कल जैसे ही यह निश्चित होना आरम्भ हुआ कि ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में सत्ता में वापस आ रही हैं, वैसे वैसे दिल्ली में बैठे वाम दलों के नेताओं में और साथ ही दिल्ली के बॉर्डर पर बैठे हुए कथित किसान नेताओं के बीच खुशी की लहर दौड़ गयी। जहां जब यह आंदोलन शुरू हुआ था तो यह कहा गया था कि यह एक गैर राजनीतिक आन्दोलन है और इसका राजनीतिक दलों से कोई विशेष मतलब नहीं है। परन्तु यह बहुत ही रोचक है कि सभी आंदोलनों की तरह यह मामला भी अंतत: भाजपा विरोध में बदल गया।
दिनांक 26 नवम्बर 2020 को आरम्भ हुआ किसान आन्दोलन अब चार महीने से अधिक चल चुका है। इस आन्दोलन में डिज़ाइनर पत्रकार सहित डिज़ाइनर लेखिकाएं भी खूब जोर शोर से सम्मिलित रही हैं और उन्होंने हर प्रकार के प्रयास किए हैं कि इस आन्दोलन के माध्यम से इस सरकार को गिरा दिया जाए। पर अब तक वह असफल रहे हैं। उन्होंने हर प्रकार से 26 जनवरी को हिंसा की और इस हिंसा के लिए भी सरकार को दोषी ठहराया। पर कल जो उन्होंने किया, क्या उसे किसी भी तरह से सही ठहराया जा सकता है? कल पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के परिणाम आने वाले थे। पांच राज्यों के चुनाव परिणामों में दो राज्यों में भाजपा विजयी हुई है और पश्चिम बंगाल में 3 सीटों से बढ़कर प्रमुख विपक्ष के रूप में स्थापित हो गयी है। 78 के लगभग सीटें जीतना और उस पर भी ममता बनर्जी को नंदीग्राम से पराजित करना, यह अपने आप में सबसे बड़ी बात है। पर चूंकि वहां पर भाजपा के और अच्छे प्रदर्शन की अपेक्षा थी, इसलिए भाजपा के प्रशंसक निराश हुए।
हाँ, एक स्थान था जहाँ पर यह निराशा आशा में परिवर्तित हो गयी थी और आशा में परिवर्तित ही नहीं हुई थी, बल्कि उत्सव मनाया जा रहा था। वह स्थान थे कथित किसान आन्दोलन स्थल! यह आन्दोलन स्थल जो उस समय में भी हलचलों से भरा हुआ है, जब पूरा भारत कोविड के दर्द से तड़प रहा है, आज जब लाखों मामले भारत में आ रहे हैं, आज जब ऑक्सीजन के टैंकर्स उनके आन्दोलन के कारण रास्ता बदल कर आ रहे हैं, आज भी एम्ब्युलेंस को रास्ता बदलना पड़ रहा हो, पर वह आन्दोलन में भीड़ पर भीड़ बढ़ा रहे हैं, यह तनिक गैर जिम्मेदार रवैया प्रतीत होता है।
कल परन्तु दिल्ली हरियाणा बॉर्डर पर लड्डू बांटे गए, यह लड्डू क्यों बांटे गए और पटाखे क्यों चलाए गए? जब आपका आन्दोलन राजनीतिक था ही नहीं? भाजपा का विरोध ठीक है, परन्तु विपक्ष का पक्ष? यह कौन सा तरीका है? क्या यह आन्दोलन दल के विरोध में है या किसानों के हित में है? गाँव कनेक्शन ने चुनावों से पूर्व पश्चिम बंगाल के किसानों की स्थिति पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी। उसमें किसानों से बात की गयी थी और उनके दयनीय स्थिति के विषय में चर्चा की थी। यह भी सत्य है कि केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रही किसान सम्मान निधि योजना अभी तक पश्चिम बंगाल में लागू नहीं की गयी है। यह बात कई बार प्रधानमंत्री मोदी भी अपनी रैली में कह चुके हैं।
