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Thursday, March 28, 2024

योग हिन्दू ही है: हिन्दू ही रहेगा!

आज पूरा विश्व योग दिवस मना रहा है। भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र ने 21 जून को योग दिवस के रूप में मनाए जाने का निर्णय किया। आज प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने आज के दिन पर कई घोषणाएं की जिनमें m-yoga app का विकास होना मुख्य है। प्रधानमंत्री योग के विस्तार के लिए हर कदम उठाने का प्रयास कर रहे हैं। आज उन्होंने गीता के श्लोक का उदाहरण दिया और लिखा कि

तं विद्याद् दुःख संयोग-

वियोगं योग संज्ञितम्।

अर्थात्, दुखों से वियोग को, मुक्ति को ही योग कहते हैं। सबको साथ लेकर चलने वाली मानवता की ये योग यात्रा हमें ऐसे ही अनवरत आगे बढ़ानी है। चाहे कोई भी स्थान हो, कोई भी परिस्थिति हो, कोई भी आयु हो।

परन्तु आज कांग्रेस के नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने ट्वीट किया कि “ॐ के उच्चारण से ना तो योग ज्यादा शक्तिशाली हो जाएगा और ना अल्लाह कहने से योग की शक्ति कम होगी”

क्या अल्पसंख्यक तुष्टिकरण में कांग्रेस अब इस हद तक गिरी है या फिर और नीचे गिरेगी यह तो प्रश्न है, परन्तु यह प्रश्न बार बार उठता है कि क्या योग हिन्दू है? इस विषय में स्पष्ट है कि हाँ, योग हिन्दू है, हिन्दू धरोहर है और इसे हिन्दुओं ने ही आज यहाँ तक पहुंचाया है। योग का अर्थ मात्र वह आसन ही नहीं हैं, जो आज के दिन किये जाते हैं या फिर रोज जो लोग करते हैं। यदि योग से ॐ को हटा दिया जाएगा, तो वह व्यायाम होगा, योग नहीं!

योग की परम्परा आज की नहीं है, इन आसनों तक ही सीमित नहीं हैं। बल्कि यह तो सम्पूर्ण सृष्टि ‘प्रकृति’ तथा पुरुष के संयोग की अभिव्यक्ति है। योग संकल्प की साधना है। योग का अर्थ है चित्त की वृत्ति का निरोध करना।

चित्त की जो दुष्प्रवृत्तियाँ होती हैं, जो आत्मा पर हावी हो जाती हैं, योग का कार्य है उन्हें हटाना। योग का अर्थ मात्र शारीरिक कसरत नहीं है, न ही मात्र शारीरिक लाभ है बल्कि शरीर और मन की शुद्धि ही योग है।

योग का अर्थ हिन्दू धर्म में मात्र यह व्यायाम या शारीरिक स्वास्थ्य नहीं है। क्या योग का अभ्यास करते हुए व्यक्ति देश के साथ षड्यंत्र रच सकता है? क्या योग का अभ्यास करने वाला व्यक्ति हिन्दू धर्म का विरोध कर सकता है? क्या योग का अभ्यास करने वाला व्यक्ति प्रभु श्री राम के विषय में कुछ भी बोल सकता है? तो इसके उत्तर हैं नहीं!

क्योंकि योग का ज्ञान तो विष्णु जी के अवतार प्रभु श्री कृष्ण ने ही अर्जुन को दिया था, वही विष्णु जिनके अवतार प्रभु श्री राम थे। जो व्यक्ति योग करता है, क्या वह कभी भी देश की हिन्दू आत्मा के विरुद्ध खड़ा हो पाएगा? क्या योग करने वाला व्यक्ति कभी भी राम मंदिर का विरोध कर पाएगा?

