spot_img

HinduPost is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma

Will you help us hit our goal?

spot_img
Hindu Post is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma
23.7 C
Sringeri
Saturday, April 20, 2024

हमें अपने संघर्ष बिन्दुओं को स्पष्ट करना है

पिछले दिनों कुरआन की कुछ आयतों को लेकर बहुत हंगामा हुआ और अधिवक्ता करुणेश शुक्ला एवं शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष वजीम रिज्वी ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की कि उन 26 आयतों को हटाया जाए, जो काफिरों के लिए खतरनाक हैं, या कहा जाए कि गैर-मुस्लिमों को मारने की भी वकालत सी करती हैं। परन्तु कुरआन में से 26 आयतों को हटाने की याचिका को रद्द कर दिया गया, और इतना ही नहीं 50,000 रूपए का दंड भी लगा।

एक बड़ा वर्ग उच्चतम न्यायालय के इस निर्णय पर रोष व्यक्त कर रहा है। दरअसल यह मामला आज का है ही नहीं। पहले भी इन आयतों पर प्रश्न उठ चुका है और न्यायालय इन आयतों को समाज के लिए घातक घोषित कर चुका है।

अब प्रश्न कई उठ रहे हैं।और लोग यह आशा कर रहे हैं कि न्यायालय इन आयतों पर संज्ञान लेकर प्रतिबन्ध लगाएंगे! परन्तु प्रश्न यहाँ पर कुछ अलग है। यह आयतें न्यायालय में पहुँच सकती हैं, पर क्या किसी भी धर्म ग्रन्थ में क्या होना चाहिए और क्या नहीं होना चाहिए, इसका निर्णय मात्र न्यायालय कर सकता है? क्या हमें इस बात से चिंतित होना चाहिए और विलाप करना चाहिए कि किस धर्म ग्रन्थ में क्या लिखा है और न्यायालय में जाकर उसे प्रतिबंधित किया जाना चाहिए?  आइये इसे और थोडा समझते हैं।

वर्ष 2011 में, रूस की एक अदालत में महाभारत को घसीट लिया गया था और कहा गया था कि इस पुस्तक पर प्रतिबन्ध लगाया जाना चाहिए।  क्योंकि यह हिंसा का समर्थन करता है। तब भी विरोध का आधार यही था कि किसी धर्मग्रन्थ के पाठ का निर्णय कोई न्यायालय कैसे कर सकता है? कैसे वह व्यक्ति जिसे गीता का सार नहीं ज्ञात, वह कैसे यह निर्णय ले सकता है कि हिन्सा का अर्थ क्या, हिंसा की परिभाषा क्या? क्या धर्म का अर्थ वही है जो रिलिजन या मजहब का है? तो जिसे धर्म का अर्थ भी नहीं ज्ञात है वह कैसे कोई निर्णय ले सकता है? यदि उस समय ऐसा कोई निर्णय लिया जाता तो संभवतया हर देश में आज हिन्दुओं के साथ वही हो रहा होता। अत: यह एक मूल बात है कि न्यायालय में क़ानून के लिए तो जाया जा सकता है, परन्तु धर्म ग्रंथों में परिवर्तन या प्रतिबन्ध के लिए नहीं, जो आपकी धरोहर नहीं हैं।

अब आते हैं दूसरे मुख्य बिंदु पर! दूसरा मुख्य बिंदु है कि एक धर्मावलम्बियों को क्या करना चाहिए? क्या उन्हें किसी दूसरे धर्म के धर्मग्रन्थ पर आक्रमण करना चाहिए या फिर अपनी ही रेखा लम्बी करनी चाहिए? हिन्दुओं के लिए संघर्ष के कई बिंदु हैं, जिनपर चलकर उन्हें संघर्ष करना है। जिनके लिए उन्हें संघर्ष करना है। उन्हें अपने कई अधिकारों के लिए लड़ना है। अपने संघर्ष की रेखा को लंबा करना है। अपने मुद्दे स्वयं निर्धारित करने हैं।

1- हिन्दुओं की पहली मांग यह होनी चाहिए कि हमारे मंदिर सरकारी हस्तक्षेप से मुक्त हों।  उनमें जो भी चढ़ावा आता है उसका प्रयोग केवल और केवल हिन्दू समुदाय के ही कल्याण के लिए हो, विशेषकर जो हिन्दू विश्वास में आस्था रखते हों।  जिन्होनें हिन्दू मंदिरों को तोड़ा और जो हिन्दू मंदिरों को पाप का स्थान मानते हैं, उन पर एक भी पैसा हमारी आस्था का व्यय नहीं होना चाहिए।

2- जिस प्रकार अल्पसंख्यकों को यह अधिकार है कि उनके बच्चे स्कूल के स्तर पर उनके धार्मिक ग्रन्थ पढ़ सकते हैं और उन्हें समझकर व्याख्या कर सकते हैं तो ऐसे ही हिन्दुओं को यह अधिकार प्राप्त हो कि उनके बच्चे स्कूल में अपने धार्मिक ग्रन्थ पढ़ें और हमारे धार्मिक ग्रन्थों को गलत तरीके से पुस्तकों में प्रस्तुतिकरण बंद हो। हमारे इतिहास को मिथक मानना बंद हो!