तो फिर ऐसा क्या मुद्दा था जिसके कारण कथित किसान उस दल की जीत में जाकर खुशी में खड़े हो गए जो न्यूनतम समर्थन मूल्य भी अपने राज्य के किसानों को नहीं दे रहा है? कल की तस्वीरें अत्यंत भ्रामक हैं क्योंकि यह कहीं न कहीं इस बात की पुष्टि करती हैं कि इनका उद्देश्य समस्या का हल खोजना नहीं, मात्र अव्यवस्था फैलाना है क्योंकि 1 मई अर्थात मई दिवस पर किसान मजदूर एकता दिवस मनाया गया था और इस अवसर पर रिलीज़ की गयी प्रेस रिलीज़ में इन्होनें सभी ट्रेड युनियनों, व्यापार मण्डलों, किसान संगठनों द्वारा 3 कृषि कानून वापस कराने, एमएसपी कानून बनाने, निजीकरण तथा 4 श्रम कोड का व्यापक संघर्ष करने की अपील की। यह अपील संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से जारी की गयी थी।
इस अपील में किसानों की मांगों के साथ ही शिकागो के 1886 के आंदोलनों को याद करते हुए, वक्ताओं ने 8 घंटे कार्यदिवस की मांग और संगठित होने व संघर्ष करने के अधिकार की चर्चा की थी। इसमें उन्होंने आगे लिखा कि इन आंदोलनों में पुलिस फायरिंग में कई मजदूर मारे गए और बाद में 7 नेताओं पर फर्जी केस दर्ज करके मौत की सजा दी गयी पर आन्दोलन जारी रहा था।
इस प्रेस नोट में वक्ताओं ने किसानों व मजदूरों से अपील की कि वे बहादुरी के साथ आगे आकर सरकार को उसकी नीन्द से झंकझोर दे और कोरोना महामारी के चिकित्सीय प्रबंध करने के लिए मजबूर करे, यानी अस्पताल चलाए, गांव की सीएचसी चलवाए, आक्सीजन की व्यवस्था कराए, पुलिस जुर्माना बंद कराए और उसे मास्क व सैनिटाईजर बांटने का काम कराए, बिस्तर, आक्सीजन व दवाओं की कालाबाजारी बंद कराए और कालाबाजारी करने वालों को जेल भेजे।
उपरोक्त बातों से यह स्पष्ट होता है कि यह आन्दोलन केवल किसान तक सीमित नहीं है बल्कि आगे बढ़कर यह अब वामपंथी हाथों में है जो हर तरह से देश में अव्यवस्था फैलाने के लिए इस आन्दोलन को प्रयोग कर रहे हैं।
कल इन खुशियों में वह यह नहीं देख पाए कि तृणमूल कांग्रेस के जीतते ही भाजपा के कार्यकर्ताओं की हत्याएं आरम्भ हो गयी हैं तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं द्वारा – अब तक 9 कार्यकर्ताओं की हत्या की जा चुकी है। और भाजपा के सोशल मीडिया कार्यकर्ता भी किसी तरह अपनी जान बचाने के लिए छिप गए हैं।
यह दो वीडियो दर्शाते हैं की किस तरह राज्य में कानून व्यवस्था पूरी तरह से टूट चुकी है, और भाजपा के समर्थकों को निशाना बनाया जा रहा है
Looting & attacks on BJP supporters has started in lawless Bengal.
When will Central Govt take steps to protect their people? pic.twitter.com/wS9sBimoA6— Siddharth (@Sidd91902935) May 3, 2021
ममता जी की जीत के बाद उनके कार्यकर्ता जश्न मना रहे है और भाजपा कार्यकर्ताओं के घर तोड़ रहे है ।
अब तक 9 से ज़्यादा भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या हो चुकी है । pic.twitter.com/sMDpX4qu61— Kailash Vijayvargiya (@KailashOnline) May 3, 2021
परन्तु लड्डू खाते इन किसानों के लिए क्या आवश्यक है, यह समझ नहीं आ रहा है!
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