भारत के पड़ोस में अफगानिस्तान से हर रोज़ ऐसे वीडियो आ रहे हैं, जिन्हें देखने से रोंगटे खड़े हो जाएँगे, पर दुर्भाग्य की बात है कि जिन्हें खड़ा होना चाहिए वह खड़े नहीं हो रहे हैं। अफगानिस्तान से हाल ही में जो वीडियो आया है, वह रुलाने के लिए पर्याप्त है। जीवन भर लोगों को हंसाने वाला व्यक्ति भी तालिबान की घृणा का शिकार हो गया, पर अब भी लोग यह समझ नहीं पा रहे हैं कि उन्हें विरोध करना भी है या नहीं?
https://twitter.com/WKandahari/status/1419956005664866347
अफगानिस्तान के मशहूर हास्य कलाकार नजर मोहम्मद को इस्लामी आतंकवादी गिरोह तालिबान ने बेहद सोचे समझे तरीके से उनके घर से उठाया और फिर उन्हें शातिराना तरीके से मार डाला गया। हालांकि पहले तालिबान ने इस हत्या में अपना हाथ होने से इंकार कर दिया था, परन्तु अब जो वीडियो सामने आया है, उससे एकदम स्पष्ट है कि यह हत्या तालिबान ने ही की है।
वीडियो में यह साफ़ दिखाई दे रहा है कि उन्हें घर से निकाला गया और उन्हें थप्पड़ मारे जा रहे हैं। और तालिबानी आतंकी हथियारों को लेकर कार में बैठे हुए हैं और वह मोहम्मद नज़र को स्थानीय भाषा में बोलते हुए नज़र आ रहे हैं। और फिर बाद में उनका शव मिला। हालांकि उनकी हत्या के पीछे यह कहा जा रहा है कि नज़र मोहम्मद स्थानीय पुलिस के लिए कार्य कर रहे थे और इसलिए उन्हें मार डाला गया। यहाँ तक कि सोशल मीडिया पर भी इसे कुछ लोग सही ठहरा रहे हैं।
Comedian Debugged
Nazar Muhammad aka Khasha Zwan was a member of Afghan Local Police (ALP) a CIA-backed militia, (accused by Human rights of serious human rights violations) He was from Dand district Kandahar was deployed at Shah Wali Kot, Kandahar. He was a psychopath 1/4 https://t.co/rEzshOBXWM pic.twitter.com/mqGlYWKJU0— Talha ahmad (@talhaahmad967) July 27, 2021
वहीं कुछ लोगों ने विरोध किया है। सुबुनी खान ने ट्वीट करते हुए लिखा है कि चूंकि वह नहीं चाहते हैं कि मुस्लिम नाचें, गाएं या फिर खुश रहें। उन्हें दिमाग से मरे हुए मुसलमान चाहिए, जो इस्लामिक राज्य के लिए लड़ सकें। और फिर वह कहती हैं कि वह एक इस्लामी राज्य में भी आपको नहीं छोड़ेंगे:
Because they don't want Muslims to laugh,sing, dance or be happy. They need brain-dead muslims who can act as zombies to fight for Islamic State.
Mind you..they don't spare you even in an Islamic State. This is power hungry unquenchable blood thirst.
RIP brother #NazarMohammad https://t.co/rcgb5yCM9r
— Subuhi Khan (@SubuhiKhan01) July 28, 2021
शमा लिखती हैं कि क्या इस्लाम में लोगों को हंसाना हराम है?
Taliban executed this poor Comedian #Khasha Zwan that it’s “HARAAM” in Islam to make people laugh.
The video is moments before his death.— Shama Junejo (@ShamaJunejo) July 27, 2021
एक यूजर ने दुःख प्रकट करते हुए लिखा कि
एक कलाकार की हत्या का अर्थ पूरे समाज की हत्या होता है:
Killing of an artist is killing of entire society. #KhashaZwan pic.twitter.com/q8lXCd5LAB
— Mustanser Baluch (@BaluchMustanser) July 27, 2021
रुबीना हम्माल लिखती हैं कि कट्टरवादी दिमाग कभी भी मनोरंजन करने वाले दिमाग स्वीकार नहीं करते
Extremist minds never accept entertaining minds!