परन्तु योग का जो प्रचलित अर्थ है, उसका पालन करने वाले लोग यही करते हैं। योग को मात्र व्यायाम तक सीमित कर देने वाले लोग, अर्थात उसे हिन्दू से सेक्युलर बना देने वाले लोग, गौ मांस की भी वकालत कर देते हैं। योग को व्यायाम तक सीमित करने की अवधारणा वाले लोग “आस्तिक हूँ, धार्मिक नहीं” का नारा देते हुए नज़र आते हैं।

जो लोग यह कहते हैं कि योग पर किसी धर्म का एकाधिकार नहीं है, उन्हें ऐसा कहने का अधिकार किसने दिया, क्योंकि योग की उत्पत्ति भारत से ही हुई है, हिन्दू धर्म से ही हुई है। क्या प्रभु श्री कृष्ण, जब अर्जुन को कर्म योग की शिक्षा दे रहे है, वह हिन्दू नहीं हैं? क्या जब वह अर्जुन से यह कहते हैं कि “योगस्थ: कुरु कर्माणि!” तो यह हिन्दू नहीं हैं? गीता में कर्म योग में कहा गया है कि “कर्म करते हुए योग में स्थित रहना और योग में स्थित रहते हुए कर्म करना” तो क्या यह हिन्दू नहीं है?

यह हिन्दू ही है! योग हिन्दू ही है!

महर्षि पतंजलि ने दो से ढाई हज़ार वर्ष पूर्व लिखी पुस्तक योगसूत्र में अष्टांग योग बताए हैं अर्थात योग के आठ अंग। उन्होंने योग की समस्त विद्याओं को आठ अंगों में वर्गीकृत कर दिया।

उन्होंने लिखा

“यमनियमासन प्राणायाम प्रत्याहार

धारणा ध्यान समाधयोऽष्टावंगानि”

अर्थात

यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि, यह योग के आठ अंग हैं।

योगसूत्र महर्षि पतंजलि का लिखा गया ग्रन्थ है, जिसमें चार विस्तृत भागों में योग को विस्तार से एवं वैज्ञानिक पद्धति से समझाया गया है। और इन्हें पाद कहा गया है। महर्षि पतंजलि ने अपनी पुस्तक में समाधि पाद, जिसमें योग शास्त्र के आरम्भ, योग के लक्षण, चित्त की वृत्तियों के भेद और उनके लक्षण, चित्त की वृत्तियों के निरोध, ईश्वर प्रणिधान का महत्व, चित्त के विक्षेप और उन्हें दूर करने के उपाय, मन को स्थिर करने के उपाय, समाधि के अन्य भेद और उनके फल सम्मिलित हैं।

साधन पाद में क्रिया योग का स्वरुप, अविद्या आदि पांच क्लेश, क्लेश के नाश के उपाय, प्रकृति और पुरुष के संयोग, और योग के आठ अंगों का वर्णन किया गया है।

विभूति पाद में धारणा, ध्यान और समाधि का वर्णन, संयम का निरूपण, चित्त के परिणामों का विषय, प्रकृति जनित पदार्थों के परिणाम, विवेक ज्ञान एवं कैवल्य सम्मिलित हैं।

कैवल्य में सिद्धि प्राप्ति के हेतु और जात्यांतर परिणाम, संस्कार शून्यता, वासनाएं प्रकट होना और उनका स्वरुप, गुणों का वर्णन, चित्त का वर्णन, धर्ममेध समाधि और कैवल्यावस्था सम्मिलित है।

(हरिद्वार के रणधीर प्रकाशन से महर्षि पतंजलि के योगसूत्र के हिंदी अनुवाद से उद्घृत)

अष्टांग योग में से अब केवल ध्यान आसन, प्राणायाम ही योग का अर्थ बनकर रह गए हैं और व्यायाम को योग का अर्थ देकर जैसे उसे दूसरों के हवाले करने का षड्यंत्र किया जा रहा है। जो भी व्यक्ति यह कहता है कि ॐ और योग का कोई सम्बन्ध नहीं है, तो उसे ऐसा कहने का अधिकार किसने दिया।

योग का अर्थ ही चित्त की शुद्धि करना है, योग का तो प्रथम सूत्र ही कहता है कि “योगश्चित्तवृत्तिनिरोध:”  जैसे ही योग से ॐ को हटा कर अल्लाह किया जाता है तो चित्त में विकृति उत्पन्न होगी, क्योंकि ॐ के स्थान पर तो अल्लाह का प्रयोग किया जा सकता है, सेक्युलर्स के अनुसार, परन्तु क्या अल्लाह के स्थान पर ॐ का प्रयोग किया जा सकेगा? तो वन से ट्रैफिक से चित्त में विकृति नहीं उत्पन्न होगी? 

