इस साल जनवरी में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने वित्तीय समावेशन के नाम पर इस्लामी बैंकिंग की अनुमति दी थी। दीपक मोहंती की अध्यक्षता वाली “वित्तीय समावेशन के लिए मिड-टर्म पाथ” पर गठित आरबीआई की समिति ने सिफारिश की है कि बैंकिंग क्षेत्र में “ब्याज मुक्त विंडोज” को मौजूदा पारंपरिक बैंकों के साथ चलाया जा सकता है। यह सिफारिश इस्लामी बैंकिंग के लिए रास्ता साफ करने के लिए की गई, जिसमें ब्याज को प्रतिबंधित कर दिया जाता हैं। भारत में शरीयत के अनुरूप इस्लामी बैंकिंग को व्यापक तौर पर शुरू करने लिए पहला कदम तब लिया गया जब सऊदी अरब स्थित इस्लामिक डेवलपमेंट बैंक को गुजरात में परिचालन की अनुमति दे दी गयी। हाल ही में 19 नवम्बर को रिजर्व बैंक ने सभी परंपरागत बैंकों में ‘इस्लामिक विंडो’ खोलने की बात कही है।
इससे पहले भारतीय रिजर्व बैंक के कार्य समूह ने वर्ष 2007 में यह सिफारिश की थी कि भारत में इस्लामी बैंकों को संचालित करने की अनुमति नहीं होनी चाहिए। पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन के कार्यकाल के दौरान उनके नेतृत्व में भारतीय रिजर्व बैंक ने अपने पहले किए गए फैसले को पलटते हुये कहा कि इस्लामी बैंकिंग को भारत में लागू किया जा सकता है। वर्तमान की केंद्र सरकार भी इस्लामी बैंकिंग को भारत में शुरू करने को ले कर बहुत उत्सुक है। शरीयत कानून के अनुसार, सिद्धांत पर ब्याज ‘हराम’ है। इसलिए, इस्लामी बैंकिंग ब्याज-दरों की अवधारणा नहीं है। यह प्रतिकूल निर्णय देश के वित्तीय व्यवस्था को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है। चूँकि यह धार्मिक आधार पर लिया गया निर्णय है और धार्मिक आधार पर सरकारी कार्यों को करने कि धारणा हमारे धर्म निरपेक्ष सिद्धांतों के प्रतिकूल है। वित्तीय प्रभाव से अधिक, इस्लामी बैंकिंग हिंदू बहुल भारत के धर्मनिरपेक्ष लोकाचार की दिशा में एक प्रतिकूल कदम हो सकता है।
हालाँकि, सरकारी बैंकों में लागू होने से पहले ही इस्लामी बैंकिंग की शुरुआत हो गयी है। महाराष्ट्र के एक सहकारी संगठन के प्रमुख सुभाष देशमुख, जो भाजपा नेता और राज्य के सहकारिता मंत्री भी हैं, के द्वारा बैंकिंग क्षेत्र में पहली बार शरिया के अनुरूप इस्लामिक बैंकिंग की शुरुआत की गयी हैं। सुभाष देशमुख के इस इस्लामी बैंकिंग में ब्याज मुक्त जमा दोनों प्रकार के खाता धारकों – मुसलमानों और गैर मुसलमानों, से स्वीकार कर लिया जाता है। किन्तु ब्याज की शून्य दर पर वित्तीय सहायता को केवल मुस्लिम समुदाय के जरूरतमंद लोगों को ही वितरित किया जाता है। देशमुख द्वारा नियंत्रित इस “लोकमंगल सहकारी बैंक लिमिटेड” ने अबतक 2.50 लाख रुपये गरीब मुसलमानों को इस शरीयत बैंकिंग मार्ग के माध्यम से वितरित किया है। मंत्री सुभाष देशमुख का कहना है कि अन्य सभी सहकारी बैंक भागीदारी बैंकिंग के लिए अब शरीयत बैंकिंग मॉडल का पालन करें, इस हेतु श्री देशमुख महाराष्ट्र में अन्य बैंकों और वित्तीय संस्थानों से मुलाकात करेंगे। यह ध्यान देने वाली बात है कि यही महाशय 8 नवम्बर से हुई नोटबंदी के बाद लाखों रुपयों के नोटों के साथ पकड़े गए।
