spot_img

HinduPost is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma

Will you help us hit our goal?

spot_img
Hindu Post is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma
31.7 C
Sringeri
Tuesday, March 19, 2024

मज़हबी हमले से रक्षा के लिए ‘खालसा-पंथ’ स्थापित किया

सिख धर्म के दसवें गुरु श्री गुरु गोविन्द सिंह का जन्म २० जनवरी, १६६६ को हुआ था | गुरु नानक देव द्वारा स्थापित सिख धर्म में  प्रारम्भ में वे लोग आकर्षित हुए जो कि मूलत: शांतिप्रिय थे, और जिनका झुकाव भक्तिमार्ग की और था | पर आगे चलकर जब बड़े ही क्रूरता के साथ गुरु अर्जुनदेव का वध जहांगीर द्वारा और गुरु तेगबहादुर का वध औरंगजेब द्वारा हुआ तो सिख समाज के लिए ये समझना मुश्किल ना था कि भजन, कीर्तन, व्रत आदि से चित्त को शांति तो मिल सकती है, पर समाज की रक्षा की जहां तक बात है वो बिना संगठन, शोर्य और पराक्रम के भाव को जगाये संभव नहीं |

और इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए ‘खालसा-पंथ’ अस्तित्व में आया, जिसके जनक  गुरु गोविन्द सिंह थे |

खालसा के संकल्प  को पूर्ण करने गुरु गोविन्द सिंह के आव्हान पर सर्वप्रथम जो पांच लोग आगे आये वे कहलाये ‘पंज-प्यारे’| इनमे  से एक धोबी समाज से; दूसरा, भिस्ती; तीसरा, दर्जी; चौथा, खत्री; तथा पांचवा, जाट समाज से था | इनमे से भी तीन बीदर, द्वारकापुरी व जगान्नाथपुरी के थे; शेष दो पंजाब के | खालसा में दीक्षित हो जाने पर केश, कच्छा, कड़ा, कंगी और कटार रखना अनिवार्य था, जिन्हें पांच ‘ककार’ की संज्ञा दी गयी |

ये वो समय था जब लोग मजहब के नाम पर  मुग़लों के हांथों अपमान और अत्याचार सहने के लिए मजबूर थे | गुरु गोविन्द सिंह ने इस स्थिती को बदल डालने का संकल्प लिया | फिर क्या था, मुग़ल सूबेदार और उनकी जी-हजुरी में लिप्त पहाड़ी राजाओं के साथ उनका युद्ध का सिलसिला शुरू हो गया |

आनंदपुर की पहली, दूसरी, तीसरी और साथ ही निर्मोह्गड़ की लड़ाई में उन्होंने सफलतापूर्वक विजय प्राप्त करी | गुरु गोविद सिंह के बढ़ते प्रभाव ने औरंगजेब को अपनी रणनीति  को बदलने पर विवश कर दिया | उसने एक साथ सरहिंद, लाहौर और जम्मू के सूबेदारों को गुरु गोविन्द सिंह पर हमला करने का फरमान जारी किया |

फलस्वरूप पहले आनंदपुर में, फिर चमकोर में लड़ाई छिड़ गई | युद्ध की भीषणता का पूर्व अनुमान होने के कारण गुरु गोविन्द सिंह ने अपनी माताजी और दोनों छोटे पुत्र आठ वर्ष के जोरावर सिंह और पांच वर्ष के फतेहसिंह को अपने एक पुराने नौकर के साथ उसके गाँव रवाना कर दिया|

इधर चमकोर की सुप्रसिद्ध लड़ाई में एक और गुरु गोविन्द सिंह सहित उनके शेष दो पुत्र अजित सिंह और जुझार सिंह और साथ में चालीस सिख थे तो दूसरी और औरंगजेब के ७०० मुग़ल सैनिक | केवल एक दिन चले इस भयानक विषम युद्ध में दोनों गुरु पुत्रों को वीरगति प्राप्त हुई |

गुरु गोविन्द सिंह ने अपने बचे हुए योद्धाओं के साथ किसी प्रकार वहां से निकल खिद्राना में शरण ली | इधर उनके नौकर ने विश्वासघात कर उनके दोनों बच्चों [जोरावर सिंह, फतेहसिंह ] को सरहिंद के सूबेदार वजीर खान को सौंप  दिया | काजी और उलेमाओं की सभा बुलाई गई जिसमे जोरावर सिंह और फ़तेहसिंह को फरमान सुनाया गया कि या तो वो दोनों इस्लाम मज़हब कबूल करे, या फिर मौत को गले लगायें | दोनों पुत्रों अपना धर्म त्यागने के स्थान पर मृत्यु चुनी | परिणाम स्वरूप उन्हें जीवित ही दीवार में चुनवा दिया गया |

