पिछले दो दिनों से दिल्ली उच्च न्यायालय में दिल्ली सरकार की डांट पड़ रही है। बार बार प्रशासनिक अक्षमता भी साबित हो रही है। कल चली सुनवाई में केंद्र सरकार का पक्ष रख रही वकील मोनिका अरोड़ा ने यह स्पष्ट कहा कि जैसे जैसे केंद्र सरकार के अधिकारी यह कदम बताते गए कि कैसे कैसे और कब कब और क्या क्या मदद दिल्ली सरकार की केंद्र सरकार ने की है और कैसे यह केवल और केवल दिल्ली सरकार की प्रशासनिक अक्षमता थी जिसने दिल्ली के अस्पतालों में ऑक्सीजन की कृत्रिम कमी कराई और कैसे लोगों की जान के साथ खेला!
दिल्ली सरकार की प्रशासनिक अक्षमता मात्र इसी बात से प्रमाणित हो गयी जब आईनॉक्स ने न्यायालय में कहा कि उनके पास केवल और केवल 17 ही अस्पतालों की सूची आई थी जहाँ पर ऑक्सीजन भेजनी थी। उन्होंने शेष 28 अस्पतालों की सूची नहीं भेजी! आईनॉक्स कंपनी ने यह भी कहा कि उनके यहाँ दिन रात बिना रुके ऑक्सीजन का उत्पादन हो रहा है, पर यह दिल्ली सरकार है जो बार बार उनके ट्रक को निर्देश दे देती है, कि इधर जाएं या उधर जाएं! उनके पास न सूची ही नहीं है कि कितने अस्पतालों के पास ऑक्सीजन भेजनी है।
इस पर न्यायालय ने ही संज्ञान नहीं लिया है बल्कि गृह मंत्रालय ने भी यह प्रश्न किया है कि जब 45 अस्पतालों के लिए ऑक्सीजन मिलनी थी तो क्या कारण था कि केवल 17 ही अस्पतालों की सूची भेजी गयी? आखिर क्या कारण रहा था? बार बार यह प्रश्न न्यायालय ने भी दिल्ली सरकार से पूछा तो दिल्ली सरकार के पास कोई उत्तर नहीं था। दिल्ली सरकार से न्यायालय ने अगले दिन उत्तर जमा करने के लिए कहा।
परन्तु इससे पहले कि न्यायालय के पास वह उत्तर जमा करते, केजरीवाल सरकार ने एक नया दांव खेल दिया है। यह दांव बहुत रोचक है। क्योंकि अब यह न्यायालय की साख पर बात है। अब यह न्यायालय को रिश्वत देने का कदम प्रतीत हो रहा है। दरअसल कल जब अरविन्द केजरीवाल सरकार की न्यायालय में काफी थू थू हुए तो मीडिया को विवश होकर न्यायालय की कार्यवाही के क़दमों को दिखाना पड़ा। जब उन्हें क़दमों को दिखाया पड़ा तो इतने दिनों से चला आ रहा “केंद्र सरकार हमें ऑक्सीजन नहीं दे रही” का शोर थमा। यह साबित हुआ कि केंद्र सरकार ने पीएम केयर फंड से आठ ऑक्सीजन संयंत्र स्थापित करने के लिए पैसे दिए थे, जिनमें से केवल एक ही लगाया गया। शेष सात संयंत्र का पैसा कहाँ गया? यह भी उत्तर अभी केजरीवाल सरकार नहीं दे पाई है।
व्यवस्था को कोसने वाले यह लोग यह नहीं जान पाए कि व्यवस्था कैसे चलाई जाती है। मोनिका अरोड़ा जी ने बताया कि यह सही है कि केंद्र सरकार ही ऑक्सीजन आवंटन करती है। परन्तु उसने निगरानी की जाती है एवं साथ ही केंद्र सरकार राज्य की सरकार की आवश्यकता के अनुसार यह निर्देश देती है कि अमुक आपूर्तिकर्ता के पास इतनी ऑक्सीजन है, आप संपर्क करें और ले आएं। उन्होंने कहा कि यह सभी राज्यों के लिए है। यहाँ तक कि आईनोक्स ने भी यही कहा है कि शेष राज्यों को कोई समस्या नहीं है, मात्र दिल्ली सरकार को ही समस्या है।