इससे पहले कि हम इस्लामी बैंकिंग के सामाजिक-आर्थिक प्रभावों का विश्लेषण करें, हमें इस्लामी बैंकिंग के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालना चाहिए। इस्लामी बैंकिंग की कुछ प्रमुख अवधारणाएँ है: रीबा (ब्याज), हराम (गैर-इस्लामी), हलाल (इस्लामी), ग़रार (अनिश्चितता), मयसिर (जुआ) और जकात (दान)। इनमे रीबा ब्याज मुक्त बैंकिंग का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है। रीबा का मतलब होता है ब्याज का निषेध। जबकि ‘हराम’ तथा ‘हलाल’ व्यवस्थाएं ब्याज मुक्त वित्तीय गतिविधियों को मुसलमानों और गैर मुसलमानों में अंतर रखने के लिए इस्लामी तरीके हैं। जबकि इस्लामी बैंकिंग के ‘ग़रार’ तथा ‘मयसिर’ प्रावधानों के माध्यम से जुआ, वायदा कारोबार आदि सभी अनिश्चित देनदारियों के सभी रूपों पर रोक लगाई गयी है। इस्लामी बैंकिंग का एक अन्य पहलू है ‘जकात’ जो कि इस्लामी चैरिटी का एक मुख्य साधन है। इस्लाम में ज़कात का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है, इसे इस्लाम के पाँच स्तंभों में से एक माना गया है। इस्लामी बैंकिंग से एकत्रित ‘ज़कात’ को केवल मुस्लिमों की सहायता के लिए ही उपयोग किया जा सकता है।
इस्लामी बैंकिंग सिस्टम उपरोक्त इस्लामिक पहलुओं का सख्ती से अनुपालन करता है, जिसकी वजह से यह मुसलमानों के लिए विशेष बनता है। शरीयत न्यायविदों के अनुसार, भारत जैसे दार-उल-हरब (एक गैर-इस्लामी राज्य) देश में मुसलमानों को गैर मुसलमानों के साथ ‘रीबा’ लेनदेन की अनुमति नहीं है। इसके बावजूद भारत जैसे गैर-इस्लामी देश में एक इस्लामी बैंक चलाने की अनुमति देने का मतलब है गैर-मुसलमानों (काफिरों) पर ‘रीबा’ ‘ग़रार और मयसिर’ जैसी कड़ी वित्तीय व्यवस्थाएं थोपना जो कि उन्हे वित्तीय लाभ से वंचित रखती हैं। हदीस 8.24 के अनुसार, इस्लामिक जकात (दान) को एक काफिर (गैर-मुस्लिम) को देने की अनुमति नहीं है। यह जकात केवल इस्लामी कार्यों या मुसलमानों के लिए ही खर्च किया जा सकता है। अतः इस्लामी बैंकिंग से होने वाली आय भारत के बहुसंख्यक हिंदुओं के लिए नहीं है। इन सब ऊटपटाँग इस्लामी वित्तीय नियमों का एक पहलू यह भी है कि इस्लामी बैंकिंग में हवाला कारोबार करना वैध है। भारत में लगातार हमले कर रहे इस्लामिक आतंकवादी संगठन हवाला कारोबार से ही पैसे पाते हैं।
इस्लामी बैंकिंग उन मुस्लिम देशों में भी असफल रही है जहाँ की पूरी जनसंख्या ही मुस्लिम है। हालांकि कुछ गैर मुस्लिम अर्थशास्त्रियों ने भी इस्लामी बैंकिंग को सराहा है, लेकिन अपने काफ़िर-विरोधी प्रावधानों के कारण यह वर्तमान की वित्तीय प्रणाली पर एक गंभीर खतरा है। भारत में यह एक आम बात है कि वर्तमान के बैंकिंग सुविधाओं के साथ कुछ मुस्लिम गिरोह जानबूझकर वित्तीय धोखाधड़ी करते हैं जिसमें असुरक्षित ऋण मंजूर करवाना और फिर वापस न देना, व्यक्तिगत ऋण का ना चुकाना आदि शामिल है। ये लोग सुनियोजित तरीके