आगे चलकर मुग़लों के साथ एक युद्ध खिद्रना में फिर हुआ, जिसमे मुगलों की हार हुई | इस बीच औरंगजेब की मृत्यु हो गई, और उसके लड़कों के बीच सत्ता संघर्ष छिड़ गया |

गुरु गोविन्द सिंह ने बड़े लड़के बहादुरशाह का साथ दिया, और युद्ध में उसके भाई आज़म को मार गिराया | बहादुर शाह के बादशाह बनते ही पंजाब में शांति स्थापित हो गई | पर दक्षिण में मराठाओं और उत्तर-पश्चिम में राजपूतों के कारण हुई दुर्गति से उबरने के लिए बहादुरशाह ने गुरु गोविन्द सिंह से सहायता चाही, पर ऐसा राष्ट्रघात करने से उन्होंने मना कर दिया |

फिर क्या था अपने पूर्वजों की दिखायी राह पर चलते हुए बहादुरशाह ने षडयंत्र रचते हुए अपने दो गुर्गों को गुरु गोविन्द सिंह के पीछे लगा दिया, जिन्होंने पहले उनका विश्वास जीता फिर धोखे  से मौका पाकर उनका वध कर दिया |

गुरु गोविन्द सिंह का बलिदान व्यर्थ नहीं गया उनके दिखाए मार्ग पर चलते हुए उनके वंशज महाराजा रंजित सिंह  ने उनका सपना पूरा किया | वैसे तो सन १७५५-१७५६ में पंजाब को मराठाओं ने मुग़लों से मुक्त करा लिया था, पर इसके बाद वहाँ  भारतीय संप्रभुता को मजबूत करने का श्रेय जाता है महाराजा रंजित सिंह को |

इतना ही नहीं मुस्लिम वर्चस्व को तोड़ते हुए उनके सेनापति हरिसिंह नलुआ ने अफगानिस्तान के अंदर घुसते हुए काबुल तक को सिख साम्राज्य में मिलाने में सफलता प्राप्त करी, और जिस रत्न जड़ित द्वार को आठ सौ वर्ष पूर्व मेहमूद गजनवी सोमनाथ के मंदिर को ध्वस्त कर अपने साथ ले गया था उसे बापस लाकर पुनः उसी स्थान पर स्थापित करने का गौरव प्राप्त किया |

अमृतसर के जिस हरिमंदिर गुरुद्वारा को अहमद शाह अब्दाली ने ध्वस्त कर दिया था, उसका पुनर्निर्माण कर महाराजा रंजित सिंह ने उसे आज के ‘स्वर्ण मंदिर’ का रूप प्रदान किया | साथ ही मुस्लिम शासन काल में सदियों से चले आ रहे गोवध पर प्रतिबन्ध लगाया|


क्या आप को यह  लेख उपयोगी लगा? हम एक गैर-लाभ (non-profit) संस्था हैं। एक दान करें और हमारी पत्रकारिता के लिए अपना योगदान दें।

हिन्दुपोस्ट  अब Telegram पर भी उपलब्ध है। हिन्दू समाज से सम्बंधित श्रेष्ठतम लेखों और समाचार समावेशन के लिए  Telegram पर हिन्दुपोस्ट से जुड़ें ।

Subscribe to our channels on Telegram &  YouTube. Follow us on Twitter and Facebook

Related Articles

Rajesh Pathak
Rajesh Pathak
Writing articles for the last 25 years. Hitvada, Free Press Journal, Organiser, Hans India, Central Chronicle, Uday India, Swadesh, Navbharat and now HinduPost are the news outlets where my articles have been published.

2 COMMENTS

  1. श्री गुरू गोबिंद सिंह जी सिक्ख धर्म के दसवें गुरू हैं, नौवें नहीं। कृपया इसे सही कर लें।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest Articles

Sign up to receive HinduPost content in your inbox
Select list(s):

We don’t spam! Read our privacy policy for more info.

Thanks for Visiting Hindupost

Dear valued reader,
HinduPost.in has been your reliable source for news and perspectives vital to the Hindu community. We strive to amplify diverse voices and broaden understanding, but we can't do it alone. Keeping our platform free and high-quality requires resources. As a non-profit, we rely on reader contributions. Please consider donating to HinduPost.in. Any amount you give can make a real difference. It's simple - click on this button:
By supporting us, you invest in a platform dedicated to truth, understanding, and the voices of the Hindu community. Thank you for standing with us.