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Friday, March 29, 2024

मुग़ल लुटेरे थे और हिन्दू मंदिरों के विध्वंसक थे

फिल्म निर्माता कबीर खान ने पिछले दिनों यह बयान देकर मजहबी गुलामी मानसिकता का परिचय दिया कि मुगलों को भारत का निर्माता कहा जाना चाहिए और उनका चित्रण गलत किया जाता है। क्या यह सही है कि मुगल भारत के निर्माता थे? या यह सही है कि मुगल केवल लुटेरे थे और कोई नहीं! दरअसल हिंदी फिल्मों, साहित्य और यहाँ तक कि इतिहास में भी मुगलों का महिमामंडन किया गया है और गलत तथ्यों को प्रस्तुत किया गया है और उन्हें ही जैसे स्थापत्य, फैशन आदि का जनक बता दिया गया है, जो पूरी तरह से मिथ्या है।

यदि मध्यकाल का इतिहास पढ़ते हैं, तो उसमें मुगलों द्वारा किया गया ध्वंस भी गौरवशाली तरीके से लिखा गया है। जैसे मंदिर तोड़कर मस्जिदों का निर्माण करना। और फिर इसे इतिहास की किताबों में यह कहते हुए सामान्यीकृत करने का पाप किया गया है कि युद्ध के बाद मंदिर तोड़ना एक सामान्य घटना थी और यह प्राय: सभी राजा किया करते थे।

मगर मुगलों ने मन्दिर बनवाने के लिए धन दिया, यह भी इतिहास की उन पुस्तकों में लिखा गया, जिन्हें पढ़कर एक सामान्य बच्चा उसे सच मानने लगता है।  एनसीईआरटी की इतिहास की पुस्तकें तथ्यगत कम काल्पनिक अधिक प्रतीत होती हैं। और यह सिलसिला मुगल, तुर्क से पहले अशोक तक जाता है। ऐसा लगता था जैसे एनसीईआरटी का उद्देश्य मात्र हिन्दू द्वेष ही रह गया है, और अभी तक बच्चे वही काल्पनिक इतिहास पढ़ रहे हैं, जिनमें यह बताया जाता है कि हिन्दू धर्म की हिंसा से घबराकर अशोक ने बौद्ध धर्म अपना लिया, जबकि वह बहुत पहले ही बौद्ध उपासक हो चुके थे।

उसके बाद क़ुतुब मीनार जैसी इमारतों, जिन्हें मंदिर तोड़कर बनाया गया, और जिसके प्रमाण वहां पर उपस्थित हैं, को इस्लाम की स्थापत्य कला का नमूना बता दिया गया, जबकि उसका स्थापत्य चीख चीखकर अपनी सत्यता का प्रमाण दे रहा है। फिर भी बार बार बच्चों के समक्ष झूठ परोसा गया। इतना ही नहीं हिन्दू मंदिरों के विध्वंसक को हिन्दू मंदिरों के प्रशंसक के रूप में भी प्रस्तुत किया गया, और वह किसी और नें नहीं बल्कि भारत के प्रथम प्रधानमंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू ने किया था।

HINDU TEMPLES, WHAT HAPPENED TO THEM ? में सीता राम गोयल लिखते हैं कि पंडित नेहरू प्रोफ़ेसर हबीब से भी कहीं आगे निकल गए हैं। प्रोफ़ेसर हबीब ने यह लिखा है कि कैसे महमूद गजनवी ने मथुरा के मंदिर जलाने के आदेश दे दिए थे और वह भी उनके स्थापत्य की प्रशंसा करने के बाद। मगर जवाहर लाल नेहरू ने यह वर्णन किया कि कैसे महमूद गजनवी ने यह बताया कि महमूद गजनवी ने मथुरा के मंदिरों की प्रशंसा की। मगर वह यह छिपा गए कि उसने उन मंदिरों को नष्ट किया था। और इस प्रकार वह व्यक्ति जो हिन्दू मंदिरों को नष्ट करने वाला था, उसे स्थापत्य का सबसे बड़ा प्रशंसक बनाकर प्रस्तुत कर दिया गया।

और यह विवरण डिस्कवरी ऑफ इंडिया में भी पृष्ठ 235 पर उपस्थित है, जिसमें पंडित जवाहर लाल नेहरू यह लिख रहे हैं कि महमूद गजनवी दिल्ली के पास मथुरा शहर के मंदिरों से बहुत प्रभावित था। इस विषय में वह लिखते हैं कि मथुरा में हज़ारों मूर्तियाँ और मन्दिर थे और इन्हें बनाने में लाखों दीनार खर्च हुए होंगे, ऐसा कोई भी निर्माण पिछले दो सौ सालों में नहीं हुआ होगा।”

मगर पंडित जवाहर लाल नेहरू बहुत ही सफाई से यह छिपा ले जाते हैं कि महमूद ने उसके बाद सभी मंदिरों में आग लगा दी थी। वामपंथियों और इस्लाम का बचाव करने वालों ने एक सिद्धांत गढ़ा और महमूद गजनवी आदि को ऐसा व्यक्ति बताया जिसके दिल में मजहब के लिए आदर नहीं था, यही लाइन पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भी डिस्कवरी ऑफ इंडिया में लिखी है कि महमूद मजहबी कम था और योद्धा अधिक था और भारत उसके लिए एक ऐसी जगह थी जहाँ से वह लूट कर ले जा सके।

लूट, मन्दिरों के विध्वंस को इस्लाम से अलग किया गया। और इसे बाद में प्रोफ़ेसर हबीब ने भी स्थापित करने का प्रयास किया कि लूट के लिए हवस कभी भी इस्लाम की अवधारणा नहीं थी और न ही मंदिरों को तोड़ना इस्लाम था। और सीताराम गोयल कहते हैं कि यही बाद में मार्क्सवादी इतिहासकारों की पार्टी लाइन बन गयी।

और इसके साथ ही एक नए सिद्धांत को गढ़ा गया जिससे मन्दिरों के विध्वंस से इन मुस्लिम शासकों को बरी किया जा सके और वह था कि हिन्दू मंदिर चूंकि राजनीतिक षड्यंत्रों का अड्डा होते थे, इसलिए उन्हें नष्ट करना मुस्लिम शासकों के लिए अनिवार्य हो गया था।

इन्हीं सिद्धांतों के आधार पर न केवल इतिहास लिखा गया बल्कि हिन्दू देवी देवताओं के खिलाफ फ़िल्में और अब आकर ओटीटी बनाई जाने लगीं। हिंदी साहित्य का तो हाल सबसे बुरा है जहां पर वामपंथी आलोचकों और संपादकों का प्रिय बनने के लिए हिन्दू साहित्य को नकारने और उन्हें दोषी ठहराने की परम्परा एवं मुस्लिमों को हर कीमत पर सही ठहराने की परम्परा आरम्भ हुई थी।

परन्तु तथ्य वही हैं कि मुगल लुटेरे थे और आने वाले लेखों में मंदिरों को इन्होनें कितना लूटा इसके विषय में और भी तथ्य प्रस्तुत किए जाएंगे।

फीचर्ड इमेज: ट्विटर साभार


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