3- जिस प्रकार मदरसा और कान्वेंट चल हैं, और इन्हें अल्पसंख्यक संस्थानों के नाम पर विभिन्न प्रकार के अनुदान प्रदान किए गए हैं, वैसे ही अनुदान बहुसंख्यक समुदायों को भी प्राप्त हों।  उन्हें भी अपने बच्चों को आधुनिक शिक्षा के साथ साथ धार्मिक शिक्षा का अधिकार प्राप्त हो।

4- वैकल्पिक अध्ययन के नाम पर हमारे वास्तविक इतिहास के नाम पर जो खेल खेला गया है, वह बंद हो, हमारे ग्रन्थ हमारा इतिहास हैं, और इसमें तथ्यगत कोई भी छेड़छाड़ न हो।

5- केवल वही व्यक्ति हमारे इतिहास पर फिल्म बनाए या पुस्तक लिखे जिसकी इसमें आस्था हो, या वह हमारी रस्मों का पालन करता हो।

6- जो भी अधिनियम हमें निर्बल करते हैं जैसे मंदिर अधिनियम, आर्म्स एक्ट अर्थात आयुध अधिनियम, हिन्दू विवाह अधिनियम, दहेज़ अधिनियम आदि, उन्हें या तो हटाया जाए या फिर उन लोगों के साथ मिलकर बनाया जाए, जो इनमें हितधारक हैं, जो इनसे प्रभावित हो रहे हैं।

हमारा लक्ष्य हमारी अपनी उन्नति और प्रगति होनी चाहिए। हमारा लक्ष्य यह होना चाहिए कि हम अपने धर्म को संवैधानिक बेड़ियों से मुक्त कराएं। हमारे मंदिरों में उसी का हस्तक्षेप हो, जिसे हमारी समस्त परम्पराओं का ज्ञान हो।  हमारा लक्ष्य यह होना चाहिए कि हमारे बच्चों के सामने हमारे नायकों की कहानियां आएं, वीरता के मानक हों, जिससे वह इन छबीस क्या पचास आयतों का विरोध करने के लिए तैयार हो जाए।

उन्हें यह पता तो है कि सोलहवां साल केवल और केवल मुहब्बत का साल होता है, पर उन्हें अभिमन्यु की कहानी नहीं पता कि सोलहवें साल में वह इतिहास के सबसे बड़े महायुद्ध का पूरा चेहरा बदल सकता था। वीर घटोत्कच पूरी कौरव सेना को परास्त करने की क्षमता रखता था।

हिन्दुओं के लिए अपना सम्मान वापस पाने की लड़ाई है, न कि दूसरे मजहब की आयतों को प्रतिबंधित कराने की। आज यदि उस पर निर्णय आएगा तो कल आप महाभारत या रामायण आदि किसी को भी प्रतिबंधित होने से बचा नहीं पाएँगे, क्योंकि उसमें तो धर्म और अधर्म के मध्य युद्ध है ही, हिंसा है ही। और धर्म आज रिलिजन के रूप में स्थापित हो ही चुका है, यह भी दुखद है!

हिन्दुओं को एक ही बात करनी है कि हिन्दुओं का राष्ट्रीयकरण बंद हो, मंदिरों का राष्ट्रीयकरण बंद हो।


क्या आप को यह  लेख उपयोगी लगा? हम एक गैर-लाभ (non-profit) संस्था हैं। एक दान करें और हमारी पत्रकारिता के लिए अपना योगदान दें।

हिन्दुपोस्ट अब Telegram पर भी उपलब्ध है. हिन्दू समाज से सम्बंधित श्रेष्ठतम लेखों और समाचार समावेशन के लिए  Telegram पर हिन्दुपोस्ट से जुड़ें .

Subscribe to our channels on Telegram &  YouTube. Follow us on Twitter and Facebook

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest Articles

Sign up to receive HinduPost content in your inbox
Select list(s):

We don’t spam! Read our privacy policy for more info.

Thanks for Visiting Hindupost

Dear valued reader,
HinduPost.in has been your reliable source for news and perspectives vital to the Hindu community. We strive to amplify diverse voices and broaden understanding, but we can't do it alone. Keeping our platform free and high-quality requires resources. As a non-profit, we rely on reader contributions. Please consider donating to HinduPost.in. Any amount you give can make a real difference. It's simple - click on this button:
By supporting us, you invest in a platform dedicated to truth, understanding, and the voices of the Hindu community. Thank you for standing with us.