फेमिनिज्म, भारत में अब हिन्दू विद्वेष का दूसरा नाम बन गया है। इन दिनों फेमिनिज्म के नाम पर कई वेबसाइट्स चल रही हैं। जिनमें फेमिनिज्म इन इंडिया और शीदपीपल दो मुख्य हैं। जो लगातार एक से बढ़कर एक ऐसा विमर्श प्रस्तुत कर रही हैं, जो हिन्दू समाज के लिए घातक है, घातक ही नहीं है बल्कि यह विमर्श के बहाने हिन्दू धर्म की पहचान भी छीनने का प्रयास कर रहे हैं।
सबसे पहले तो हमें यह समझना होगा कि हिन्दू धर्म में स्त्रियों की पहचान क्या है? क्या वह बाहरी आवरण से प्रमाणित होती है या उसमें भीतर एक ऐसा विमर्श है जो प्रत्येक बाहरी विमर्श से परे है? आखिर बार बार ऐसी वेबसाइट्स क्यों आकर हिन्दुओं को ही शिकार बनाती हैं?
इन सभी वेबसाइट्स में जो मुख्य कहानियां हैं, उनमें जो मुख्य चित्र बनाए गए हैं, वह सभी हिन्दू धर्म को ही इंगित करते हैं। समाज को कथित रूप से सुधारने वाली जो भी कहानियाँ हैं, उनमें हिन्दू धर्म को ही निशाना बनाया गया है, परन्तु अब्राहमिक समुदाय की औरतों पर कुछ नहीं कहा गया है। न ही यह जानने का प्रयास किया गया है, कि जिन कथित बुराइयों की बात इसमें की जा रही है, क्या उनमें से कोई भी बुराई हिन्दू धर्म में थी भी या नहीं? या फिर अब्राहमिक मजहबों की बुराइयों को हिन्दू धर्म की बुराई बनाकर ही पेश किया जा रहा है।
shethepeople में ओपिनियन वाले कॉलम में लगभग हर लेख हिन्दू धर्म की विवाह की अवधारणा के विरोध में खड़ा है। जैसे विवाह करना सबसे बड़ा पाप हो? जैसे पुरुष ही उनके जीवन की सबसे बड़ी समस्या हो। व्यक्गित समस्या को केस स्टडी बनाकर प्रस्तुत किया जाता है। जैसे एक लेख है “डियर वीमेन, स्टॉप टेकिंग वैलिडेशन फ्रॉम मेन! एप्रिशेएट योरसेल्फ” अर्थात प्रिय महिलाओं, पुरुषों से मान्यता लेना छोडो, अपना आदर करना सीखो!
इसमें जैसे पुरुष को एक ऐसी इकाई के रूप में प्रस्तुत कर दिया है, जो स्त्रियों का शत्रु है और उसके विचार स्त्री के लिए मायने नहीं रखता है। मगर क्या वाकई ऐसा है? क्या पुरुष वास्तव में स्त्री का शत्रु है और किसी भी कार्य को करते समय उसके सुझावों को संज्ञान में नहीं लेना चाहिए? क्या एक ऐसा समाज जिसमें स्त्री और पुरुष के लिए अर्द्धनारीश्वर का स्वरुप पूजा जाता है, उसमें एक स्त्री को भड़काया जा रहा है कि वह पुरुषों से कोई बात न पूछे?
दरअसल यह जो फेमिनिज्म है, जो स्त्री को पुरुष के सामने खड़ा करता है, उसके खिलाफ खड़ा करता है, वह उस सोच से पैदा हुआ है जो gynocentrism आधारित है। gynocentrism का अर्थ होता है औरतों का ही केंद्र में होना। हालांकि इससे कोई समस्या तब तक नहीं है जब तक केंद्र में स्त्री और पुरुष दोनों ही हैं, अर्थात अर्द्धनारीश्वर है!” परन्तु चूंकि आधुनिक फेमिनिज्म का अर्थ है स्त्रियों को ही केंद्र में रखना और पुरुषों को बाहर कर देना तथा Misandry में अंतत: बदल जाना। Misandry ने फेमिनिस्ट विचारधारा का विकास करने में सहायता की है, तथा इसके बिना फेमिनिस्ट विचारधारा चल ही नहीं सकती है। Misandry के विषय में मेर्रियम-वेबस्टर डिक्शनरी में लिखा है कि “hatered of men!”
फेमिनिस्ट द्वारा इन दिनों जो प्रोपोगैंडा फैलाया जा रहा है, उसमें तथ्य नहीं है अपितु वह अवधारणा है जिसमें पुरुष को ही समस्त अत्याचारों का केंद्र बताया जाता है। परिवार और शादी के खिलाफ आरम्भ हुआ फेमिनिज्म अब इन वेबसाइट्स के माध्यम से वहां तक भी जा रहा है, जहाँ अभी तक परिवार को प्राथमिकता दी जाती रही है।
जहां भारत में यह माना जाता रहा था कि विवाह इसलिए किया जाना चाहिए जिससे स्त्री और पुरुष पूर्ण ही न हों अपितु वह समाज के हित में संतानोत्पत्ति करें। उसमें मूल्यों का संचार करें। तथा विवाह में भी “गन्धर्व” विवाह तो स्वीकृत था ही बल्कि साथ साथ ही कन्या और वर के गुणों के अनुसार ही विवाह का निर्धारण आदर्श माना जाता था। जैसा हमने सावित्री की कथा में देखा था। महाभारत में भी अर्जुन द्रौपदी स्वयंवर को ब्राह्मण भेष में जीतते हैं।
ऐसे एक नहीं कई उदाहरण हैं जिनमें गुण प्राथमिक थे। जब गुणों के एक समान धरातल पर समान रूप से खड़े स्त्री पुरुष का विवाह होगा तो उनसे उत्पन्न होने वाली सन्तान न ही कुंठित होगी एवं न ही वह अत्याचार प्रतीत होगी। वह विवाह भी ऐसा अत्याचार प्रतीत नहीं होगा जिससे बाहर जाने की ललक उत्पन्न हो।
जबकि यह फेमिनिस्ट जिस शादी की बात करती हैं, उस विषय में वह स्वयं ही स्पष्ट नहीं हैं कि इन्हें स्त्री केन्द्रित चाहिए या फिर पुरुषों के प्रति घृणा करने वाला फेमिनिज्म चाहिए या फिर पूरे समाज का विरोध करने वाला, या फिर हिन्दू कांसेप्ट का विरोध करने वाला फेमिनिज्म चाहिए!
जो लिख रही हैं वह पहचान के संकट से जूझ रही हैं और अपनी पहचान समाप्त कर चुकी औरतें अब हिन्दू समाज की उन शेष स्त्रियों की पहचान समाप्त करना चाहते हैं, जो अभी भी लोक को जीवित रखे हैं, जो हिन्दू धर्म को जीवित रखे हुए हैं।
अत: gynocentrism के केंद्र वाला फेमिनिज्म Misandry अर्थात पुरुषों के प्रति घृणा से बढ़ते हुए अब हिन्दू धर्म के एकदम विपरीत जाकर खड़ा हो गया है!
*पहचान के संकट पर हम कल एक विस्तृत लेख पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत करेंगे!
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