जो लोग भी योग को हिन्दू धर्म से अलग बताते हैं उनसे पूछना चाहिए कि यदि योग हिन्दू नहीं है तो क्या है? और हिन्दू योग से क्या समस्या है? योग हिन्दू ही है, जो हमें बताता है कि हमें अहिंसा करनी चाहिए, सत्य का पालन करना चाहिए, चोरी नहीं करनी चाहिए, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह (संचय न करना) का पालन करना चाहिए।

नियम हैं, अर्थात मनुष्य को कर्तव्य परायण बनाने के लिए कुछ नियम हैं, इनके कारण चित्त शुद्ध होता है।

फिर आते हैं आसन, जिनसे शरीर की शुद्धि होती है, प्राणायाम से सांस शुद्ध होती है।

यम में कहा गया है कि अपरिग्रह करना चाहिए अर्थात योगी को सात्विक जीवन व्यतीत करना चाहिए। यदि योगी आवश्यकता से अधिक धन और सामग्री का परिग्रह या संकलन करता है तो वह स्थिर नहीं रह सकता है।

यदि यम में जो पांच बातें बताई गयी हैं अर्थात

अहिंसासत्यास्तेय ब्रह्मचर्याऽपरिग्रहा यमा:

तो ऐसे में ही जो आधुनिक योग दिवस मना रहे हैं, वह कितने खरे उतरते हैं, यह भी प्रश्न है।

यदि आज के समय की जटिलताओं को भी धयान में रखा जाए और यह कहा जाए कि इतने नियम नहीं माने जा सकते हैं तो प्रचलित व्यायाम रूपी योग को कुछ और संज्ञा दी जा सकती है, नहीं तो जैसे बार बार यह कहा जा रहा है कि योग का हिन्दू धर्म से कोई सम्बन्ध नहीं है, यह शरीर को स्वस्थ रखने का माध्यम है, ऐसे में एक दिन योग और हिन्दू धर्म दो अलग अलग स्थानों पर खड़े हो जाएँगे। और उन्हें किसने यह अधिकार दिया जो यह कह सकें? योग की आत्मा को मारकर वामपंथियों, या फिर ईसाइयों या मुसलमानों की स्वीकृति योग के लिए नहीं चाहिए और इस प्रवृत्ति का विरोध होना चाहिए! और जो भी अपने राजनीतिक, एवं व्यावसायिक लाभ के लिए ऐसा कर रहे हैं, वह योग की सेवा नहीं बल्कि उसे नीचा दिखा रहे हैं, उसकी पहचान ही गायब कर रहे हैं! योग हिन्दुओं के अस्तित्व की पहचान है, इसे जाने नहीं दे सकते हैं!

कभी सूर्य नमस्कार का नाम बदल दिया जाता है, कभी पद्मासन को ईसाई नाम दे दिया जाता है, किसलिए? इस बात के कृतज्ञ होने के स्थान पर कि हिन्दुओं ने विश्व को निरोग रहने का एक माध्यम दिया, आरोग्यता का उपहार दिया, उस हिन्दू धर्म के साथ आप क्या कर रहे हैं, उसी के योग की पहचान छीन रहे हैं! कुछ वर्षों के उपरान्त वह किसी ईसाई नाम से प्रसिद्ध हो जाएगा तो हम भी ईसाई ही हो जाएँगे! इसलिए विरोध करिए! उस कृतघ्न हरे और सफ़ेद और लाल समाज से कहिये, कि आप हिन्दुओं के प्रति कृतज्ञ हों, क्योंकि विश्व को स्वस्थ होने का उपहार दिया गया है और आप उसके स्थान पर हमारे ज्ञान की पहचान छीन रहे हैं?

हर हिन्दू को यह बात ध्यान में रखना चाहिए और कहना चाहिए कि कि योग पूर्णतया हिन्दू है, क्योंकि यह प्रकृति के साथ आपको जोड़ता है, जो ब्रह्म के साथ आपको जोड़ता है!

जो ज्ञान ब्रह्मा से निकला, जिसे प्रभु श्री कृष्ण ने अर्जुन को दिया और जो महर्षि पतंजलि ने इस जगत को प्रदान किया, वह हिन्दू है, हिन्दू है और हिन्दू ही है!

और खुलकर कहिये, कि यह हिन्दू है, हिन्दू धरोहर है!


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