गृह मंत्रालय द्वारा भेजे गए पत्र में भी आईनोक्स के पत्र का उल्लेख करते हुए प्रश्न किया है कि जहाँ आईनोक्स दिल्ली के काफी समय से 45 अस्पतालों में 105 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की आपूर्ति कर रही थी तो वहीं उसे यह निर्देश दिल्ली सरकार से दिया गया कि वह केवल 98 मीट्रिक टन ऑक्सीजन ही मात्र 17 अस्पतालों में दें। तथा इसकारण वह 28 अस्पताल छूट गए और उन्हें ऑक्सीजन नहीं मिली जिस कारण कई लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। पत्र में लिखा है कि यदि उचित संवाद किया जाता तो इससे बचा जा सकता था।
इसी के साथ पत्र में यह भी कहा गया है कि दिल्ली में अधिकतर अस्पताल अब कोविड अस्पतालों में बदल चुके हैं, जो वह पहले नहीं थे। तो वहां पर ऑक्सीजन भंडारण की उचित व्यवस्था नहीं थी। अत: क्या वहां पर उचित सम्वाद किया गया? यह सब बिंदु उस पत्र में है। पत्र में यह प्रश्न किया गया है कि यदि शेष राज्यों की सरकारें समन्वय स्थापित कर सकती हैं तो ऐसी क्या बात है कि दिल्ली सरकार ने ऐसा कोई कदम नहीं उठाया?
इन सब घटनाओं के बाद यह सामने आना कि अरविन्द केजरीवाल सरकार अशोक होटल में दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों एवं कर्मियों के लिए 100 कमरे बुक करा रही है, कोविड -19 के मद्देनज़र! अब प्रश्न यह उठता है कि क्या यह मीडिया की तरह न्यायपालिका को भी दी गयी रिश्वत है? क्या यह इस बात का संकेत है कि जैसे मीडिया का मुंह डेढ़ सौ करोड़ रूपए के विज्ञापन से भर दिया है, वैसे ही न्यायपालिका का मुंह वह आतिथ्य के इस निर्णय के माध्यम से बंद करना चाह रहे हैं? क्या अरविन्द केजरीवाल सरकार यह चाह रही है कि न्यायपालिका भी मीडिया की भांति उनके पैसों पर चुप रहे और उनकी गलतियों पर बात न करे?
यह अब न्यायपालिका पर पूरे देश की दृष्टि टिकी है कि वह क्या कदम उठाती है? क्या वह इस रिश्वत और आराम के इस आकर्षण को छोडती है या फिर स्वीकार करती है। परन्तु एक और प्रश्न है कि अशोक होटल केंद्र सरकार के अधीन है, तो अब यह केंद्र सरकार पर भी निर्भर करता है कि क्या वह 100 कमरों की बुकिंग को स्वीकार करते हैं या नहीं? इस समय सारे देश की दृष्टि प्रशासनिक रूप से विफल सरकार द्वारा की गयी इस अनैतिक पेशकश पर है, और इस बात पर कि न्यायालय क्या निर्णय लेते है? यह अब साख का प्रश्न है!
क्या आप को यह लेख उपयोगी लगा? हम एक गैर-लाभ (non-profit) संस्था हैं। एक दान करें और हमारी पत्रकारिता के लिए अपना योगदान दें।
हिन्दुपोस्ट अब Telegram पर भी उपलब्ध है. हिन्दू समाज से सम्बंधित श्रेष्ठतम लेखों और समाचार समावेशन के लिए Telegram पर हिन्दुपोस्ट से जुड़ें .