Rest in Peace 💔💔💔#KhashaZwan pic.twitter.com/RagIIxpHjN
— Rubina Hummal (@ZehriiiBaloch) July 27, 2021
एक यूजर ने नज़र मोहम्मद की तस्वीर साझा करते हुए लिखा कि “मैं जीवन भर तुम्हें परेशान करता रहूँगा”
"I will haunt you for the rest of your life"#KhashaZwan pic.twitter.com/CNQg1sZFik
— Barkat Khattak (@BarkatKhattak1) July 27, 2021
पर सबसे बड़ा प्रश्न यही है कि आखिर वह सोच क्या है, जो कलाकारों का गला काट रही है, कभी अनुवादक को मार रही है। तालिबान ने नज़र मोहम्मद से पहले सोहेल पारदिस नामक अफगानी अनुवादक की गला काटकर हत्या कर दी थी, यह आरोप था कि उसने अमेरिकी सेनाओं को अनुवादक की सेवाएं दी थीं।
आखिर ऐसा क्यों हो रहा है और उससे पहले भी सौ से अधिक नागरिकों की हत्या कर दी थी। आखिर वह नागरिकों की हत्या क्यों कर रहा है? और उससे भी महत्वपूर्ण है कि भारत में वह वर्ग जो एक व्यक्ति की हत्या पर ब्लैकलाइव्समैटर्स का ट्रेंड चलवा सकते हैं और जो समुदाय पूरे विश्व में अपने समुदाय पर होने वाले एक भी हमले पर देश जलाने से नहीं हिचकता, वह सब शांत हैं।
कॉमेडियन नज़र मोहम्मद को थप्पड़ मारते हुए का वीडियो निंदनीय है। आखिर ऐसा क्या है जो निर्दोष कलाकारों तक को मार रहा है। क्या आप किसी की कला से नहीं जीत पाते तो उसे मार डालेंगे और मारना एक ओर है, उस पर बौद्धिक चुप्पी, वह अत्यंत निंदनीय है। आखिर वह कौन सी बात है, वह कौन सी विवशता है, जिसके कारण वाम पोषित बौद्धिक जगत इतनी पैशाचिक हरकतों का विरोध नहीं कर रहा और न ही उस मानसिकता का विरोध कर रहा है, जिसके वश में आकर लोग इन लोगों की हत्या कर रहे हैं।
क्या हम इसी चुप्पी की अपेक्षा अपने बौद्धिक जगत से करते हैं, क्या हम इसी कायराना प्रतिक्रिया की उम्मीद अपने कथित क्रांतिकारी जगत से करते हैं? शायद हाँ! क्योंकि हम यह जानते हैं कि हमारा क्रांतिकारी बौद्धिक वामी और इस्लामी गठजोड़ वाला बौद्धिक जगत तालिबान से डरता है। वह डरता है कि कहीं तालिबान की बुराई करने से भारत में बैठी हुई सरकार का पलड़ा भारी न हो जाए और भारत की इस सरकार के प्रति लोगों का विश्वास न बढ़ जाए। जैसा हमने कई मामलों में भारत में भी देखा है कि वह कांग्रेस के गलत कार्यों का विरोध इसलिए नहीं करते हैं क्योंकि इससे भाजपा को समर्थन मिल जाएगा!
इसलिए वह शांत हैं। वह मुसलमानों की छवि खराब न हो जाए, इसलिए कश्मीरी हिन्दुओं के पलायन और उन्मादी मुसलमानों द्वारा की गयी उनकी हत्याओं पर शांत रहते हैं। यदा कदा आवाज़ उठाते भी हैं तो इतनी सावधानीपूर्वक कि वह या तो आतंकवाद को शोषण का परिणाम या फिर अमेरिका की राजनीति का परिणाम बता सकें।
अभी हाल ही में भारतीय पत्रकार दानिश सिद्दीकी की हत्या भी तालिबान ने कर दी थी और उस हत्या के लिए वामी और इस्लामी पत्रकारों ने केवल और केवल मृत्यु पर दुःख प्रकट किया था, परन्तु वह यह कहने का साहस नहीं जुटा पाए थे कि यह हत्या तालिबान ने की थी।
सबसे अधिक मजा तो स्वयं को जीरो टीआरपी वाला एंकर कहने वाले की पोस्ट पढ़कर आया था, जिसमें यह कहा गया था कि गोली को लानत है!
पर पूरा वामी और इस्लामी पत्रकार समूह तालिबान की निंदा नहीं कर सका था। और आज नज़र मोहम्मद की नृशंस हत्या पर भी उनकी ओर से कोई शब्द नहीं है, और न ही उन्होंने उन आम नागरिकों की हत्या पर कुछ लिखा है, जिनकी हत्या तालिबान ने की थी और रोज कर रहा है।
क्या वाकई वामी और इस्लामी पत्रकारों और लेखकों में डर का माहौल है कि वह कुछ कह नहीं पा रहे? यही चुप्पी उनकी थी जब पालघर में साधुओं को घेर कर मारा गया था। और नज़र मोहम्मद की अंतिम हंसी उस कट्टरपंथ पर एक तमाचा है, जिसने उनकी जान ले ली! न जाने कितनी हत्याएं अभी शेष हैं, और न जाने कितना अभी विश्व और भारत दोनों के ही बौद्धिक जगत का मौन रहना शेष है!
और यह भी देखना शेष है कि अंतत: कितनी हत्याओं के बाद इस नृशंसता का विरोध होना आरम्भ होगा? भारत का वामी और इस्लामी मीडिया एवं लेखन जगत कभी भी तालिबान की निंदा या आलोचना नहीं करेगा, क्योंकि जब वह अपने दानिश सिद्दीकी की मौत को भुना सकता है, उसे हिन्दू धर्म को कोसने के लिए प्रयोग कर सकता है, तो वह कुछ भी कर सकता है, पर तालिबान की बुराई नहीं!
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