से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक से कर्ज लेते हैं लेकिन चुकाते कभी नहीं। यही वजह है भारतीय मुसलमानों के बीच छोटे और मध्यम ऋण-बकाएदारों की एक बड़ी संख्या है, तथा बैंक भी उनको ऋण देने से कतराते हैं। ऐसी स्थिति में इस्लामी बैंकिंग को हर जगह की अनुमति दी जाएगी, तो यह प्रक्रिया और अधिक हो सकती है। इस तरह के बकाएदार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (गैर-इस्लामी बैंकों) से ऋण लेंगे और इस्लामी बैंकों में जमा कर देंगे। इससे जकात के धन में वृद्धि होगी। जो वास्तव में सार्वजनिक क्षेत्र का धन है। और यही जकात इस्लामी आतंकवादियों के संगठन और वहाबी कट्टरपंथी संगठनों को दान के लिए प्रयोग किया जाता है। कुछ रिपोर्टों के अनुसार, दुर्दांत आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट को भी भारत से जकात के माध्यम से परोक्ष रूप से वित्त पोषित किया गया।
अब इस्लामी बैंकिंग का कानूनी पहलू देखते हैं। शरीयत कानून सिर्फ मुसलमानों के लिए ही सुरक्षा गार्ड हैं। वे कानून मुसलमानों को काफिरों (गैर-मुस्लिमों) का हर तरीके से शोषण करने की अनुमति देते हैं, जिनमे वैसे तरीके भी शामिल हैं जो मुसलमानों के लिए हराम हैं। उदाहरण के लिए, शरीयत कानूनों के सबसे बड़े स्रोत कुरान से कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं: चूँकि अल्लाह काफिरों (गैर-मुसलमानों) से नफरत करता है, (कुरान 40:35), कुरान यह अनुमति देता है कि मुसलमान उन काफिरों (गैर-मुसलमानों) का मज़ाक उड़ा सकते हैं (कुरान 40:35), मुसलमान उन काफिरों के साथ विश्वासघात कर सकते हैं (कुरान 86:15), उन्हे आतंकित कर सकते हैं (कुरान 8: 12) आतंकित और काफिरों के सिर भी काट सकते हैं (कुरान 47: 4)। कुरान यह भी आदेश देता है कि मुसलमान, लड़ाई में मारे गए या हराए गए काफिरों की पत्नियों और लड़कियों को छिन कर सेक्स दासी और बंदी भी बना सकते हैं (कुरान 4:3, 4:24, 33:50)। कुरान में काफिरों के खिलाफ लड़ाई को जिहाद कहा गया है और जिहाद को इस्लाम का प्रमुख मकसद बताया गया है। कुरान मुसलमानों को प्रेरणा देता है कि उन्हें काफिरों के खिलाफ़ लड़ाई (जिहाद) करनी चाहिए (कुरान 4:76)।
कुरान के अधिकतर हिस्से में काफिरों (गैर-मुसलमानों) के खिलाफ घृणा भरी हुई है। शरीयत कानून इन्ही आयतों पर आधारित है। वर्तमान में वहाबियों, पर्सनल लॉं बोर्ड, और स्थानीय मस्जिदों में यह सभी आयतें हर दिन मुसलमानों के बीच प्रचारित की जातीं हैं। मुसलमानों के अधिकतर संगठन भारत में शरीयत कानून लागू करने की मांग करते हैं। यदि उनकी शरीयत कानूनों की मांग को धीरे-धीरे पूरा किया जाता है, तो यह उस ‘पवित्र-किताब’ की आयतों के अनुरूप गैर-मुसलमानों के खिलाफ अपराधों को भीषण करने के लिए प्रोत्साहित करने जैसा है।
