जिस नवधा-भक्ति का रामचरितमानस में प्रतिपादन हुआ है, उसमें नौ प्रकार की भगवान की भक्ति के मार्ग बताये गए हैं | परन्तु चौदहवीं सदी के समाप्त होते-होते रामानंद स्वामी के प्रताप से एक और प्रकार की भक्ति इसमें आ जुड़ी | माधुर्य-भक्ति के नाम से विख्यात इस दसवीं भक्ति में कुछ और की कामना न करते हुए भक्त प्रेम की खातिर भगवान से प्रेम करता है, भक्ति में लीन रहता है | आगे चलकर ऐसे भक्तों की संख्या ने जब बड़ा आकार लेना शुरू किया तो इनका अपना एक अलग समूह अस्तित्व में आ गया जो की ‘रसिक-सम्प्रदाय’ कहलाया |
ईसवीं सन १३९९ में मुग़लसराय में चर्मकार परिवार में जन्में रविदास इस रसिक सम्प्रदाय के महान संतों में से एक हुए; अन्य संत थे कबीर, धन्ना, सेन, पीपा, पद्मावती आदि- सब के सब वंचित समाज से और रामानंद स्वामी के द्वारा द्वारा दीक्षित थे |
रविदास के माता-पिता रामानंद पर बड़ी श्रद्धा रखते थे जिनका सानिध्य उन्हें सदा प्राप्त होता रहता था | ऐसा माना जाता है कि आगे चलकर जिस पुत्र-रत्न रविदास की उन्हें प्राप्ति हुई वह रामानंद की ही कृपा का परिणाम था |
जैसे-जैसे समय आगे बढता गया परिवार पर रामानंद स्वामी का प्रभाव बालक रविदास पर परिलक्षित होने लगा और उनका झुकाव इश्वर-भक्ति की ओर बढने लगा | धीरे-धीरे वो इतना अधिक भगवत-अभिमुख हो चले कि उनके माता-पिता को भी चिंता सताने लगी की उनका बालक कहीं वैरागी ही न हो जाये | उन्होंने उसे चर्मकारी के अपने पैतृक व्यवसाय में लगा दिया और शादी भी कर दी, इस उम्मीद से कि किसी तरह तो लड़के का ध्यान भोतिक-संसार में लगे | पर रविदास पर इसका प्रभाव कम ही पड़ा |
रामानंद स्वामी के दिव्य सानिध्य में वेद, उपनिषद्, आदि शास्त्रों का उनका अध्ययन जारी रहा, वैसे इसके साथ वो जूते-चप्पल बनाने के काम को भी पूरे लगन से करते रहे | ऐसे में उन्हें जब भी मौका मिलता वो रामानंद के साथ विभिन्न स्थलों पर होने वाले शास्त्रार्थ में शामिल होने लगे | फिर एक समय वो आया कि बड़े से बड़े पंडित और आचार्य शास्त्रार्थ में रविदास के सम्मुख नतमस्तक होने लगे |
जल्द ही रविदास और उनकी अध्यात्मिक तेजस्विता के किस्से चारों ओर पहुँचने लगे, और वे जब काशी-नरेश के कानों में पड़े तो उन्होंने उन्हें अपने महल में आमंत्रित किया | रविदासजी की भक्ति के प्रताप से काशी-नरेश इतने प्रभावित हो उठे कि उन्होंने उन्हें राजपुरोहित की पदवी से विभूषित कर दिया | राजमंदिर की पूजा -अर्चना की जिम्मेदारी अब उन पर थी |
रविदासजी अब उस दिव्य अवस्था को प्राप्त कर चुके थे कि उनके सत्संग में शमिल होने दूर-दूर से हर वर्ग के लोग आने लगे | अपने समकालीन संत-समाज से ज्ञान और दृष्टिकोण दोनो ही स्तर पर वो कहीं आगे थे | धर्म हो चाहे समाज, दोनों के क्रिया-कलाप सभी प्रकार के भेदभाव से मुक्त रहें इस पर उनका बड़ा जोर रहता था |
धर्म के प्रति किसी भी प्रकार के एकान्तिक दृष्टिकोण को नकारते हुए वो बताते थे कि मोक्ष की प्राप्ति किसी भी मार्ग से हो सकती है-चाहे वो इश्वर के साकार रूप की उपासना करके हो चाहे निराकार रूप की | अध्यात्मिक होने के कारण सांसारिक बंधन से वो परे जरूर थे, पर राष्ट्रीय हित के मुद्दों के प्रति उदासीन भी न थे |
हिन्दुओं की दुर्दशा पर वो बड़े आहत थे और मुसलमान शासकों की इस बात की भर्त्सना करते थे कि वो हिदुओं को काफ़िर मानकर व्यवहार करते हैं | सिकंदर लोधी ने उन्हें मुसलमान बनाने की जब कोशिशें करी तो उनका उत्तर था- ‘वेद वाक्य उत्तम धर्मा, निर्मल वाका ज्ञान; यह सच्चा मत छोड़कर, मैं क्यों पढूं कुरान ?’
इसके बाद भी जब सिकंदर लोधी ने सदना नाम के एक पहुँचे हुए पीर को रविदास जी के पास उनको इस्लाम का प्रभाव दिखलाकर मुसलमान बनानें के लिए भेजा, तो इसका परिणाम उल्टा ही हुआ | रविदास जी की आध्यात्मिकता से सदना इतना भाव विभोर हो उठा कि वो हिन्दू बन रामदास नाम से उनका शिष्य बन गया |
ये वो समय था जबकि चित्तौरगढ़ के राजा राणा सांगा हुआ करते थे | एक बार अपनी पत्नी, रानी झाली के संग गंगा-स्नान के लिए उनका काशी आना हुआ | स्थानीय लोगों से रविदासजी के बारे में मालूम पड़ने पर वे उनके सत्संग में सम्मलित होने जा पहुंचे | जिस दिव्य आनंद की अनुभूति उन्हें यहाँ हुई उससे अभिभूत हो उन्होंने, रानी झाली समेत, उन्हें अपना गुरु बना लिया और राजकीय-अतिथि के रूप में चित्तौरगढ़ आने का निमंत्रण दिया |
और एक बार ये सिलसिला जो शुरू हुआ तो फिर रविदासजी का चित्तौरगढ़ आना-जाना चलता ही रहा | उनके इन प्रवासों का ही परिणाम था कि मीराबाई, रानी झाली की पुत्रवधु, के हृदय में कृष्ण-भक्ति के बीज पड़े और आगे चलकर उन्होंने रविदासजी को अपना गुरु स्वीकार कर लिया | फिर एक समय ऐसा भी आया कि रानी झाली के आग्रह पर चित्तौरगढ़ को उन्होंने अपना स्थायी निवास बना लिया और वहीं से परलोकगमन की अपनी अंतिम यात्रा पूरी की |
क्या आप को यह लेख उपयोगी लगा? हम एक गैर-लाभ (non-profit) संस्था हैं। एक दान करें और हमारी पत्रकारिता के लिए अपना योगदान दें।
हिन्दुपोस्ट अब Telegram पर भी उपलब्ध है। हिन्दू समाज से सम्बंधित श्रेष्ठतम लेखों और समाचार समावेशन के लिए Telegram पर हिन्दुपोस्ट से जुड़ें ।