उन्होंने देखा कि जिन्हें वह रक्षक मानते हैं, वह अत्याचार तो कर ही रहे हैं, साथ ही धार्मिक स्वतंत्रता पर भी आक्रमण कर रहे हैं।
भारत भूमि अपनी संस्कृति के लिए विख्यात है। अपनी संस्कृति और धर्म की रक्षा के लिए तो हँसते हँसते बलिदान हो जाया करते हैं। लड़ते हैं, और ऐसा लड़ते हैं कि विश्व याद रखे। वैसे तो हर स्तर पर लड़ाई चल ही रही थे। तिलका मांझी से लेकर बिरसा मुंडा तक पहले ही अपनी संस्कृति और स्वतंत्रता के लिए अंग्रेजों से लड़कर अपने प्राणों को अपनी भूमि के लिए बलिदान कर चुके थे और षड्यंत्र को समझकर हर कोई अपने अपने स्तर पर विद्रोह कर ही रहा था।
फिर भी अंग्रेजों को शायद यही लगता था कि एक देशव्यापी आन्दोलन आरम्भ नहीं हो पाएगा। मगर ऐसा नहीं था। मंगल पाण्डेय शायद का बलिदान शायद ऐसा बलिदान होने जा रहा था, जो स्वतंत्रता की मशाल बनने जा रहा था।
जनता के हृदय में आक्रोश था, राजाओं के हृदय में आक्रोश था और कारीगरों के हृदय में आक्रोश था, जिनके रोजगार आदि को केवल और केवल अंग्रेजों ने बर्बाद कर दिया था। किसानों में आक्रोश था, और इस आक्रोश को आवाज़ मिलने वाली थी। मंगल पाण्डेय का बलिदान जैसे इन सब सामूहिक आक्रोशों को स्वर देने जा रहा था।
यह हिम्मत आखिर आई कहाँ से होगी? कैसे यह भाव आया होगा कि अब यह सीमा है? वह भाव आया जब मंगल पाण्डेय ने देखा कि जिन्हें वह माँ मानते हैं अर्थात गाय, उसकी चर्बी से बने हुए कारतूसों को उन्हें मुंह से खींचना है। गाय और सुअर की चर्बी से बने हुए कारतूस जब सेना का हिस्सा बने वैसे ही असंतोष की आग तेजी से और भड़क गयी। भारतीय सैनिकों के साथ भेदभाव कोई अनोखी बात नहीं थी। पर अब बात धार्मिक विश्वास की थी। धर्म से भी बढ़कर माँ की बात थी।
हर व्यक्ति के लिए आस्था अनमोल होती है, और किसी न किसी कारण से विद्रोह की चिंगारी विस्फोट का कारण बनती है। मंगल पाण्डेय से पहले भी अंग्रेज विद्रोह का सामना करते रहे थे। परन्तु 1857 का वर्ष एक ऐसे सशक्त विद्रोह का वर्ष था, जब अंग्रेजों के समक्ष एक ऐसा एकता का परिद्रश्य आने वाला था, जो आने वाले समय में अंग्रेजों का बोरिया बिस्तर भारत से बाँधने वाला था।
मंगल पाण्डेय के विद्रोह को केवल राष्ट्र या भौगोलिक देश तक सीमित नहीं कर सकते। मंगल पाण्डेय ने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया था गाय के लिए! उन्होंने गाय की चर्बी से बने कारतूस मुंह से खींचने से इंकार कर दिया था। यह कोई साधारण घटना नहीं थी। यह वह उदाहरण था जो गौ और गंगा दोनों के प्रति एक हिन्दू के समर्पण को प्रदर्शित करने वाला उदाहरण था। उन्होंने प्राण दे दिए, पर गौ माता की चर्बी को अपने मुंह में नहीं डाला।
यह अपने धर्म पर सर्वस्व समर्पण का अनुपम उदाहरण है।
आज कुछ लोग यह कहकर मंगल पाण्डेय का उपहास उड़ाते हैं, कि यदि गाय की चर्बी के कारतूस न आते तो शायद मंगल पाण्डेय विद्रोह न करते!
यह जो प्रश्न उठाने वाले लोग हैं, यह इतनी कृत्रिमता और प्रश्नों में जीवित रहते हैं कि वह ऐसा न होता तो क्या होता, आदि में अटके रहते हैं। ऐसे तो हर नायक के लिए प्रश्न उठाया जा सकता है कि यदि उनके साथ ऐसा न होता तो वह क्या करते? प्रश्न नायकों को आपस में उलझाने का या किसी को किसी से श्रेष्ठ बताने का नहीं है। भारत भूमि पर ऐसे वीर सदा से आते रहे हैं, जिन्होनें अपना सर्वस्व अपनी भूमि के लिए बलिदान कर दिया है। और यह आज से परम्परा नहीं है। जन्मभूमि को स्वर्ग से भी बढ़कर हमारे यहाँ माना गया है। और धर्म को सबसे बढ़कर!
मंगल पाण्डेय की जयन्ती पर भी कुछ लोग विवाद उत्पन्न कर रहे हैं और बार बार यह स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं कि वह प्रथम स्वतंत्रता बलिदानी नहीं थे और इसमें अब कोई दो राय नहीं रह गयी हैं कि वाम लेखकों की कुदृष्टि अब हमारे हिन्दू धर्म को नष्ट करने के प्रयासों के बाद हमारे नायकों को आपस में भिड़ाकर फायदा उठाने पर टिक गयी है!
परन्तु आज के दिन भारत अपने नायक को नम आँखों से स्मरण कर रहा है! मंगल पाण्डेय, जब तक स्वतंत्रता आन्दोलन और वह भी धार्मिक अस्मिता के आन्दोलन की बात आएगी तो आप सदा प्रथम स्मरणीयों में से रहेंगे!
परन्तु एक प्रश्न अब उठ रहा है कि आपको समस्या किससे है कॉमरेड? मंगल पाण्डेय से, उनके ब्राह्मण होने से या फिर गाय की चर्बी के कारतूस मुंह से खींचने से इंकार करने से या फिर उनके द्वारा पैदा की गयी चिंगारी से? या फिर इस बात से कि कोई यह न मान बैठे कि आपने द्वारा फैलाया गया ब्राह्मणवाद एक झूठ का पुलिंदा है?
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