पिछले कई वर्षों में इस्लामिक आतंकवादियों के बहुत सारे संगठन अस्तित्व में आए हैं। इन संगठनों को कोई न कोई इस्लामिक देश आधिकारिक रूप से समर्थन जरूर करता है। दुनिया भर से एकत्रित ज़कात का अधिकतर हिस्सा इन इस्लामिक देशों को ही जाता है, जहाँ पर दान में आए पैसे पर कोई आधिकारिक निगरानी और नियंत्रण नहीं होता है। यही वजह है कि तमाम प्रतिबंधों के बावजूद इस्लामिक स्टेट, अल-कायदा आदि आतंकी संगठनों को भारत से भी पैसे भेजे जाते रहे। भारत में इस्लामी बैंकिंग लागू होने से आतंकवादियों को वित्तीय समर्थन देने की प्रक्रिया और व्यापक हो जाएगी।
शरीयत कायदे और कानूनों से भारत जैसे देश में काफिरों (गैर-मुस्लिमों) को होने वाले नुकसानों के मुक़ाबले इस्लामी बैंकिंग से समावेशन जैसे कुछ मामूली लाभ सिर्फ स्वांग मात्र लगते हैं। मौजूदा बैंक प्रणाली को बर्बाद करना और इस्लामिक आतंकवादियों को पैसे उपलब्ध कराने से अधिक खतरा सार्वजनिक हित व कानून बनाने वाले एथिक्स को है। सरकार द्वारा शरीयत कानूनों को अधिक स्थान देने का मतलब भारत में रह रहे अधिसंख्य काफिरों (गैर-मुसलमानों) के साथ सरे-आम अन्याय।
वर्तमान में जब भारतीय अदालतों ने ‘अल्पसंख्यकवाद’ के नाम पर मुस्लिमों को शरीयत कानूनों के अनुरूप बहुविवाह और बाल-विवाह को अनुमति दे रखी है, इस दशा में अगर यह प्रस्तावित इस्लामी बैंकिंग लागू हो जाता है तो भारत को शरीयत कानूनों के अनुरूप ‘दारुल-इस्लाम’ बनाने का रास्ता खुल जाएगा, जो सभी गैर-मुसलमानों के लिए बहुत भी भयावह स्थिति है। इन्ही शरीयत कानूनों के अनुसार अधिकतर मुस्लिम देशों में पत्नियों को पीटना और प्रताड़ित करना जायज है। भारत में भी शरीयत कानून द्वारा बहुविवाह और बाल-विवाह जायज है। इसके लिए मुस्लिम पर्सनल लॉं बोर्ड बाकायदा शरिया कोर्ट भी चलता है। कल्पना कीजिये कि हम इसी प्रकार इस्लामी वित्तीय व्यवस्था रखना, व्यक्तिगत व्यवस्था रखना, पत्नियों को प्रताड़ित करना, सेक्स दासियाँ रखना, आदि अंधयुगीन शरीयत क़ानूनों को अनुमति देते गए तो वह दिन दूर नहीं होगा जब भारत के 85% लोगों को 15% लोगों के अनुरूप जीने को मजबूर होना पड़ेगा। यही नहीं, जिस काले-धन को रोकने के लिए सरकार ने सभी 125 करोड़ भारतियों को प्रभावित कर दिया, वही काला धन इस्लामी बैंकिंग के लागू होने से तेजी से बढ़ सकता है। चुकीं जमा धन पर ब्याज प्रतिबंधित है और लाभ का वितरण स्पष्ट नहीं है, लालची लोग इस्लामी बैंकिंग को काले-धन को मुख्य जरिया बना सकते हैं। इस्लामी बैंकिंग में हवाला कारोबार के जायज होने से यह समस्या और खतरनाक हो सकती है।
यह विडम्बना ही है कि इस्लामिकरण के इतने बड़े खतरे का विरोध करने वाले गिने चुने लोग ही हैं। इस प्रस्तावित इस्लामी बैंकिंग पर तथाकथित रूप से स्वयं को सेकुलर कहे जाने वाले लोग इसलिए चुप हैं क्योंकि उनके वोट-बैंक का सवाल है। वहीं सरकार का समर्थन करने वाले लोग इसका विरोध नहीं करना चाह रहे। अब हम जागरूक नागरिकों की यह बड़ी ज़िम्मेदारी है कि इस इस्लामिकरण के कदम का प्रतिरोध करें और सदियों से सुरक्षित भारतीयता को शरीयत से बचाएँ ताकि भारत भी पाकिस्तान और सिरिया जैसा बर्बाद देश ना बनाने पाये।
~ अमित श्रीवास्तव
Twitter: @AmiSri
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