हिंसा की पकड़ में बुरी तरह से आए अफगानिस्तान में तालिबान ने भारतीय फोटोग्राफर दानिश सिद्दीकी की हत्या कर दी है। यह कहा जा रहा है कि वह अफगानिस्तान में जंग की रिपोर्टिंग करते हुए तालिबान के साथ हुई हिंसक झडप में मारे गए। दानिश इन दिनों रायटर्स के लिए कार्य कर रहे थे। पर ऐसा क्या हुआ जो ट्विटर पर यूजर्स कहने लगे कि यह कर्मों का फल है।
दरअसल जैसे ही दानिश सिद्दीकी की हत्या की खबर आई, वैसे ही उनके द्वारा खींची हुई तस्वीरें वायरल होने लगीं और उन तस्वीरों में सबसे मुख्य तस्वीर थी, कोरोना काल में भारत में जलती हुई चिताओं की तस्वीरें दिखाना। और दिल्ली दंगों के बीच से एक तरफ़ा तस्वीर दिखाना।
जलती हुई चिताओं की तस्वीर दिखाने पर कुछ यूज़र्स तब भी गुस्सा हुए थे और दानिश सिद्दीकी से अनुरोध किया था कि वह आपदा की तस्वीरों को धन कमाने का साधन न बनाएं। पर जलती हुई चिताओं की तस्वीर दिखाकर ही आज दानिश सिद्दीकी को याद किया जा रहा है। एक पत्रकार जहांगीर अली ने लिखा है कि अपनी तस्वीरों में दानिश सिद्दीकी ने भारत की भयानक मानवीय संकट को एक क्रोधित कवि की तरह दिखाया था:
In his visuals, Danish Siddiqui narrated the story of India’s humongous humanitarian crisis like an angry poet
Rest in peace, brother. @Reuters pic.twitter.com/Q0GwfJ34jq
— Jehangir Ali (@Gaamuk) July 16, 2021
मगर दानिश की इस हत्या के लिए कथित निष्पक्ष पत्रकार राना अयूब का ट्वीट बहुत रोचक है, क्योंकि उसमें दानिश सिद्दीकी के साथ का उल्लेख है, दोस्ती का उल्लेख है, मगर तालिबान की हिंसा का उल्लेख नहीं है।
Danish Siddiqui. One of my first colleagues at work, friend, critic, mischief monger. One of the most dedicated journalists. Pursued his most passionate obsession, his love for the camera, capturing the truth however dangerous. You left too soon bhai @PoulomiMSaha pic.twitter.com/TvDgE0eC7J
— Rana Ayyub (@RanaAyyub) July 16, 2021
इनके अतिरिक्त जितने भी न्यूज़ पोर्टल्स और चैनल्स हैं, वह भी खुलकर नहीं कह रहे हैं कि यह हत्या किसने कराई? बस यह आ रहा है कि हिंसाग्रस्त क्षेत्र में जाने पर उनकी हत्या हो गयी। पर किसने की? क्यों की? यह नहीं बता रहे हैं। उल्लेखनीय है कि जिस प्रकार दानिश सिद्दीकी ने कोरोना की दूसरी लहर में रिपोर्टिंग की थी, उससे कई लोगों में नाराजगी थी। विशेषकर तब जब उन रिपोर्ट्स के आधार पर कुम्भ को ही कोरोना का सुपर स्प्रेडर बता दिया गया था, जबकि बाद में भी यह निकल कर आया कि ऐसा कुछ नहीं था। अभी भी कोविड के मामले केरल और महराष्ट्र में है, पर यहाँ पर कोई भी कुम्भ मेला नहीं है।
सबसे हैरानी की बात लिबरल समाचार चैनलों की यह है कि कोई भी यह नहीं लिख रहा है कि आखिर दानिश की हत्या किसने की। मजे की बात यह है कि दानिश ने हिन्दू त्योहारों, भारत की राजग की सरकार आदि के विषय में बहुत कुछ आलोचनात्मक लिखा, मगर उन्हें कुछ नहीं हुआ, बल्कि वह खूब अपने मन का इस कथित फासीवादी सरकार में लिखते रहे, और इस सरकार के विरोध में चलने वाले कृषि आन्दोलन को कभी भी सुपर स्प्रेडर जैसा कुछ नहीं कहा। एक और पत्रकार बशरत पीर ने भी तालिबान का उल्लेख नहीं किया है:
Danish Siddiqui was India’s Eye! He captured some of the most seminal images of the recent years as the Reuters Chief Photographer. We lost him while he was covering the war in Afghanistan. Two days back he had a close shave. Rest in Power, Danish! https://t.co/UZZR8Cxm10
— Basharat Peer (@BasharatPeer) July 16, 2021
TOLOnews TV के प्रमुख ने भी यह नहीं बताया है कि किसने उनके प्रिय भारतीय दोस्त को मारा है, बस वह मारे लिखा है:
So tragic to hear that my Indian friend, Pulitzer Prize winner journalist Danish Seddiqi got killed in Kandahar last night. He was embedded with Afghan forces. We met last week and he was telling me about his kids, family and his work from covering Rohingya to pandemic in India.
— Lotfullah Najafizada (@LNajafizada) July 16, 2021
अनुराग सक्सेना नामक एक यूजर ने कहा कि आप एक समुदाय की भावनाओं को आहत करके जिंदा रह सकते हैं मगर दूसरे के विषय में लिख नहीं सकते:
You could offend the majority in one country and still stay safe.
In the other, you get killed for just showing the truth.
Says so much about relative culture!!!#RIP #danishsiddiqui— Anuraag Saxena (@anuraag_saxena) July 16, 2021
कुछ लिबरल पत्रकारों ने कहा कि दानिश सिद्दीकी के शव की तस्वीर शेयर न की जाए, क्योंकि यह गलत है, उसपर कई यूजर्स ने कहा कि फिर ऐसे पत्रकार को क्या कहा जाए, जो चिता की तस्वीरें दिखाकर ही प्रसिद्ध हुआ हो:
The journalists who are asking people not to share the bullet ridden body of #danishsiddiqui today, are the same ones who would click pictures of the dead/final rites of people and then upload it on getty images for money.
— ಶುಭನುಡಿ | शुभनुडि | (@shub_nudi) July 16, 2021
और जैसा हर बार होता है कि लेफ्ट लिब्रल्स की आदत होती है कि वह मुद्दे को घुमाने में माहिर होते हैं, उन्हें अपने प्रिय तालिबान को बचाना है और उन्हें हर ठीकरा कहीं और फोड़ना है। उन्होंने अभी तक अपने प्रिय फोटो जर्नलिस्ट की मौत के लिए तालिबान को दोषी नहीं ठहराया है, मगर जो लोग कल तक रोहित सरदाना की मृत्यु पर केवल हंस ही नहीं रहे थे बल्कि जश्न मना रहे थे, वह लोग अब नैतिकता की झूठी बातें कर रहे हैं।
दानिश सिद्दीकी की मौत पर तालिबान को कुछ नहीं कह रहे और न ही अच्छा तालिबान या बुरा तालिबान कर रहे हैं, अब उन्होंने कथित राष्ट्रवादी हैंडल्स की ओर अपनी वह बंदूके मोड़ ली हैं, जिनमे बारूद है तो बहुत मगर वह केवल हिन्दू, हिन्दू और हिंदुत्व पर निशाना साधने के लिए ही समर्पित है। इसलिए ओमर अब्दुल्ला से लेकर कई और लोग अब हिंदुत्ववादी हैंडल पर निशाना साध रहे हैं कि, वह जश्न मना रहे हैं दानिश की मृत्यु का। हालांकि जो भी जश्न मना रहे हैं वह मुट्ठी भर तो क्या उंगली पर गिने जाने लायक हैं, पर रोहित सरदाना की मृत्यु को कई बड़े लेखक भी जैसे दुःख व्यक्त करने जैसा नहीं मान रहे थे और अर्नब गोस्वामी के जेल जाने पर तो कई बड़े पत्रकार आइसक्रीम तक खाने की बात कर रहे थे।
इसी पर ऑपइंडिया की पत्रकार निर्वा मेहता ने ट्वीट किया है:
Remember, Taliban is not the enemy, ‘RW trolls’ are. #DanishSiddiqui pic.twitter.com/QCicciHcyr
— Nirwa Mehta (@nirwamehta) July 16, 2021
इसे कर्म की संज्ञा देते हुए एक यूजर ने लिखा कि जब आप अपना जीवनयापन दूसरों की विपदाओं को बेचकर चलाते हैं, तो आपके कर्म आप तक पलट कर आते ही हैं:
When you earn your livelihood selling miseries of others it's obvious that karma will catch you sooner or later. #danishsiddiqui
— . (@oyevivekk) July 16, 2021
इसी बीच एक और बात पर ट्विटर यूजर्स बहस कर रहे हैं कि आखिर दानिश सिद्दीकी को किसने मारा और यदि तालिबान ने मारा है तो तालिबान की निंदा क्यों कोई लिबरल पत्रकार नहीं कर रहा है? यह तालिबान से प्रेम है या डर? जो भी है, निंदनीय है।
सबसे रोचक है कि जामिया का यह कहना कि हम दानिश की मौत की निंदा करते हैं. इन्होनें तो हत्या ही नहीं स्वीकारा है
As the alumni of Jamia's AJK MCRC, where the photojournalist Danish Siddiqui studied, we condole his death. We will remember him fondly. pic.twitter.com/pXqvwiRUJA
— Neyaz Farooquee (@nafsmanzer) July 16, 2021
इसी पर एक अत्यंत रोचक ट्वीट एक यूजर ने किया कि भारत के लेफ्ट लिब्रल्स को तालिबान का शुक्रगुजार होना चाहिए कि वह दक्षिणपंथियों का क्रूर चेहरा दुनिया को दिखाने में सफल रहे:
As a liberal intellectual very thankful to Taliban for kIIing Danish Siddiqui & exposing true, hateful face of Indian RW.
Hope Taliban gets Nobel peace prize for exposing fascists.
— Rishabh (@Scar3rd) July 16, 2021
कुछ भी हो, आज भारत के कट्टर पिछड़े और इस्लामी कट्टरपंथ से डरने वाले लेफ्ट लिब्रल्स ने अपनी सीमाएं प्रदर्शित कर दी हैं!
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